Tuesday, January 4, 2011

कुकुर खांसी और घातक कफ

कुकुर खांसी का एक प्रमुख कारण है जिद्दी कफ, जो सर्दियों में कुछ लोगों की बड़ी समस्या होता है। खासतौर से बच्चे इस समस्या से जल्दी पीड़ित होते हैं, जिसे आमतौर पर लोग मौसम से जुड़ी परेशानी मानते हैं, लेकिन अधिकतर केसेज में यह पुराने संक्रमण का नतीजा होती है। यह श्वसन तंत्र से संबंधित गंभीर संक्रमण है। हालांकि इसकी शुरुआत हल्की सर्दी, खांसी से होती हैं, लेकिन बाद में इसके परिणाम घातक हो सकते हैं। जिसमें कफ सांस लेने में ज्यादा परेशान करने लगता है और सांस लेने में ही ऐसी आवाज आती है।
कैसे फैलती है यह बीमारी- यह श्वसन तंत्र में होने वाला संक्रमण है और अधिकतर वायु नली और ब्रोंकाई, जहां से फेफड़ों को हवा मिलती है, को प्रभावित करती है और इसके पीछे बोरडीटैला परटुसिस बैक्टीरियम उत्तरदायी होता है। जब इस बैक्टिरिया और बीमारी से पीड़ित रोगी खांसता या छींकता है, तब यह हवा में तैरकर स्वस्थ बच्चों को भी प्रभावित कर सकता है और इस गंभीर रोग में उन्हें जकड़ सकता है। हालांकि यह दशा जल्दी ही ठीक की जा सकती है, लेकिन जब तक इस संक्रमण का सफाया पूरी तरह से नहीं हो जाता, तब तक उपचार लेते रहें। यही नहीं हवा में यह बैक्टीरिया फैलकर अपनी संख्या को दुगुना कर लेते हैं और इनकी विषाक्तता और ज्यादा बढ़ जाती है और घातक हो जाती है। इस स्थिति में श्वसन तंत्र से इस बैक्टीरिया का सफाया करना जरा और मुश्किल हो जाता है। श्वसन तंत्र के हवा निकलने वाले स्थान पर गाढ़ा कफ जमा हो जाता है और और इस पर नियंत्रण पाना फिर और जटिल हो जाता है। इसके कारण सांस नली में जलन और हवा के पास होने में तकलीफ बढ़ जाती है। इस स्थिति में सांस लेने में रोगी को ज्यादा ताकत लगानी पड़ती है।
लक्षण- एक बार कोई इस संक्रमण की गिरμत में आ जाए, तो पूरी तरह से लक्षण स्पष्ट होने के लिए फिर स्थिति के लिहाज से 3 से 12 दिन का समय लगता है। इन्हें सामान्य सर्दी खासी, नाक का बहना, नाक ठसना और बहुत ज्यादा छीकें आना जैसे लक्षणों से पहचाना जा सकता है। इसके साथ ही पीड़ित की आंख में लाली और पानी, हल्का बुखार, सूखा कफ, भूख में कमी और खुद में अच्छा महसूस न होना जैसे लक्षण प्रकट होते हैं। एक या दो सप्ताह बाद लक्षण और ज्यादा खराब हो जाते हैं और कफलिंग अटैक तक पड़ सकता है रोगी को और गाढ़ा बलगम भी आता है। बच्चों में इससे उलटी आना जैसी समस्याएं भी हो सकती हैं। यही नहीं सांस लेने और रिलेक्स होने की कवायद में उनका चेहरा नीला पड़ जाता है और त्वचा पर छोटे लाल दाने या निशान भी इसके कारण उभर आते हैं, क्योंकि इस समस्या के कारण उनकी रक्त वाहिकाओं में भी टूट-फूट हो जाती है। यही नहीं आंखों के श्वेत भाग में भी लालिमा देखी जा सकती है इस दौरान। लंबी बीमारी के बाद पीड़ित को पसलियों और छाती में दर्द आदि की शिकायत भी बढ़ सकती है। यही नहीं निमोनिया, कान का संक्रमण और सांस की गति का धीमा होना, निर्जलीकरण व दिमागी विकृतियां भी इस कारण से हो सकती हैं। इस स्थिति में तुरंत अपने डॉक्टर से संपर्क करना चाहिए। बच्चों के मामले में तो आपको कोई समझौता न करें तो बेहतर है।


पहचान- आमतौर पर डॉक्टर इसका उपचार पीड़ित से उस समस्या के बारे में पूछकर लक्षणों को जानकर और कफ की ध्वनि को उपकरणों की मदद से सुनकर करते हैं। इसके लिए जांचें भी करवाई जाती हैं। इसके तहत आंख और गले का कल्चर तथा परीक्षण होता है, जिसके तहत सैंपल लिए जाते हैं, जिन्हें लैब में भेजा जाता है और इसके लिए जिम्मेदार बैक्टीरिया की पहचान की जाती है। साथ ही ब्लड टेस्ट भी श्वेत रक्त कणिकाओं की उपस्थित को जानने के लिए किया जाता है, क्योंकि श्वेत रक्त कणिकाएं शरीर में किसी भी प्रकार के संक्रमण से लड़ने के लिए सहायक होती हैं। लेकिन इनकी अधिकता इस बात की परिचायक है कि आपको किसी तरह का संक्रमण या परेशानी है। इस बीमारी में पीड़ित की छाती का एक्स-रे भी फेफड़ों में जमा तरल की स्थिति को जानने के लिए किया जाता है। यह निमोनिया और कफ संबंधित दूसरे संक्रमणों के परीक्षण के लिए भी जरूरी है। इस स्थिति में डॉक्टर पीड़ित को घर में ही आराम करने की सहाल देते हैं, क्योंकि इससे दूसरों में भी संक्रमण फैलने की संभावनाएं बढ़ जाती हैं।

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