Friday, December 31, 2010

बचें रूखेपन से

सदिर्यों का मौसम आते ही स्किन इचिंग यानी रूखेपन ने लोगों की परेशानी बढ़ा दी है। सभी आयु वर्ग के लोग इसकी चपेट में हैं। लेकिन बच्चों और वृद्धों को यह कुछ ज्यादा परेशान करती है। रूखेपन से बेचैनी बढ़ जाती है, साथ ही खान-पान व दूसरे क्रिया-कलापों में भी रुचि कम हो जाती है। सदिर्यों के मौसम में त्वचा का रूखापन लोगों को परेशान करने लगा है। इसी समस्या से हर कोई परेशान है लेकिन बच्चे और बजुर्ग इससे ज्यादा दिक्कत महसूस करते हैं। ठंड का मौसम शुरू रहने के कारण त्वचा का ऊपरी भाग नमी खो देता है जिसके कारण रूखेपन की परेशानी सामने आती है। इसका प्रभाव पुरुष व महिलाओं में सभी आयु वर्गों पर पड़ता है। ऐसे में स्किन इचिंग यानी त्वचा में रूखेपन के कारण हल्की खारिश जैसी परेशानी पैदा हो जाती है। ऐसे मौसम में जरूरी है कि नमी की मात्रा को बरकरार रखा जाए।

गोरे गालों पर काले धब्बे

त्वचा संबंधी बीमारियों में झाई एक आम बीमारी है। ये काले धब्बे त्वचा पर ऩजर आने लगते हैं, जो महिलाओं की खूबसूरती को कम करते हैं। त्वचा चितकबरी दिखती है। कुछ महिलाओं में यह बीमारी गर्भावस्था के दौरान देखी जाती है। इस बीमारी में काले धब्बे गाल, नाक, माथे पर छोटे धब्बे से शुरू होते हैं। जो धीरे-धीरे फैलकर बड़े तथा ब्राउन कलर से काले रंग में बदल जाते हैं। माहवारी के समय ये धब्बे हल्के रंग के हो जाते हैं। इस बीमारी के शुरू होने के कोई लक्षण नहीं होते। उपचार: धूप में ये दाग ज्यादा गहरे हो जाते हैं। अत: धूप में कम निकलें। अगर दवाइयों की वजह से यह बीमारी हो रही हो, तो अपने डॉक्टर से संपर्क कर विकल्प दवाइयां लें। हाइड्रोक्यूनोन क्रीम, रेटीनोइक एसिड तथा स्टीरायड क्रीम इन तीनों का काम्बीनेशन लगाने की सलाह डॉक्टर देते हैं।

वेज कीमा मटर

सामग्री: 400 ग्राम सोया ग्रेन्युल्स, 250 ग्राम हरा मटर,1/2 कप दही, 1 प्याज, 4 टी स्पून तेल , 5 काली मिर्च, 4 लौंग, 1 मोटी इलायची,1/4 टी स्पून जीरा,1 टी स्पून धनिया पाउडर,1/2 टी स्पून हल्दी पाउडर,1/4 टी स्पून लाल मिर्च पाउडर,1 टी स्पून लाल मिर्च पाउडर, 1 स्पून अदरक का पेस्ट, लहसून का पेस्ट, 1/2 टी स्पून गरम मसाला पाउडर, नमक।
विधि: सोया ग्रेन्युल्स को गरम पानी में 15 मिनट के लिए भीगो दें। अब कुकर में तेल गरम कर उसमें जीरा, गरम मासाला डाल दें। इसमें अदरक, लहसुन का पेस्ट और प्याज, हल्दी डालकर भूने। धनिया, हल्दी, लाल मिर्च और नमक डालें। इसमें ग्रेन्युल्स और मटर डालकर 1 गिलास पानी डालकर सीटी आने तक पकाएं। जब सब्जी बन जाए तो उसमें गरम मसाला मिला दें। प्याज और तंदूरी रोटी के साथ सर्व रके

Monday, December 27, 2010

स्किन टच जींस

फैशन परस्त लोग दुनिया में आ रहे बदलावों को फौरन एक्सेप्ट करने में जरा भी देर नहीं लगाते हैं। मसलन फिर एक बार स्किनी जींस चलन में है। लड़कियां के साथ-साथ लड़कों पर भी इसका खुमार है।


कॉलेज गोइंग्स की पसंद- कॉलेज गोइंग यूथ के लिए तो जींस बढ़िया पहनावा है। रफ-टफ रहने वाले युवाओं को हर तरह की जींस भाती है। वह सिक्स पॉकेट लूज जींस हो या फिर स्किन टाइट। स्किन टाइट जींस में जहां व्यक्ति स्मार्ट नजर आता है, वहीं सिक्स पॉकेट जींस में औरों से जरा हटकर दिखाई देता है। बहरहाल अपने अट्रैक्टिव लुक और टिकाऊपन के गुण के कारण यूथ में खासी पॉपुलर है।

डेनिम भी आगे- डेनिम जींस के अधिकतर ब्रांड के ताजा कलेक्शन और भी आकर्षक रूप में सामने आए हैं। लेवाइस , एफसीयूके , काल्विन
क्लीन, एस .ओलिवर और पॉल स्मिथ जैसे ब्रांड की स्किनी जींस इन दिनों फैशन के हॉट ट्रेंड में शामिल है। लेवाइस की नई रेंज में लो राइज स्लिम, बूट कट, रिलैक्स्ड स्ट्रेट और टेपर्ड जैसे चार नए फिट पेश किए गए हैं। अन्य बड़े डेनिम ब्रांड भी इसी राह पर चल रहे हैं। कैल्विन क्लेन (सीके) ने इस सीजन में पुरुषों के लिए दो नए स्किनी फिट और महिलाओं के लिए चार ऐसे स्टाइल उतारे हैं।

स्टाइल पर जोर- सुपर स्किनी रेंज की कीमत लगभग 2,399 रुपए है। इस समय जींस के वॉश और कट से ज्यादा उसके स्टाइल पर ज्यादा जोर है।’ ब्रिटेन का डिजाइनर ब्रांड पॉल स्मिथ भी स्लिम, स्ट्रेट लेग और स्किनी जींस पर ध्यान दे रहा है। ब्रांड का कहना है कि इस सीजन में 80 के दशक की वॉश्ड डेनिम और लाइट ब्लू जींस का जोर रहेगा। ब्रांड का दावा है कि उसके क्लेक्शन को ग्राहकों की ओर से अच्छी प्रतिक्रिया मिल रही है और सभी एज ग्रुप में इसे पसंद किया जा रहा है। तो जिस ओर होगा ट्रेंड उस ओर होंगे हम।

रखें नाखूनों का खयाल

हर पंद्रह दिन में मेनिक्योर और पेडिक्योर करवाना चाहिए, जिससे नाखून साफ और सुरक्षित रहे।  हफ्ते  में दो दिन हैंड मसाज लेना चाहिए। हैंड मसाज के लिए माइल्ड क्रीम का प्रयोग करें, इससे हाथ कोमल होने के साथ नाखून भी शाइनी होंगे।  नाखून पर नेल पेंट ज्यादा दिनों तक नहीं लगा रहने देना चाहिए। रिमूवर नेल पॉलिश रिमूवर लोकल न हो, बल्कि ब्रांडेड हो।  विटामिन-ई कैप्सूल को नाखूनों पर लगाने से वह कोमल रहते हैं।  खाने-पीने में कैल्शियम, जिंक, आयरन युक्त खाना जैसे - फल, सब्जियां, मूंगफली, मछली, अंडा, लहसुन, प्याज के साथ ही खूब पानी पिएं और दूध का सेवन करें। भोजन में फाइबर युक्त आहर ही लें, अधिक मीठे पदार्थों का सेवन करने से बचें।

  • हाथों की खूबसूरती दिखाने के लिए नकली नाखूनों का प्रयोग न करें, क्योंकि इसे जब उतारते हैं तो इससे असली नाखूनों की प्राकृतिक नमी चली जाती है।

Wednesday, December 22, 2010

दूध क चाय जगह लेमन की चाय फायदा ज्यादा!

कई संपन्न देशों में चाय बिना दूध के ही पी जाती है और दूध की जगह होता है लेमन। क्योंकि इस बगैर दूध की चाय में छुपा है सेहत का राज। चाय के बारे में प्रकाशित एक नए शोध में कहा गया है कि चाय में दूध डालने से उससे होने वाले फायदे खत्म हो जाते हैं। इसके स्थान पर लेमन टी के कई फायदे हैं और इसका नियमित सेवन लाभकारी है। इसके लिए बगैर दूध की चाय के गुणकारी पक्षों के लिए परीक्षण 16 महिलाओं पर किया गया। चाय पीने के दो घंटे पहले और दो घंटे बाद तक इन महिलाओं की नसों पर निगाह रखी गई। इस परीक्षण में पाया गया कि जिन महिलाओं ने बिना दूध वाली या लेमन टी, पी, उनकी नसों में बेहतर संकुचन हो रहा था जिससे उनमें रक्त की आपूर्ति आराम से हो पा रही थी। इस शोध के प्रमुख विशेषज्ञों का कहना है कि इस जानकारी के बाद अब इस बात का कारण पता चल सकता है कि उन देशों में दिल की बीमारी के मामले क्यों हो रहे हैं जहां लोग बिना दूध वाली चाय पीते हैं

लेमन टी के फायदे
  • लेमन टी से मेंटल फ्रेशनेस आती है, क्योंकि लेमन में विटामिन सी की प्रचुरता है और यह प्राकृतिक एंटीआक्सीडेंट है।
  • जो लोग नियमित रूप से लेमन टी का प्रयोग करते हैं उनमें कैंसर की आशंका में कमी आती है।
  • रक्त शुद्ध होता है।
  • लेमन टी पाचन क्रिया को सुचारू और दुरुस्त बनाती है।
  • यह भी माना जाता है कि लेमन टी एंटीसेप्टिक के तौर पर कार्य करती है। 1680 के आस-पास से चाय में दूध डालने के बारे में प्रमाण मिलते हैं। मगर आज ब्रिटेन और उसके पुराने उपनिवेशों दूसरी ओर भारत या हांगकांग में ही वो चाय पी जाती है जिसमें दूध डाला जाता है। ब्रिटेन में हर साल लगभग साढ़े 16 करोड़ प्याली चाय पी जाती है भारत में तो चाय का प्रयोग बड़े पैमान पर होता है। तो अब आप कौर सी चाय पिएंगे।

पीठ दर्द दूर करता है 'स्फ़िंग्स आसन'

हमारी शारीरिक अवस्था बताती है कि हमें कोई शारीरिक तनाव है या नहीं. मान लीजिए आपकी कमर या पीठ में दर्द है तो आप कुछ आगे की ओर झुककर चलेंगे.
जब आप बैठेंगे तो भी पीठ भी आगे की ओर झुकी हुई होगी. योग की नज़र से और रीढ़ के लिए यह ज़्यादा उचित होगा कि आप पीछे झुकने वाले कुछ सरल योगासनों का अभ्यास करें.
एक-दो महीने के अभ्यास से आप भविष्य में होने वाली जटिल समस्यों से छुटकारा पा सकते हैं.
रीढ़ हमारे शरीर का आधार है. इसके स्वास्थ्य के साथ कोई समझौता नहीं करना चाहिए.
योगाभ्यास करें तो इस बात का ख़्याल रखें कि पेट खाली हो, जगह साफ़-सुथरी हो, ताज़ी हवा आ-जा रही हो. ज़मीन पर मोटा कंबल बिछाकर उस पर योगाभ्यास करें.
स्फ़िंग्स आसन
पेट के बल लेट जाएँ और दोनों पैरों को मिलाकर रखें. ठुड्डी को ज़मीन पर रखें.
दोनों हाथों को कोहनी से मोड़ें और हथेलियों को सिर के दाएँ-बाएँ रखें और हाथों को शरीर से सटाकर रखें. आपकी कोहनी ज़मीन को छूती हुई रहेगी.
धीरे-धीरे साँस भरें और कंधे को ऊपर की ओर उठाएँ शरीर का भार कोहनी और हाथों पर रहेगा.
कोशिश करें कि छाती भी ऊपर की ओर रहे. इस स्थिति में कुछ पल रुकें और साँस को सामान्य कर लें.
इस स्थिति में आप दो मिनट तक रुकें. अगर रोक पाना संभव न हो तो पाँच बार इस क्रिया को दोहराएँ. इसके बाद पेट के बल लेटकर ही विश्राम करें. हाथ सीधा कर लें और सिर को एक तरफ़ मोड़ें. आँख बंद कर लें और पूरे शरीर को ढीला छोड़ दें.

क्या होगा फ़ायदा
जिन लोगों के पीढ़ और रीढ़ में बहुत ज़्यादा अकड़ हो वे पीछे झुकने वाले आसन करने से पहले स्फ़िंग्स आसन का अभ्यास करें.इससे उन्हें काफ़ी लाभ मिलेगा.
जिन लोगों की पीठ में दर्द है. वे इसका अभ्यास ज़रूर करें. जिन लोगों को स्लिप डिस्क की समस्या है. वे इस आसन में ज़्यादा से ज़्यादा देर तक रुकने का प्रयास करें. इसके अभ्यास से आप ज़्यादा आराम महसूस करेंगे.

सर्पासन
पेट के बल लेट जाएँ. दोनों पैरों को मिलाकर रखें. ठुड्डी ज़मीन को छुएगी.
सर्पासन की एक मुद्रा
अस्थमा के रोगियों के लिए यह आसन श्रेष्ठ है.इससे पीठ दर्द और कंधों में तनाव कम होता है.
दोनों हाथों को कमर के पीछे लेकर आएँ. दोनों हथेलियों की अंगुलियों को आपस में मिलाकर पकड़ लें. यह इस आसन की प्रारंभिक स्थिति है.
साँस भरें और पीठ की माँसपेशियों का बल लगाते हुए कंधों को ऊपर उठाएँ. हाथों को पीछे की ओर खीचें, जिससे कंधों में भी पीछे की ओर खिंचाव आए. इस प्रकार शरीर को थोड़ा और ऊपर उठाने का प्रयास करें.
कुछ देर रुकें. इसके बाद साँस छोड़ते हुए धड़ को नीचे कर लें. हाथों की ढीला छोड़ दें. कंधे को भी ढीला छोड़ दें. हाथों को शरीर के साथ रखें. गर्दन को एक तरफ मोड़ें और कुछ देर आराम करें. इस तरह आप पाँच बार करें.
हृदय रोगी और हाई ब्लड प्रेशर के रोगी ज़्यादा खिंचाव न लाएँ. वे बिना किसी तनाव के इस क्रिया को कर सकते हैं. 

सर्पासन के फ़ायदे
  • सर्पासन से छाती में खिंचाव आता है. फेफड़ों में हवा का दबाव बढ़ जाता है. हवा के छोटे-छोटे गुच्छे जिनकी क्षमता कम हो गई है.
  • उनकी क्षमता फिर से बढ़ जाती है. साँस-प्रश्वास की क्षमता भी बढ़ती है. हम ज़्यादा से ज़्यादा शुद्ध हवा को अंदर भरते हैं और अशुद्ध हवा को बाहर निकालते हैं.
  • अस्थमा के रोगियों के लिए सर्पासन आसन श्रेष्ठ है, क्योंकि यह आसन हमारी दबी हुई भावनाओं को बाहर निकाल देता है.
  • पीठ के दर्द और कंधों में तनाव को कम करता है. इसके नियमित अभ्यास से रीढ़ की हड्डी में आई अकड़न कम होती है. इससे हमारी बैठने, ऊठने, चलने-फिरने की क्रिया में भी सुधार आता है. 
http://www.bbc.co.uk/hindi/science/story/2008/07/080718_yoag_sphinxasan.shtml

साउथ इंडियन भिंडी

आवश्यक सामग्री : भिंडी-आधा किलो,
प्याज- आधा कप कटा हुआ,
दही-एक चौथाई कप,
लाल मिर्च पाउडर-1 चम्मच,
गरम मसाला- एक चौथाई,
अदरक पेस्ट-एक चम्मच
हल्दी पाउडर-एक चौथाई,
जीरा-एक चौथाई जीरा,
हरी धनिया पत्ती-2 टेबल स्पून,
नमक- स्वादानुसार
विधि
भिंडी बनाने से पहले उन्हें अच्छे से धो लें और लंबे या गोल आकार में काट लें। अब गैस पर कढ़ाई रखें और उसमें 2-3 चम्मच तेल डालकर अच्छे से गरम कर लें। इसके बाद तेल में जीरा डालें और जब जीरा तड़कने लगे तो उसमें कटी हुई प्याज और अदरक के पेस्ट को डाल दें। 
जब मसाला हल्का ब्राउन हो जाए तो उसमें दही डालें और अच्छे से भून लें। अब इसमें सभी मसालों को डालकर भून लें और उसके बाद कटी हुई भिंडियों को डाल कर मसाले में मिला दें जिससे मसाला भिंडियों में अच्छे से मिल जाए। अब आंच मंदी करके 15 मिनट तक सब्जी को पका लें और गैस बंद कर दें। आपकी भिंडी तैयार हैं इसे सजाने के लिए ऊपर से हरे धनिया से सजा दें।

रखें बालों का खयाल

सूखे आंवले को कूट कर पाउडर बना लें। इस पाउडर में नींबू का रस मिला कर बालों की जड़ों में लगाएं। कुछ महीने तक लगातार लगाने से बालों का टूटना, झड़ना और गिरना दूर होता है।
  • गंधक को पीस कर शहद मिला लें और इसे बालों की जड़ों में लगाएं। सिर का गंजापन दूर होता है। 
  •  नींबू के बीजों को पीस कर सिर में कुछ माह लगाने से गंज दूर होता है।
  • नारियल और नीम का तेल बराबर मात्रा में मिला कर नियमित रूप से सिर की मालिश करें। कुछ ही दिनों में बाल टूटनेझड़ ने बंद हो जाएंगे।
  • 20 ग्राम नींबू के रस में 10 ग्राम शुद्ध शहद मिला कर सिर पर खूब अच्छी तरह मलें। महिने, 2 महिनें के प्रयोग से बाल गिरने बंद हो जाएंगे।  
  •  प्याज का रस च शहद मिलाकर सिर की मालिश करें व 4 घंटे बाद सिर धो दें। गंज से छुटकारा मिल जाएगा। 
  • स्केल्प और बालों में हμते में दो बार गुनगुना नारियल तेल लगाएं।

Sunday, December 12, 2010

हैंडलूम का जादू

तकनीक कितनी भी आगे क्यों न बढ़ जाए, हाथ से बनी चीज का महत्व कभी कम नहीं होगा। यही हाल टेक्सटाइल्स का भी है। आज भी हैंडलूम साड़ीज और ड्रेस मटेरियल्स का क्रेज बहुत ज्यादा है। हैंडलूम मटेरियल्स को न केवल क्लासी, बल्कि एलीगेंट और स्टेटस सिंबल भी माना जाता है।

देर से मिली पहचान- एलीट क्लास में हैंडलूम साड़ीज और ड्रेस मटेरियल्स को हमेशा ही तवज्जो दी गई है, लेकिन इन्हें बनाने वाले बुनकरों को इसका श्रेय बहुत बाद में मिलना शुरू हुआ। कुछ साल पहले तक भी बिचौलिया कंपनी को ही इस खूबसूरत कारीगरी का फायदा उठाते देखा जाता था। बाद में सरकारी और गैर सरकारी संगठनों की पहल पर बुनकरों को डायरेक्ट एक्जीबिशन आदि में बुलाकर सीधा मुनाफा कमाने का अवसर दिया जाने लगा। 

मिल जाती है विविधता -हैंडलूम मटेरियल्स के लिए शोरूम्स तो हैं ही, लेकिन अगर देश के कोने-कोने के हैंडलूम मटेरियल्स का आनंद लेना हो, तो शहर में लगने वाले हैंडलूम एक्सपो या फिर एक्जीबिशंस का इंतजार करें। यहां पर बुनकर डायरेक्ट आते हैं, इसलिए शोरूम की अपेक्षा मटेरियल सस्ता मिलता है और विविधता की कोई सीमा नहीं रहती।

दिखते हैं सबसे जुदा- अगर आप किसी पार्टी में सबसे अलग दिखना दिखना चाहते हों, तो हैंडलूम की साड़ी से बेहतर कुछ नहीं हो सकता। सादगी पसंद लोगों के साथ साथ्  स्टाइलिश साड़ी पसंद करने वाली महिलाओं तक हर किसी के टेस्ट की साड़ी हैंडलूम में उपलब्ध होती है।

फैब्रिक अलग-काम अलग- हैंडलूम साड़ीज कॉटन, सिल्क, सिल्क-कॉटन आदि मटेरियल्स में मिल जाती है। साथ ही इनपर किए गए वर्क व जहां यह वर्क किया जाता है, वहां के नाम से यह साड़ियां मशहूर होती हैं। जैसे कांचीपुरम में पाए जाने वाले सिल्क की बनी साड़ी कांचीपुरम कहलाती है। मध्यप्रदेश की चंदेरी और माहेश्वरी आदि जगहों की साड़ियां भी इसी नाम से जानी जाती हैं।

डिजाइनर हुआ हैंडलूम- हैंडलूम बाजार ने भी अपने महत्व को कायम रखने के लिए खासी मेहनत जारी रखी है। इसी का नतीजा है कि आज का हैंडलूम डिजाइनर हो चुका है। पहले की तरह इसमें प्रिंटिंग डिफेक्ट्स नहीं मिलेंगे। यही नहीं अब हैंडलूम की साड़ियों और ड्रेस मटेरियल्स के कलर्स में भी एक्सपेरिमेंट्स हो रहे हैं।

पिंडी छोले

आवश्यक सामग्री
काबुली चने-1 कप
चने की दाल-2 बड़े चम्मच
इलायची-2 मोटी, दालचीनी-1 टुकड़ा
चायपत्ती-2 छोटे चम्मच मलमल के कपड़े में बांधकर रख दें
खाने का सोडा- एक चौथाई मसाले के लिए
1 बड़ा चम्मच तेल
2 प्याज- बारीक कटी हुई
अनार दाना पाउडर- 2 छोटे चम्मच
टमाटर- 3 बडेÞ कटे हुए
अदरक- 1 टुकड़ा बारीक कटा हुआ
हरी मिर्च बारीक कटी हुई
1 छोटा चम्मच धनिया पाउडर
गरम मसाला-एक-चौथाई छोटा चम्मच
लाल मिर्च पाउडर-आधा छोटा चम्मच
चना मसाला- 1 छोटा चम्मच
नमक- स्वादानुसार
विधि :
काबुली चने व चने की दाल को एक बर्तन में रात भर या फिर 6-8 घंटे पहले भिगोने रख दें। दूसरे दिन सुबह चने व दालों को ताजे पानी से धो लें और मोटी इलायची, दालचीनी, चाय पत्ती, एक चौथाई छोटा चम्मच सोडा और इतना पानी डालकर उबालने रखें, जिससे चने पूरी तरह से डूब जाएं। सारी सामग्री को एक प्रेशर कुकर में डालकर एक सीटी आने तक पकाएं। पहली सीटी आने के बाद 20-25 मिनट के लिए आंच को मंदा कर दें और कुछ देर बाद बंद कर दें। पिंडी छोले बनाने के लिए सबसे पहले गैस पर एक गहरे तले वाली कढ़ाई को रखें। अब उसमें 4-5 बड़े चम्मच तेल गर्म करें। इसके बाद तेल में कटी हुई प्याज डालें और सुनहरा होने तक भून लें। इसके बाद अनार दाने के बने पाउडर को डाल दें और हल्का सा भून लें। अब कटे हुए टमाटर, हरी मिर्च और अदरक को डाल दें और 3-4 मिनट तक चलाएं। 

इसके बाद धनिया पाउडर, गर्म मसाला और लाल मिर्च पाउडर डाल दें, साथ ही टमाटर को मैश कर तब तक फ्र ाई करें जब तक कि मसाले के ऊपर तेल न आ जाए। अब चने को पानी से अलग कर दें और टी बैग को अलग कर दें। निथरे हुए चने को मसाले में मिला दें और ऐसे मिलाएं जिससे चने में मसाला अच्छे से मैश हो जाए। अब चने में नमक डालें और 5-7 मिनट तक हिलाते हुए चलाएं। इसके बाद पिंडी छोलों में चना मसाला डालें और बचा हुआ पानी डाल दें। छोलों को 15-20 मिनट तक मध्यम आंच पर पकाएं जब तक कि हल्का सूख न जाए। छोलों को सजाने के लिए स्लाइज किए हुए प्याज, टमाटर, नींबू और हरी मिर्च से सजाएं ।

Friday, December 10, 2010

स्वादिष्ट हो टिफिन

बच्चे तो बच्चे होते हैं एक बार खेलने में लग जाए तो खाने-पीने का कोई हिसाब ही नहीं रहता है। ऊपर से अगर आपने सिंपल खाना उन्हें आफर किया, तो फिर तो वो गलती से भी हाथ नहीं लगाएंगे। घर पर तो फिर भी पेरेंट्स समझा-बुझाकर या डांट-डपटकर उन्हें खाना खिला देते हैं, लेकिन स्कूल में उनके साथ कौन जबरदस्ती करेगा। पैरेंट्स के साथ अक्सर यह परेशानी होती है कि उनका बच्चा ठीक से खाता नहीं है। आप रोज उसे टिफिन देती हैं, लेकिन वो आधा-अधूरा या कई बार पूरा का पूरा ही वापस ले आता है। यदि को बच्चे का खानपान ठीक न हो तो कई तरह की परेशानियां होती हैं, जैसे की वो जल्दी-जल्दी बीमार पड़ता है या वो स्वभाव से चिड़चिड़ा हो जाता है। परेशानियां केवल यहीं खत्म नहीं होतीं, ठीक से न खाने से बच्चे का विकास भी पूरी तरह से नहीं हो पाता है। यदि पैरेंट्स उनके स्वाद को देखें, तो उन्हें पूरा पोषण नहीं मिल पाता और पोषण पर ध्यान दे तो बच्चा खाना ही नहीं खाता। वैसे तो हर बच्चे की मां को ये पता होता है कि उसका बच्चा खाने में क्या पसंद करता है। तो बेहतर यही है कि बच्चे की पसंद को ही अलग-अलग तरह तथा उसमें और भी तरीके के चीजों को जोड़ दिया जाए, जिससे बच्चा रोज टिफिन का इंतजार करें और पूरे उत्साह से उसे पूरा खत्म कर दे।


मिले सबकुछ
बच्चे को दिनभर में एक चौथाई पौष्टिक तत्वों की आवश्यकता होती है, जो दोपहर के खाने से आती है। इसलिए बच्चों का टिफिन ऐसा होना चाहिए कि उन्हें स्वाद के साथ पोषण भी मिले। उन्हें ऐसा टिफिन दें जिसमें प्रोटीन, खनिज, फाइबर विटामिंस भरपूर मात्रा में मौजूद हों।

कलरफुल हो डिश
देखा जाए तो बच्चों को कलर्स अपनी तरफ बहुत अटैÑक्ट करते हैं। इसलिए बच्चों के टिफिन में उनके पसंद के अनुसार कलरफुल डिश बना कर रखें। इससे देखते ही खाने की इच्छा बढ़ती है और वो खुशी-खुशी खाते भी हैं। जो भी बनाएं कोशिश करें कि उनमें ज्यादा से सब्जियां डली हुई हों। इससे उन्हें पूरी मात्रा में आयरन मिलता है। उन्हें चावल में मूंगफली और सब्जी डालकर पुलाव बनाएं या सब्जी, पनीर, और चटनी का सैंडविच दें।

प्रोटीनयुक्त हो टिफिन
बच्चो में प्रोटीन की कमी को दूर करने के लिए कभी-कभी प्रोटीनयुक्त भोजन भी टिफिन में रखें। पनीर, बेसन, दाल से बने हुए व्यंजन बहुत अच्छे लगते हैं। इनसे आप कई तरह की चीजें बना सकती हैं। नूडल्स बच्चों को बहुत पसंद आते हैं, तो उसमें आप पनीर के छोटे-छोटे टुकड़े डाल सकती है, जिससे उन्हें एक अलग तरह की डिश खाने को मिलेगी और उन्हें पसंद करेंगे। स्वाद बदलने के लिए साथ ही दाल और आटे को मिलाकर उससे पराठें या पूरी बनाएं।

बच्चों को पसंद
बच्चों के लिए इडली, ढोकला जैसी चीजें अच्छे विकल्प हैं। इन्हें देखकर बच्चों के मन आता है कि उनकी मम्मी उनके लिए खास खाना बनाया है। पौष्टिक आहार के लिए बच्चों को उबले आलू, मूंगफली आदि को चाट की तरह पेश करें तो बच्चे को पसंद आते हैं।

Thursday, December 9, 2010

कितनी घातक हैं मोबाइल की तरंगें

लैंड लाइन फोन और मोबाइल फोन में एक खास अंतर है, वह यह कि लैंड लाइन में जहां तार का उपयोग होता है, वहीं मोबाइल फोन में रेडियो तरंगों का। मोबाइल फोन की ये तरंगें अत्यधिक शक्तिशाली होती हैं। जाहिर है इसका सेहत पर प्रतिकूल असर तो पड़ेगा ही।


  •  यदि मोबाइल फोन पर लगातार 20 मिनट तक बात की जाए, तो मस्तिष्क का तापमान दो डिग्री बढ़ जाता है।
  •  मोबाइल के इस्तेमाल के दौरान उससे निकलने वाली तरंगें पार्किन्सन, अल्जाइमर्स आदि रोगों का कारण बनती हैं।
  •  एक घंटे से अधिक समय तक रोजाना मोबाइल का इस्तेमाल करने से कानों में सूजन तथा घंटी बजने की आवाज सुनाई देने लगती है।
  • मोबाइल फोन के एंटीना तथा ट्रांसमीटर से निकलने वाली विद्युत चुंबकीय तरंगें कैंसर का कारण बन सकती हैं।
  • शहरों में अनेक मोबाइल कंपनियों ने अपने टावरों का जाल फैलाकर रखा है, जो रहवासी क्षेत्रों में होने से जन साधारण के लिए खतरनाक साबित हो रहे हैं।
  •  मोबाइल टावर से 300 मीटर के दायरे में रहने वाले अनेक लोगों को खून की कमी, दृष्टि दोष, यौन अनिच्छा तथ अनिद्रा जैसी शारीरिक समस्याएं भी इसके कारण हो सकती हैं।
  •   टॉवर से निकलने वाली विद्युत चुंबकी तरंगों से वयस्कों में नपुंसकता का प्रभाव होता देखा गया है।

ईयर इंफेक्शन् एक बड़ी समस्या

नाक, आंख और शरीर के अन्य अंगों की तरह हमारे कानों की सेहत का मामला भी बहुत गंभीर होता है। इस अंग की कोई भी समस्या हमारे पूरी लाइफ सर्कल को डिस्टर्ब करने का माद्दा रखती है और हमें कई तरह की समस्याएं ग्रसित कर सकती हैं। विशेषज्ञों का कहना है कि प्राय: कान में होने वाला कोई संक्रमण बच्चों को ज्यादा सताता है, लेकिन वयस्कों को भी यह समस्या बहुतायत में देखी जा सकती है।


क्या है यह संक्रमण- कान के अंदर यूस्टेशियन ट्यूब के आंतरिक भाग में विशेष तौर पर यह संक्रमण होता है। यह नली मूल रूप से कान के आंतरिक भागों को एक संकरे रास्ते से जोड़ती है, जिसके माध्यम से कान के मैल और अन्य प्रकार की गंदगी को कान से बाहर निकालने में मदद मिलती है। यहां कान के आंतरिक और बाहरी भाग में एक विशिष्ट प्रकार का दबाव क्षेत्र बनता है और कान के अंदर की स्वत: संचालित होने वाली क्रियाएं होती हैं। कान के अंदर यदि म्यूकस युक्त तरल का जमाव होने लगे, तो यह संक्रमण कहलाता है और तरह-तरह की तकलीफों का कारण होते हैं। नाक, कान रोगों के विशेषज्ञों यानि ईएनटी स्पेशलिस्ट के अनुसार प्राय: व्यस्क कॉटन को सींख आदि में लगाकर कानों को साफ करते हैं। इस तरह की क्रिया भी कान की सेहत के लिहाज से घातक होती है। कान में धोखे से छूट जाने वाली रूई एक दम से तो कोई दुष्परिणाम नहीं दिखाती, लेकिन भविष्य में यह अवस्था घातक होती है। इसके अलावा कई लोगों को बाहर पड़ी खराब तीलियों या फिर किसी धातु आदि नुकीली चीजों से भी कान के अंदर सफाई करने का शौक होता है, जो खतरनाक परिणाम दे सकता है।

क्या कहता है सर्वे- कान की तमाम तकलीफों से ग्रसित पीड़ितों पर किए गए एक सर्वे का कहना है कि प्रति चार में से एक बच्चा और वयस्क कान में संक्रमण से परेशान होता है। सर्वे में यह भी सामने आया है कि वे किसी बैक्टीरिया के संक्रमण की अपेक्षा वायरल संक्रमण से ज्यादा ग्रसित होते हैं। बुखार के समय यह वायरल इंफेक्शन शरीर में अन्य अंगों को संक्रमित करने के साथ-साथ कानों तक भी प्रसारित हो जाए, तो आश्चर्य की बात नहीं है। इस इंफेक्शन से तुरंत निजात पाना भी संभव नहीं होता।

लक्षण- कान में असहनीय दर्द होना और दबाव का ऐसा क्षेत्र कान में निर्मित होना जिससे अजीब तरह की आवाज सुनाई देना या फिर कान में किसी आवाज का ठीक से न पहुंच पाना, ये समस्याएं भी होती हैं। कारण कान के अंदर संक्रमित तरल की उपस्थित होना। कान में होने वाला यह संक्रमण तो घातक है ही, साथ ही कान के नाजुक ऊतकों में सूजन होना और भी घातक है और इसकी बढ़ी हुई अवस्था में यह कान में ब्लॉकेज की स्थिति भी निर्मित कर देती है, जिसके कारण यह अनैच्छिक संक्रमित द्रव सहजता से कान के बाहर भी नहीं निकलता और संक्रमण और ज्यादा बढ़ जाता है। इसके अलावा कान के संक्रमण में बुखार आना, कमजोरी महसूस होना, सिर में हल्का या तेज दर्द भी होता है। बच्चों की बात करें तो ये खेल-खेल में कागज के टुकड़े, बीज, चाक के टुकड़े, छर्रे और माचिस की तीलियों के टुकड़े कान में डाल लेते हैं। ऐसी स्थिति में भी तुरंत ईएनटी स्पेशलिस्ट से मिलें, क्योंकि इनके निकल जाने के बाद भी उनके कान में संक्र मण की संभावना बढ़ जाती है। यदि समय पर इस समस्या का उपचार नहीं किया जाए तो इससे जुड़ी तकलीफें आगे चलकर आपकी सुनने की क्षमता को अस्थाई रूप से या फिर स्थाई रूप से भी खत्म कर सकती है। कई समस्याओं में वातावारण से प्राकृतिक ध्वनि न सुनाई देकर अप्राकृतिक ध्वनि सुनाई देती है। साथ ही लगता है कि जैसे कान में कोई सीटी बज रही हो।

चुइंगम भी- एक हालिया अध्ययन के अनुसार एक विशेष प्रकार की जिलाईटोल युक्त चुइंगम चबाने से भी संक्रमणकारी बैक्टीरियाज को नासा द्वार में जाने से रोका जा सकता है।

उपचार- ईएनटी विशेषज्ञ पीड़ित के कान का परीक्षण करते हैं और और संक्रमित तरल को कान से बाहर निकालने का प्रयास करते हैं। साथ ही एंटीबॉयोटिक औषधियों के माध्यम से संक्रमण को सुखाने का प्रयास किया जाता है। यही नहीं इस संक्रमित तरल के कारण कान में मीठी सी खुजली का अहसास होने पर पीड़ित कान में बड्स या रूई को तीली में लगाकर कान साफ करने का प्रयास करते हैं। पिन या किसी धातु का इसके लिए इस्तेमाल करने पर यह संक्रमण जख्म में तब्दील हो सकता है और कान में रक्त मिश्रित पस भी दिखाई दे सकता है। चिकित्सक उपचार के लिए एंटीबॉयोटिक औषधियां और एक्सटर्नल ड्राप्स भी पीड़ित के पस या इस कारण हुए घाव को सुखाने के लिए देते हैं।

और भी कुछ...कान में कोई फोड़ा-फुंसी और पुराना दर्द हो तो यह जबड़ों और दांतों तक पहुंच सकता है। # कुछ लोगों के कान में जमने वाले मैल की कठोरता भी कान के संक्रमण का मूल कारण होती है। जिसका उपचार डॉक्टर वेक्स सॉल्वेंट्स के माध्यम से किया जाता है। # ओटोमाइकोसिस यानि फंगल इंफेक्शन के कारण कान में खुजली या जलन होना और पानी जैसा पस आना भी देखा जाता है। इसके उपचार के लिए पीड़ित को एंटीफंगल ड्राप्स भी दी जाती हैं।

आधुनिक पद्धतिवर्तमान में मिरिंगोटॉमी नामक माइनर सर्जरी के तहत एक पतली ट्यूब को ईयर ड्रम तक पहुंचाया जाता है और यह ट्यूब परमानेंट नहीं होती और स्वत: ही कुछ समय बाद कान के अंदर ही अंदर घुल जाती है, जब स्थिति ठीक हो जाए। इसके अलावा संक्रमित भाग की ओर नासल स्प्रे डाला जाता है, जिससे प्रदूषक पार्टिकल्स और अन्य एनवायर्नमेंटल तत्वों को कान से बाहर निकालने में मदद मिलती है व एलर्जीकारक तत्व भी हटते हैं।

स्टेच मार्क्स से कैसे बचें

गर्भावस्था या प्रसव के बाद महिलाओं में पेट के आसपास अक्सर भद्दे से स्ट्रेच मार्क्स उभरना आम है। यह उनके पेट के हिस्से की त्वचा को भद्दा बना देते हैं। वजन कम होने के बाद या वजन बढ़ने पर भी ये होते हैं। ये पतले लाल या सफेद रंग के उभरे हुए निशान पेट, छाती और जांघों के निचले हिस्से पर होते हैं। आमतौर पर ये मार्क्स त्वचा के नाजुक फाइबर्स की कमजोरी या फटने से नजर आते हैं। गर्भावस्था में हार्मोंस असंतुलन से भी होते हैं। विशेषज्ञों का कहना है कि टमी पर क्रीम से मसाज करने से लाभ होता है और त्वचा में भी रक्त का संचार इससे अच्छा होता है। कॉस्मेटोलॉजिस्ट मेधा पंशिकर का कहना है कि स्ट्रेच मार्क्स मुख्य रूप से कोलेजन प्रोटीन्स के समूहों में आई खराबी के कारण इन फाइबर्स के फटने से उत्पन्न होते हैं। ये प्रोटीन युक्त पदार्थ त्वचा को लचीलापन प्रदान करते हैं और त्वचा को बांधे रखने वाले फाइबर्स को नुकसान पहुंचने से भी बचाते हैं। यह समस्या अनुवांशिक भी होती है।


कुछ उपचार: कोका बटर को मिश्रित करके इसमें नारियल के तेल को मिलाकार अवन में तब तक रखें जब तक यह पिघल न जाए। इसे अच्छी तरह से घुमाएं और फिर ठंडा होने दें। इसके बाद इस ठंडे मिश्रण को छाती, भुजाओं, हिप्स, टमी और प्रभावित अन्य अंगों पर लगाकर इससे मसाज करें।
गर्म पानी में दो चम्मच शहद मिलाकर बाथ लेने से त्वचा की नमी लौटती है और टमी (तोंद)पर सीधे ही शहद से नहाने के दौरान मसाज करने से भी लाभ मिलता है। स्टेच मार्क प्रीवेंशन लोशंस भी प्रयोग किए जा सकते हैं।
सफेद साफ कपड़े को गर्म दूध में भिगोएं और 15 मिनट तक उसे दूध से भीगे कपड़े को अपने पेट पर रखें और यह क्रिया बार-बार इस समस्या से निजात के लिए दोहराएं। विटामिन ई और जैतून का तेल भी प्रभावित स्थान पर लगाया जा सकता है।

अकेले किशोर होते हैं खराब सेहत का शिकार

आपके किशोर होते बच्चे के खूब सारे दोस्त हैं कि नहीं। यह सवाल जरूर आपको अजीब सा लग सकता है, लेकिन इसके पीछे वास्तविकता यह है कि इसका सीधा संबंध आपके बच्चे की सेहत से भी हो सकता है। दोस्तों की संख्या आपके बच्चे की सेहत को प्रभावित करती है। एक अध्ययन के अनुसार विशेषज्ञों ने बताया है कि किशोर होते बच्चों की सेहत से जुड़ी समस्याओं के पीछे मूल कारण है उनके कम दोस्त होना। इसके लिए अमेरिका के शोधकर्ताओं ने करीब 2,060 किशोर होते बच्चों का परीक्षण किया और उन पर लंबे समय तक शोध किया। इस शोध के लिए उनकी सेहत और दोस्तों की संख्या के बारे में भी विस्तार से पता लगाया गया। करीब दो तिहाई किशोरों की हेल्थ को विविध पैमानों पर एक्सीलेंट और वेरी गुड कैटेगरी में पाया गया और बाकी किशोर सिर्फ गुड, फेयर और पूअर श्रेणी में आए, जिनमें अस्थमा, मोटापा, कमजोरी और अंधत्व के लक्षण भी अन्य की तुलना में विशेषज्ञों ने देखे। इनके मित्रों के बारे में भी जो आंकड़े आए वे दर्शाते हैं कि ऐसे बच्चों का फ्रेंड सर्कल बहुत कम या बिल्कुल सिफर था। अच्छी सेहत वाले बच्चों के लिए विशेषज्ञों का मत है कि दोस्तों का भावनात्मक सहयोग और उनका सपोर्ट व उनसे अपने दुख-सुख का आदान प्रदान बच्चों को मानसिक स्तर से मजबूत होने के साथसाथ् ा सेहत संबंधी समस्याओं से भी बचाता है। इसलिए निष्कर्ष यह निकला है कि बच्चों के जितने मित्र होंगे उनकी सेहत अच्छी रहती है, क्योंकि ऐसे बच्चे कई कारणों से खुशमिजाज रहते हैं। इस शोध को हेल्थ एंड सोशल विहेवियर जर्नल के दिसंबर अंक में प्रकाशित किया गया है।
एक्सपर्ट्स व्यू.. चिकित्सकों का कहना है कि अकेलेपन की समस्या आनुवांशिक भी हो सकती है। यदि बच्चे के माता-पिता ने भी अपने जीवन में दोस्तों से कम ही सरोकार रखा हो या फिर उनके मित्रों की संख्या कम रही हो, तो उनके बच्चों में भी अकेलेपन को पसंद करने की प्रवृत्ति देखी जा सकती है। ऐसे बच्चे क्लास में कम बोलते हैं, सहपाठियों से एक निश्चित दूरी रखते हैं। लेकिन विशेषज्ञों का कहना है कि बच्चों के समुचित विकास के लिए आवश्यक है कि वो पढ़ाई को प्राथमिकता देने के साथ-साथ मित्र बनाएं, कम्यूनिकेशन स्किल बढ़ाएं और अंदर की झिझक दूर करें, जिससे मन प्रसन्न रहता है और सेहत का हर पक्ष मजबूत होगा।

Wednesday, December 8, 2010

चटपटी पापड़ी

आवश्यक सामग्री पापड़ी के लिए
1/2 कप आटा 3 कप मैदा
1/4 कप तेल
1 टी स्पून लाल मिर्च पाउडर
1/2 टी स्पून हल्दी पाउडर
1/4 टी स्पून हींग
टी स्पून जीरा
1 टी स्पून अजवायन
2 टेबल स्पून तेल
नमक स्वादानुसार दही के लिए
4 कप दही
टेबल स्पून चीनी
2-3 करी पत्ता
1/4 टी स्पून सरसों के दाने
/4 टी स्पून जीरा
मक स्वादानुसार
2 टी स्पून तेल।

विधि
पापड़ी के लिए :
जीरा और अजवायन को अच्छे से पीस लें। मैदा में आटा, लाल मिर्च पाउडर, हल्दी, नमक, हींग, तेल और पिसी हुई अजवायन जीरा मिला कर सख्त गूंध लें। फिर छोटी-छोटी पापड़िया बनाकर गरम तेल में तल लें।
हरी चटनी: 50 ग्राम हरा धनिया, 12 कप किसा हुआ नारियल,1 टी स्पून नींबू का रस, 1 हरी मिर्च, नमक स्वादानुसार। नारियल को कद्दूकस कर लें और इसमें हरा धनिया, नमक, नींबू का रस और हरी मिर्च डालकर बारीक पीस लें।

लाल चटनी: 4-5 खजूर, 1 टेबल स्पून इमली, 14 टी स्पून लाल मिर्च पाउडरस नमक स्वादानुसार। खजूर और इमली को एक साथ उबालकर अच्छी तरह मैश कर लें। पानी डालकर अच्छी तरह पकाए और मिक्सी में पीस। अब इसमें नमक और लाल मिर्च पाउडर डालकर अच्छी तरह मिला लें। दही को फेंट कर उसमें चीनी और नमक मिला लें। तेल को गरम करके उसमें सरसों, जीरा और करी पत्ता डालकर चटकने दें और दही में डालकर मिला लें। आलू को उबालकर छोटे टुकड़ों में काट लें। अब इसमें नमक और चाट मसाला मिला लें। सर्व करने के लिए एक प्लेट में पापड़ी को डालें अब ऊपर से आलू के टुकड़े डाल दें, 3 टेबल स्पून दही डालकर मिला लें। 1 टी स्पून हरी चटनी और लाल चटनी भी डाल दें। ऊपर से लाल मिर्च पाउडर, चाट मसाला और बारीक कटे हरे धनिए से सजाकर सर्व करें।

Tuesday, December 7, 2010

स्टाइलिश स्टोल्स, सोबर स्कार्फ

लाबी ठंड अब थोड़े सुर्ख अंदाज अपना चुकी है। हवाओं में घुली ठंडक जब कानों से टकराती है, तो कंपकंपाहट पूरे शरीर में घर कर जाती है। इसी ठंड को बचाने के लिए विभिन्न स्टोल्स और स्कार्फ की रेंज मार्केट में नजर आने लगी है। यह सीजन कलर्स का सीजन माना जाता है। ऐसे में चटख रंगों से भरपूर यह स्टोल्स और स्कार्फ यूथ से लेकर प्रोफेशनल्स तक की पसंद बने हुए हैं।


स्टोल का क्या कहना :: ठंड की सुहानी दोपहर में हल्की गुनगुनी धूप में आपको कहीं जाना हो। ऐसे में न स्वेटर पहनने का मन करता है और ना ही बिना किसी गर्म कपड़े के काम चलता है। इस सिचुएशन में स्मार्ट ट्रेंडी स्टोल हो, तो यह कमी पूरी हो जाती है। इसलिए कॉलेज गोइंग गर्ल्स में स्टोल बहुत ही पॉपुलर हो चुका है। इसकी अच्छी बात यह है कि जींस से लेकर सूट तक यह किसी भी आउटफिट के साथ मैच कर जाता है। यहां तक कि साड़ीज़ के साथ भी स्टोल लेने का फैशन आ चुका है।'

ईवनिंग पार्टीज़ की शान :: ईवनिंग ड्रेसेज़ के साथ शॉल लेना भी थोड़ा आउट आफ फैशन लगता है। इसलिए ईवनिंग पार्टीज़ में भी स्टोल लेना ही आजकल का ट्रेंड बन गया है। स्टोल्स की डिफरेंट वैराइटीज़ में पार्टी वियर्स भी शामिल हैं, जिन्हें आराम से कैरी किया जा सकता है। अच्छी बात यह है कि शॉल की अपेक्षा यह लाइट वेट भी होते हैं। स्कार्फ का जादू एक जमाने में स्कार्फ को पुरुषों की एक्सेसरी माना जाता था, लेकिन अब फैशन ने स्त्रियों को भी स्कार्फ इस्तेमाल करने की आजादी दे दी है।

सिल्क स्कार्फ हो या वुलन :; मफलर, महिलाएं आराम से इन्हें गले में लटकाकर स्टाइल का आनंद ले रही हैं।
वैराइटी बेशुमार :: स्टोल्स की ही तरह स्कार्फ की बेशुमार वैराइटी भी मार्केट में मौजूद हैं। इनमें सबसे ज्यादा सिल्क के स्कार्फ को ही तरजीह दी जा रही है। प्लेन व्हाइट और एनिमल प्रिंट के स्कार्फ से बोल्डनेस भी झलकती है और खूबसरती भी। इसलिए यहां पर भी एनिमल प्रिंट्स का जादू बरकरार है।

जादू मफलर का :: स्टोल्स और स्कार्फ के साथ-साथ मफलर का जादू भी खूब छाया हुआ है। लड़कियों को ध्यान में रखते हुए अब फर स्टाइल के वुलन स्कार्फ भी आ चुके हैं। यह फरी लुक टीनेजर्स से लेकर कॉलेज स्टूडेंट्स तक सभी को

दही से निखरे सौंदर्य

ष्टिकता की दृष्टि से दही को दूध के समान ही महत्व प्राप्त है, लेकिन इसके साथ-साथ सौंदर्य के क्षेत्र में दही की उपयोगिता और उसका महत्व भी बहुत ज्यादा है।


दही के फायदे :
बालों में दही प्रयोग से रूसी की समस्या का समाधान होता है। साथ ही यह बालों की सफाई भी करता है। # रफ बालों को पोषण प्रदान करने के लिए दही को फेंटकर बालों पर लगभग बीस मिनट तक लगाकर रखें।

  • शुष्क त्वचा में दही में टमाटर कर रस मिलाकर लगाएं, लाभ होगा। 
  • दही में चंद बूंदे नींबू के रस की मिलाकर उसका पेस्ट गर्दन पर लगाकर मसाज करें। इसके प्रयोग से त्वचा में जहां निखार आता है, वहीं गर्दन सुडौल और सुंदर बनती है।
  • सनबर्न और झांइयों की समस्या के समाधान के लिए दही में जौ का आटा मिलाकर त्वचा पर लगाएं। बीस से पच्चीस मिनट के उपरांत त्वचा को पानी से धो लें। 
  • दही में अंडा फेंटकर बालों में लगाएं। इससे बालों में रूसी की समस्या का समाधान होता है। 
  • मक्के के आटे को दही के साथ मिक्स करके खुरदुरा-सा पेस्ट बना लें और उसे त्वचा पर उबटन की भांति मलें, इसके प्रयोग से भी ब्लैक हेड्स नहीं रहते हैं। 
  • दही और दूध को समान मात्रा में लेकर समस्त शरीर की मसाज करें। इससे त्वचा कोमल और मुलायम हो जाएगी। 
  • एक कप दही में मैथी के दानों को भिगोकर महीन पीस लें। इस मिश्रण को बालों में दस मिनट तक लगाएं, फिर हल्के गुनगुने पानी से धो लें। इसके प्रयोग से बाल नरम- मुलायम और सुंदर हो जाएंगे।

स्वादिष्ट फिरनी

आवश्यक सामग्री
दूध- साढ़े तीन कप
बासमती चावल-एक चौथाई
चीनी-एक चौथाई
बादाम-4 बारीक कटे हुए
पिस्ता-5-6 बारीक कटे हुए
चांदी वर्क-2 छोटे
केवड़ा एसेंस-1 बूंद
इलायची-2-3 पिसी हुई
गुलाब पंखुडी- सजाने के लिए

विधि : 
दो घंटे पहले चावलों को पानी में भिगो दें। दो घंटों बाद चावलों को पानी में से निकाल दें। चावलों को पानी में से निकाल कर 4-5 बड़े चम्मच पानी डालकर पीस लें। अब चावल के पेस्ट को आधा कप दूध डालकर पतला कर लें, ताकि बनने में ज्यादा समय न लगे।

फिरनी को बनाने के लिए सबसे पहले एक पैन में चावल के पेस्ट के साथ सारा दूध मिला लें और मध्यम आंच पर लगातार हिलाते हुए उबाल आने के लिए रख दें। इसके बाद चावल के पेस्ट एवं दूध को 2-3 मिनट के लिए मध्यम आंच पर बनने के लिए रख दें और हल्के हाथ से थोड़े-थोड़े समय में चलाते रहें, जिससे मलाईदार मिश्रण बनता रहे। अब इस पेस्ट में चीनी और इलायची पाउडर को डालें और कुछ सेकेंड तक अच्छे से मिला लें। गैस पर चढ़े इस मिश्रण को आंच से उतारें और उसमें केवड़ा या एसेंस डाल दें। आपकी फिरनी तैयार है। अब इस मिश्रण को 6 छोटी चांदी या मिट्टी की कटोरियों में निकाल कर रखें और ठंडा कर लें। हरेक कटोरी को चांदी के वर्क से और कटे हुए मेवों से सजाएं। कुछ देर तक इसे ठंडा होने के लिए रख दें। अब इसे सजाने के लिए गुलाब की पंखुड़ियां इसमें डाल दें और सर्व करें।

नीरा राडिया : केन्या में जन्म लंदन में शादी

केन्या में पैदा हुईं नीरा शर्मा दस साल की उम्र में ही अपने माता-पिता के साथ लंदन चली गई थीं। उनके पिता भी सिविल एविएशन क्षेत्र से जुड़े थे। नीरा ने गुजराती मूल के ब्रिटिश व्यापारी जनक राडिया से शादी की, तीन बच्चे भी हुए लेकिन दोनों में तलाक हो गया और नीरा भारत आ गईं। वे दिल्ली के सबसे प्रतिष्ठित इलाकों में गिने जाने वाले छतरपुर के एक शानदार फार्म हाउस में रहती हैं।

लंदन की मूल निवासी नीरा राडिया जब 1995 में भारत आईं तो उनके पास केवल एक लाख रुपए थे। सहारा समूह के लिए लाइजन से भारत में अपना कॅरिअर शुरू करने के बाद वे यूके एयर, केएलएम और सिंगापुर एयरलाइंस की भारत में प्रतिनिधि रहीं, लेकिन उनकी महत्वाकांक्षा इतनी थी कि इस एक लाख रुपए से वे क्राउन एक्सप्रेस के नाम से खुद की एयरलाइन शुरू करना चाहती थीं। आखिर भारत पहुंचने के दो साल के अंदर ही केंद्रीय नागरिक उड्डयन मंत्री अनंत कुमार उनके मित्रों की सूची में शरीक हो गए थे। वे चाहती थीं कि उन्हें हवाई जहाज खरीदने की इजाजत दे दी जाए। इसके बाद एयरलाइन शुरू करने के लिए जरूरी धन (100 करोड़ रुपए) का इंतजाम अपने आप हो जाएगा।


टाटा और अंबानी बने क्लाइंट
अनंत कुमार को सिविल एविएशन से हटाकर पर्यटन मंत्रालय दे दिया गया और क्राउन एक्सप्रेस को सरकार की सहमति नहीं मिल पाई। इसी दौरान उनकी मुलाकात रतन टाटा से हुई जिनका टाटा-सिंगापुर एयरलाइंस शुरू करने का प्रयास भी विफल हो गया था। दोनों में जान-पहचान इतनी बढ़ी कि 2001 में रतन टाटा ने टाटा समूह की सभी 90 कंपनियों का सरकार और मीडिया से लायजन (काम कराने या छपवाने का ठेका) राडिया को दे दिया। अगले नौ सालों में राडिया ने चार कंपनियां खोल दीं - वैष्णवी कम्यूनिकेशन, नोएसिस स्ट्रैटजिक कंसल्टिंग लिमिटेड, विटकॉम और न्यूकॉम कंसल्टिंग।

2008 में देश के सबसे धनी आदमी - मुकेश अंबानी - ने भी अपने लिए लॉयजनिंग का काम उन्हें दे दिया। एक अनुमान के अनुसार उनकी चार कंपनियों के पास देश की 150 से भी अधिक बड़ी कंपनियों के लिए लायजनिंग का ठेका है और उनका सालाना व्यापार चार सौ करोड़ रुपए का हो गया है। आज देश के बड़े मंत्रियों, राजनीतिज्ञों, अधिकारियों से लेकर संपादक तक राडिया से फोन पर बात करते हैं।


राजा का मंत्रालय राडिया की नीतियां
कैसे बने फोन टेप?
ए राजा के 2007 में दयानिधि मारन की जगहकेंद्रीय संचार मंत्री बनते ही राडिया की उनसे मित्रता हो गई। दोनों ने मिलकर संचार विभाग की नीतियां इस प्रकार बनाईं और बार-बार तब्दील कीं कि उनसे केवल उन्हीं कंपनियों को फायदा मिला, जिन्हें राजा-राडिया चाहते थे। उनकी हरकतों की खबर आयकर विभाग को मिली जिसने केंद्रीय प्रत्यक्ष कर बोर्ड (सीबीडीटी) से राडिया की जांच करने की अनुमति मांगी।

सीबीडीटी ने केंद्रीय गृह मंत्रालय से राडिया का फोन टेप करने की इजाजत ली और आयकर विभाग ने 2008-09 के दौरान राडिया के घर, दफ्तर और मोबाइल मिलाकर कुल नौ फोन तीन सौ दिनों तक टेप किए। जांच अधिकारियों ने 2जी स्पेक्ट्रम मामले की सुनवाई कर रहे सुप्रीम कोर्ट को बताया कि पांच हजार टेप में से वे अभी केवल 3000 टेप सुन पाए हैं। इन 3000 में से लगभग 100 टेप मीडिया के हाथ लगे, जिन्हें पिछले हफ्ते अंग्रेजी की दो साप्ताहिक पत्रिकाओं ने छापा।
 

पावरफुल राडिया के प्रभाव में?
जो टेप लीक हुए वे 2009 के लोकसभा चुनाव के बाद केंद्रीय मंत्रिमंडल बनने की प्रक्रिया के दौरान के हैं। इनमें राडिया संचार मंत्री राजा के अलावा कई पत्रकारों और अधिकारियों से बात करती सुनाई दे रही हैं। इनसे मालूम चलता है कि राडिया से बातचीत करने में कैसे बड़े और प्रभावशाली लोग उनके प्रभाव और दबाव में नजर आते हैं। उनमें से कुछ टेप के महत्वपूर्ण हिस्से हम यहां दे रहे हैं।

इनमें से अधिकतर में वे सभी से राजा को संचार मंत्रालय दिलाने के लिए लॉबिंग कर रही हैं। इनमें एनडीटीवी की मैनेजिंग एडिटर बरखा दत्त और हिंदुस्तान टाइम्स के सलाहकार संपादक वीर सांघवी राडिया से यह वादा कर रहे हैं कि वे राजा के बारे में सोनिया गांधी, राहुल गांधी, अहमद पटेल और गुलाम नबी आजाद जैसे कांग्रेस के शीर्ष नेताओं से बात करेंगे और यह भी कहेंगे कि दयानिधि मारन को कैबिनेट में न लिया जाए।

टेप से आगे क्या?
अब ये टेप सुप्रीम कोर्ट के पास हैं। लेकिन भास्कर ले कर आया है आयकर विभाग और सीबीआई के बीच इन

टेप काे लेकर हुई खतोकिताबत के जरिए उन दोनों द्वारा की जा रही जांच का ब्योरा। ये बताते हैं कि राडिया, उनके सहयोगियों और मालिकों ने विदेशों से सैकड़ों करोड़ का लेन-देन किया, सरकार को मिलने वाले टैक्स का चूना लगाया और अपने विरोधियों और देश के खिलाफ आपराधिक षड़यंत्र रचे।

Monday, December 6, 2010

तिल मटर की सब्जी

आवश्यक सामग्री
छिली हुई मटर-2 कप  
  टमाटर-1 
कसूरी मैथी-2 बड़े चम्मच
तेल-2 बड़े चम्मच
तिल-डेढ़ छोटा चम्मच
हल्दी-आधा छोटा चम्मच
लहसुन-2 कली
जीरा-एक छोटा चम्मच
प्याज-2 # नमक स्वादानुसार
धनिया पाउडर-1 छोटा चम्मच
विधि
सब्जी को बनाने के लिए पहले मटर को एक सीटी देकर कुकर में उबाल लें। इसके बाद प्याज,लहसुन, तिल, जीरा, हल्दी, धनिया और नमक का मसाला तैयार करेंगे। मसाले को सिल बट्टे या फिर मिक्सी में भी ग्राइंड करके बनाया जा सकता है। 

तिल मिल मटर को बनाने के लिए सबसे पहले 2 बड़े चम्मच तेल एक पैन या फिर कढ़ाई में गर्म करेंगे। इसके बाद आंच कम करके उसमें जीरा को हल्का ब्राउन होने तक तड़का लें। जीरा भुनने के बाद उसमें प्याज का बना हुआ मसाला डालकर भून लें। मसाले को जब तक भूने जब तक कि उसके ऊपर से तेल न तैरने लग जाए। अब इसके बाद आंच मंदी कर मसाले को चलाते हुए फ्राई करें। अब टमाटर के कटे हुए टुकड़े, बीन और मैथी को भुने हुए मसाले में मिला दें और 5 मिनट तक अच्छे से चलाएं। 

अब उबली हुई मटर और कसूरी मैथी को बनाए गए मसाले में अच्छे से मिला दें और धीमी आंच पर 4-5 मिनट तक चलाएं, ताकि मसाला मैथी और मटर में अच्छे से मैश हो जाए। इसके बाद सब्जी को गैस पर से उतार लें और उसके ऊपर से तिल छिड़क दे और इसे सजाने के लिए ऊपर से हरा धनिया डाल दें। अब तैयार है आपकी तिल मिल मटर की सब्जी। इसे नान, पराठे, चपाती और चावल के साथ गरमा गरम परोसें।

Sunday, December 5, 2010

किशोरावस्था में कम नमक फायदेमंद

एक शोध के मुताबिक यदि किशोरावस्था में नमक सेवन की मात्रा में कमी रखी जाए तो वयस्क होने पर ऐसे किशोरों को दिल व पक्षाघात के खतरे कम हो जाते हैं। एक कंप्यूटर मॉडलिंग एनालिसिस आधारित शोध के मुताबिक नमक सेवन में प्रतिदिन महज तीन ग्राम कमी लाने से वयस्क होने पर हाइपर टेंशन व उच्च रक्तचाप में 30 से 45 फीसदी कमी लाई जा सकती है। अमेरिकन हार्ट एसोसिएशन द्वारा पेश किए आंकड़े के मुताबिक नमक का कम उपभोग करने वाले ऐसे किशोरों में उम्र के 50वें पड़ाव पर पहुंचने पर कोरोनरी हार्ट डिसीज के खतरे 7 से 12 फीसदी कम हो जाते हैं, वहीं हार्ट अटैक जैसे जोखिम में भी 8 से 14 फीसदी कमी हो सकती है, जबकि पक्षाघात की समस्या में 5 से 8 फीसदी की कमी लाई जा सकती है। अमेरिकन हार्ट एसोसिएशन के मुताबिक डेढ़ ग्राम नमक का सेवन स्वास्थ्य के लिए बेहतर होता है, जबकि हालात यह है कि आज किशोर अन्य उम्र की तुलना में 3800 मिलीग्राम से अधिक मात्रा में नमक का उपभोग कर रहे हैं। नेशनल सेंटर फॉर हेल्थ स्टेटिस्टिक्स की रिपोर्ट कहती है कि किशोर उम्र के बच्चों में प्रोसेस्ड फूड की ओर बढ़ता रुझान ही इसका प्रमुख कारण है, क्योंकि प्रोसेस्ड फूड में सोडियम क्लोराइड यानी नमक की मात्रा बहुत अधिक होती है।

गौरतलब है कि एक बैग नैचो चीज में 310 मिलीग्राम से अधिक मात्रा में नमक पाई जाती है, वहीं पिज्जा को किशारों के लिए सर्वाधिक हानिकारक बतलाया गया है। शीर्ष शोधकर्ता व कैलिफोर्निया यूनिवर्सिटी में मेडिसन एंड इपीडिमियोलॉजी के प्रोफेसर डॉ. किर्सटन बिबिन्स के मुताबिक किशोरवय में कम मात्रा में नमक सेवन से व्यक्ति के प्रत्याशित जायके में भी परिर्वतन लाया जा सकता है। उन्होंने कहा कि किशोरवय में कम मात्रा में नमक सेवन से व्यक्ति भविष्य में अपनी आवश्यकतानुसार जायके में बदलाव लाने में भी सक्षम हो सकेगा।

अब मिलेगी मनचाही खूबसूरती

एक वक्त पर लग्जरियस मानी जाने वाली कॉस्मेटिक सर्जरी अब आम जिंदगी में रचती- बसती जा रही है। खासतौर पर यंगस्टर्स इसके दीवाने हैं। जो काम जिम जैसी जगह पर भी नामुमकिन सिद्ध होते हैं, वो कॉस्मेटिक सर्जरी के जरिए आसानी से हो जाते हैं। यह सर्जरी विवाह के कुछ समय पहले भी बहुत पॉपुलर हो जाती हैं। अब कॉस्मेटिक सर्जरी आम लोगों की पहुंच में भी आ गई है और यह पहले से ज्यादा सस्ती भी है। यही वजह है कि लोगों में इनका क्रेज बढ़ा है।


टमी टक- टमी टक सर्जरी में पेट से एक्स्ट्रा फैट सर्जरी के जरिए निकाला जाता है। दरअसल, हमारी बॉडी से जो फैट डाइट व एक्सरसाइज से कम नहीं होता है, उसके लिए टमी टक सर्जरी की जाती है। इस सर्जरी पर 80 हजार रुपये से 1 लाख तक का खर्चा आता है। 

फेस लिफ्ट सर्जरी- उम्र बढ़ने के साथ चेहरे और गर्दन पर झुर्रियां आ जाती हैं, जिन्हें किसी भी क्रीम वगैरह से ठीक करना मुश्किल होता है। फेस लिफ्ट सर्जरी से चेहरे और गर्दन की सारी लटकी हुई स्किन को सर्जरी से हटाया जाता है।

नोज री-शेपिंग- अगर आपकी नोज टेढ़ी या फैली हुई है, तो आप नोज री-शेपिंग सर्जरी से उसे ठीक करवा सकते हैं। इसके अलावा, सर्जरी से नोज का साइज छोटा या बड़ा भी हो जाता है।
डिंपल सर्जरी- इन दिनों कॉलेज गोइंग स्टूडेंट्स में डिंपल का खूब क्रेज है। डिंपल सर्जरी में सिर्फ दो घंटे में आपके दोनों गालों पर डिंपल बनाए जा सकते हैं।

ब्रेस्ट लिफ्ट व रिडक्शन- ब्रेस्ट लिफ्ट सर्जरी में ब्रेस्ट को सही शेप दी जाती है, ताकि वे अट्रैक्टिव लगें। ब्रेस्ट रिडक्शन में ब्रेस्ट के साइज को ठीक किया जाता है। अगर ब्रेस्ट बहुत हैवी है, तो ब्रेस्ट रिडक्शन सर्जरी करवाया जा सकता है।

लिपोसक्शन सर्जरी- इस सर्जरी में बॉडी में मौजूद फैट को कम किया जाता है। इसमें पेट, थाइज, चेस्ट और कमर की फैट को सर्जरी के द्वारा कम किया जाता है।

चीक्स करेक्शन- ऐक्ट्रेस एंजेलीना जॉली और करीना कपूर ने चीक्स करेक्शन सर्जरी करवाई है। यह सर्जरी लड़कियों को खूब पसंद है। इसमें आप अपने चीक्स बोन को इम्प्रूव करवा सकती हैं।

हेयर सर्जरी- अगर आपकी पूरी बॉडी पर बाल हैं, तो आप उसे सर्जरी के जरिए हटवा सकते हैं। इसके अलावा हेयर ट्रांसप्लांट सर्जरी भी लोग खूब करवा रहे हैं। अगर आपके सिर के बाल झड़ रहे हैं या कम हैं, तो आप हेयर ट्रांसप्लांट करवा सकते हैं।

सिक्स पैक सर्जरी- जो लोग जिम में वर्कआउट करके फोर पैक या सिक्स पैक्स नहीं बना पा रहे हैं, वे इस सर्जरी की शरण लेते हैं। जी हां, सर्जरी से भी फोर, सिक्स व एट पैक्स बना सकते हैं। इस सर्जरी के बाद आपके पेट को फ्लैट , टाइट व मसल्स को स्ट्रॉन्ग बनाया जाता है। यह सर्जरी 25 से 35 उम्र के लोग खूब करवा रहे हैं।

आईलिड लिफ्ट सर्जरी- आईलिड सर्जरी में आंखों के ऊपर और नीचे की लटकी हुई स्किन, फैट व मसल्स को रिमूव किया जाता है। अगर आपकी आंखें सूजी हुई हैं, तो वे भी आईलिड लिफ्ट सर्जरी से ठीक की जा सकती हैं। इसके अलावा, फेस लिफ्ट में केमिकल पील व लेजर स्किन रिफ्रेशिंग भी की जा सकती हैं। इससे आपकी बढ़ती उम्र को कम किया जा सकता है।

मैजिक आफ आलिव

सर्दियों में लोग अपनी त्वचा को लेकर काफी परेशान हो जाते हैं। इसकी देखभाल के लिए सैंकड़ों जतन किए जाते हैं। ज्यादातर ब्यूटीशियंस इन दिनों में तेल की मालिश की सलाह देते हैं, ताकि त्वचा को पोषण मिल सके। यूं तो बहुत सारे तेल होते हैं, लेकिन त्वचा के लिए आलिव आइल यानी जैतून का तेल सबसे फायदेमंद तेल है। मालिश करने पर यह तेल सीधे आंतरिक त्वचा में जाकर वहां उपस्थित तेल ग्रन्थियों के स्राव को बढ़ाता है। फलस्वरूप त्वचा धीरे-धीरे मुलायम व स्वस्थ होने लगती है।

कच्चे सलाद के ऊपर हल्का आलिव आइल डालकर मक्खन की तरह इस्तेमाल करना अच्छा होता है। इससे यह तेल सीधे पेट में जाकर वहां की पीएच वैल्यू को संतुलित करता है और त्वचा को स्वस्थ बनाता है। जब तेल को आग पर पकाया जाता है तो उसमें उपस्थित विटामिन ई नष्ट हो जाता है। जबकि यही विटामिन ई त्वचा में कसाव पैदा करता है। इसलिए कच्चा आॅलिव आॅइल अधिक फायदेमंद है। अत्यधिक सौंदर्य प्रसाधनों का उपयोग त्वचा को नुकसान पहुंचा सकता है। संपूर्ण शरीर पर आॅलिव आॅइल, गंधक नीम, चंदन व नमक से तैयार की गई मिट्टी का लेप त्वचा की आॅक्सीजन दर बढ़ाकर त्वचा में कसाव पैदा करता है। त्वचा पर मिट्टी का लेप सबसे स्वस्थ व सुंदर उपाय है।

कमल ककड़ी और सिंघाड़ा

आवश्यक सामग्री  
  कमल ककड़ी मोटी वाली-300 ग्राम
बारीक कटी पालक-1 कप
सिंघाड़े-3 या 4 पीस
 देसी घी या तेल-3 बड़े चम्मच
सौंफ-व् बड़ा चम्मच
जीरा-1 छोटा चम्मच
 बेसन-3 बडे चम्मच
 अदरक-1 छोटा चम्मच
 लहसुन-1 छोटा चम्मच हरी मिर्च-1
प्याज-2 बारीक कटे हुए # नमक स्वादानुसार
लाल मिर्च पाउडर-आधा चम्मच
हल्दी व अमचूर आधा छोटा चम्मच  
  धनिया पाउडर-1 छोटा चम्मच
गरम मसाला-आधा छोटा चम्मच
 दूध-आधा कप
विधि
कमल ककड़ी व सिंघाड़े की सब्जी बनाने से पहले कमल ककड़ी क ो अच्छे से छील लें। अब इनको तिरछे टुकड़ोें में काट लें। इसके बाद चार कप पानी 1 छोटा चम्मच नमक डालकर उबाल कर इसमें कमल ककड़ी के स्लाइज डाल दें। उबालने के बाद कुछ देर तक ठंडा होने दें ओर पानी से निकालकर साफ तौलिए से पोंछ लें। स्लाइज पर थोड़ा नारंगी रंग छिड़क दें और हल्के से मिलाएं जिससे सभी स्लाइज पर रंग लग जाए।

सबसे पहले कढ़ाई में तेल गरम कर लें। अब सुनहरा होने तक डीप फ्राई कर लें और अलग रख दें। इसके बाद चार बड़े चम्मच तेल कढ़ाई में डालें और गर्म होने पर जीरा तड़का लें। इसके बाद प्याज डालें और सुनहरा होने तक भून लें। अब पिसी हुई सौंफ, अदरक, लहसुन, कटी हुई हरी मिर्च, नमक, लाल मिर्च, हल्दी, अमचूर पाउडर व गरम मसाला डाल कर भून लें। इसके बाद इस मसाले में पालक डालें और 3-4 मिनट तक पकाएं। अब बेसन डालें और मंदी आंच पर अच्छे से भून लें। अब सिंघाड़ा डाल दें और 3-4 मिनट तक मध्यम आंच पर जब तक फ्राई करते रहें जब की वो अच्छे से पक न जाए और भूरी न हो जाए। जब ग्रेवी अच्छे से तैयार हो जाए तो उसमें कमल ककड़ी को डालें और मसालें में अच्छे से मिला दें ताकि पूरा मसाला उसमें मैश हो जाए। आपकी कमल ककड़ी और सिंघाड़े की सब्जी तैयार है। इसमें ऊपर से हरा धनिया डालकर सजाए और सर्व करें।

Saturday, December 4, 2010

बाजरा मैथी खाखरा

सामग्री : 
हरा धनिया - थोड़ा सा 
बाजरे का आटा - आधा कप आटा - 2
चम्मच अदरक-लहसुन पेस्ट - 
आधा चम्मच हरी मिर्च - 
एक चौथाई चम्मच (कटी हुई) मैथी की पत्ती - 
3 चम्मच (कटी हुई) 
हल्दी - एक चौथाई
चम्मच तेल - एक चम्मच 
घी - सेंकने के लिए 

विधि :
बाजरे के आटे में गेंहू का आटा, अदरक-लहसुन पेस्ट,हरी मिर्च, मैथी की पत्ती, हल्दी, तेल और नमक मिलाएं। आवश्यकतानुसार पानी डालकर आटा गूंथ लें। आटे को पांच भागों में बांट लें और पतला-पतला बेल लें। तवे को गर्म करें उसमें खाखरे को दोनों तरफ से घी लगाकर सेंक लें। एक एयरटाइट कंटेनर में बंद करके रखें।

बाजरा आलू रोटी

सामग्री : बाजरे का आटा - 2 कप
आलू - तीन-चौथाई (उबले और मैश किए हुए)
प्याज - एक चौथाई (कटा हुआ)
नारियल - एक चौथाई (किसा हुआ)
धनिया - 3-4 चम्मच (कटा हुआ)
अदरक-हरी मिर्च पेस्ट -
दो चम्मच अमचूर - 1 चम्मच
गरम मसाला - 1 चम्मच
नमक - स्वादानुसार
विधि 
सारी सामग्री को मिलाकर और आवश्यकतानुसार पानी डालकर आटा गूंथ लें। फिर उस आटे को 6 बराबर भागों में बांट लें। रोटी के जैसे बेल लें। तवे को गर्म करें और रोटी को सेंक लें। उसमें थोड़ा घी लगाएं और गर्मा- गर्म सर्व करें।

बच्चों के पैरों की सेहत का है सवाल

अक्सर बच्चों के लिए जूते का चुनाव करते समय उनके पैरों की सेहत को हम इग्नोर करते हैं, लेकिन विशेषज्ञों की हिदायत है कि बच्चों के पैरों के लिए दुकान पर जूते का चयन करना कोई मजाक नहीं है। यहां रखना होता है बहुत एहतियात। उनका कहना है कि अधिकतर माता-पिता रंग, आकार और उनका फैंसी स्टाइल देखकर जूते खरीद लेते हैं और तत्काल बच्चे को भी समझ नहीं आता। लेकिन बाद में यह बच्चों के पैरों में गलत जूता फंगस, एड़ी या टखने में दर्द और अन्य तरह की स्किन प्राब्लम का कारण हो सकता है। .

बच्चों को जूता पहनाकर देख लें कि वह उसे ठीक से आ रहा है कि नहीं। उसमें करीब आधे इंच की जगह अतिरिक्त होनी चाहिए, ताकि उनके पैरों को पूरी तरह से प्रसार मिल सके। आवश्यकता से अधिक बड़ा जूता भी बच्चों की पैरों से संबंधित तमाम तकलीफों का कारण हो सकता है। बच्चों का जूता ऐसे मटैरियल से बना हो, जिसमें से हवा पास हो सके। कैनवास और लैदर ब्रीदएबल मटैरियल कहलाते हैं। ये लंबे समय तक चलते तो हैं ही साथ ही बच्चों के पैरों को ढंडा और सूखा रखते हैं। इससे उनके पैरों में छालों से बचाव होता है, जूतों में बदबू नहीं आती है और पैरों में स्किन सबंधी समयाएं भी नहीं होती। बच्चों के पैरों के लिए हील वाले फुटवियर्स से परहेज करें, क्योंकि इस तरह के जूते उन्हें चलने में ही परेशान नहीं करते, बल्कि उनके पैरों के विकास को भी अवरुद्ध करते हैं। उनके जूतों में सोल भी जरूर हों।

Friday, December 3, 2010

केले के दही बड़े

सामग्री :
कच्चे केले - 2
बेसन - 1 कटोरी
नमक - स्वादानुसार
मिर्च - स्वादानुसार
तेल - तलने के लिए

विधि :
कच्चे केले को छीलकर कद्दुकस कर लें। इसमें नमक-मिर्च और बेसन डालकर गाढा गंूथ लें तथा इसके बड़े बनाकर तेल में तलें। सर्व करने के लिए प्लेट में रखें। सर्व करते समय मूंगफली और अमरूद की चटनी तथा दही डालकर सर्व करें।

थोड़ी परवाह अच्छी सेहत

आंखों के संक्रमण, जैसेट्रेकॉ मा या कन्जंक्टीवाइटिस को फैलने से रोकने के लिए घर के सभी सदस्यों का तौलिया अलग-अलग होना चाहिए।


  • हृदय में जलन की शिकायत पर तेल-मसाले वाले भोजन से परहेज रखें। ऐसे भोजन से अपच की समस्या भी होती है।
  • कमर के नीचे की मांसपेशियों के लिए की जाने वाली स्ट्रेचिंग एक्सरसाइज से कमर के निचले हिस्से में होने वाले दर्द से छुटकारा पाया जा सकता है। पीठ से संबंधित समस्या है, तो आपको योग्य विशेषज्ञ से सलाह लेने के बाद ही एक्सरसाइज प्रोग्राम अपनाएं।
  • मां के दूध में पर्याप्त मात्रा में प्रोटीन, लेक्टोस (मिल्क शुगर), विटामिन सी, डी और ई, आयरन, पानी, सोडियम, कैल्शियम, फोस्फेट और लीपेस होता है, जो बच्चे की पाचन प्रणाली के लिए फायदेमंद होता है। माताएं शुरुआती चार से छह महीनों तक उन्हें दूध पिलाएं।
  • कॉन्टेक्ट लैंस का प्रयोग आंखों में करते समय कभी भी लैंस पर दबाव नहीं डालना चाहिए। साथ ही ऐसे समय पर हाथ हमेशा साफ होने चाहिए

हेपेटाइटिस-बी बचाव जरूरी

हेपेटाइटिस-बी बीमारी यकृत (लिवर) में वायरस के संक्रमण से पैदा होती है। इसे सीरम हेपेटाइटिस के रूप में भी जाना जाता है और एशिया व अफ्रीका में इसके रोगी बहुतायत हैं और भारत सहित चीन में भी इस महामारी के कारण प्रतिवर्ष बड़ी संख्या में लोग असमय काल के गाल में समा जाते हैं। इन दिनों हेपेटाइटिस-बी का प्रसार कुछ ज्यादा ही हो रहा है। भारत में प्रत्येक बीस में से एक व्यक्ति हेपेटाइटिस बी से पीड़ित है और इस समय तकरीबन चार करोड़ 20 लाख लोग, इसके विषाणुओं के संवाहक हैं। विश्व के आंकड़ों पर गौर किया जाए, तो विशेषज्ञों के अनुसार करीब 2 बिलियन लोग इस बीमारी की गिरμत में है, जो चिंताजनक आंकड़ा है।
फैलाव- एचआईवी की ही तरह ही इस बीमारी के विषाणु भी रक्ताधान, सुइयों, शारीरिक द्रव्यों और असुरक्षित यौन संबंधों के जरिए, एक से दूसरे में फैल सकते हैं। इससे पीलिया, लिवरसिरोसिस और कैंसर जैसी गंभीर बीमारियां हो सकती हैं। हेपेटाइटिस बी दो प्रकार का होता है। पहला एक्यूट व दूसरा क्रॉनिक हेपेटाइटिस। एक्यूट हेपेटाइटिस के मरीज के लिवर में सूजन आ जाती है। इसकी कोशिकाएं काफी तादाद में नष्ट होने लगती हैं। रक्त में बिलरुबिन की मात्रा बढ़ जाती है, जिससे शरीर व आंखें गहरी पीली पड़ जाती हैं। मरीज कभी- कभी बेहोश तक हो जाता है। कोशिकाएं नष्ट होती रहती हैं। रोगी को मिचली व थकान का अनुभव होता है। रक्त में बिलुरूबिन व एन्जाइम की मात्रा बढ़ती है। धीरे-धीरे कुछ वर्षो में मरीज लिवर सिरोसिस का शिकार हो जाता है, जिससे मौत भी हो सकती है।
सफाई जरूरी- इस बीमारी से बचाने वाले लगभग सभी टीकों में विषैला पदार्थ ‘सीजियम क्लोराइड’ होता है, लेकिन ‘हिवैक बी’ में इसका इस्तेमाल नहीं किया गया है। कभी-कभी इस बीमारी का प्रसार संक्रमित रक्त के चढ़ाए जाने के कारण भी होता है। वहीं जिन स्थानों पर सीवर की समस्या मौजूद है या फिर मल- मूत्र की निकासी की समुचित व्यवस्था नहीं है, वहां रहने वाले लोगों में इस रोग का प्रसार ज्यादा देखा गया है।

कुछ और भी-   हेपेटाइटिस-बी का संक्रमण कई प्रकार से हो सकता है। वायरस के कुप्रभाव से कुछ लोगों में लिवर सिरोसिस हो जाता है। यदि एड्स से पीड़ित व्यक्ति के लिए प्रयोग की गई सुई किसी को चुभ जाती है, तो ऐसे प्रति दो सौ में से किसी एक व्यक्ति को एड्स का खतरा रहता है। जबकि हेपेटाइटिस बी की संभावना प्रत्येक तीन में से एक व्यक्ति को होती है। मां से बच्चे में एड्स के संक्रमण की आशंका जहां 25 प्रतिशत है, वहीं हेपेटाइटिस बी के मामले में यह नब्बे फीसदी है। असुरक्षित यौन संबंध से हेपेटाइटिस होने का खतरा भी एड्स से सौ गुना अधिक है।

निदान -हेपेटाइटिस-बी के निदान के लिए एचबीएसएजी का परीक्षण कराया जाता है। इसके अलावा लिवर फंक्शन टेस्ट भी होता है। कुछ रोगियों में लिवर बॉयोप्सी की भी जरूरत महसूस होने पर चिकित्सक इसकी सलाह भी उन्हें देते हैं। इसके लिए एंटीवॉयरल ट्रीटमेंट दिया जाता है।

लक्षण
  • मरीज को भूख नहीं लगती और मुंह का स्वाद खराब हो जाता है किसी चीज में उसे स्वाद नहीं आता।
  • आंखों में पीलापन छा जाता है। पीड़ित की स्किन का रंग भी पीला दिखाई देता है और अधिकतर मामलों में रोगियों में पीलिया जैसे लक्षण भी नजर आते हैं। इसके अलावा...
  •  मूत्र का रंग पीला हो जाता है।
  • कभी-कभी पेट में पानी भर जाता है।
  • बहुत ज्यादा कमजोरी होना और किसी काम में मन नहीं लगना व अरूचि होना।

पेट को रोकिए तोंद बनने से

सांस लेने, बैठने और खड़े होने जैसी शारीरिक क्रियाओं में पेट की भूमिका काफी अहम होती है। मजबूत और स्वस्थ पेट वाले लोग अपने पॉस्चर को सही रख पाते हैं और पीठ के दर्द से भी नहीं जूझते हैं। पेट चार मांसपेशियों के समूह से बनता है और चार अन्य एब्डॉमिनल मसल्स शरीर के ऊपरी हिस्से को सपोर्ट देती हैं। ये मसल्स तब भी काम करती हैं जब आप अपनी रीढ़ को झुकाते या फिर पीछे की तरफ खींचते हैं। खूबसूरती के हिसाब से बात करें, तो भी एब्डॉमिनल वर्कआउट न सिर्फ शरीर को सही शेप में लाता है, बल्कि उसे सुंदर भी दिखाता है।


ये ट्राय करें: लोअर एब्डॉमिनल स्ट्रेंथनर - खड़े होकर अपने दोनों हाथों को पेट के निचले हिस्से पर रख लें। अब पेट की मांसपेशियों से हाथों को ऊपर की तरफ धकेलने की कोशिश करें, साथ ही साथ पेट को पसलियों के अंदर भी खींचते चलें। इस मुद्रा को 10 तक गिनते हुए थाम कर रखें और फिर छोड़ दें, पांच बार इसे दोहराएं। इस व्यायाम को दिन में पांच बार कीजिए।

लेग राइजज़- पैरों को समतल जगह पर रखकर पीठ के बल लेट जाएं। दोनों हाथों को सीधा रखते हुए धीमे से अपने सीधे पैर को धरातल से 60 डिग्री के एंगल में ऊपर उठाएं। धीरे-धीरे इस पैर को जमीन पर वापस रखें, फिर दूसरे पैर के लिए भी यही प्रक्रिया अपनाएं। शुरुआत में इस व्यायाम को 8 से 10 बार दोहराएं और कुछ दिनों बाद इसका दोहराव बढ़ा दें। ये एक्सरसाइज आपके ऊपरी पेट और पीठ के लिए फायदेमंद है।

कुछ और टिप्स -# इन व्यायामों को बहुत आराम से करें। # व्यायाम के वक्त अपने पेट की मांसपेशियों को महसूस करें। # व्यायाम के वक्त अपने पेट को ज्यादा संकुचित करें। # अपने रोजाना के रुटीन के हिसाब से व्यायाम को व्यवस्थित करें। # टहलते वक्त आपके पैर हाथ और ह्रदय प्रणाली का व्यायाम होता है और ये वजन कम करने में मदद करते हैं, लेकिन सिर्फ टहलने से शरीर सही आकार में नहीं आता है। # याद रखें कि किसी भी व्यायाम का तुरंत लाभ नहीं मिलता है, इसलिए नियमित व्यायाम करें और अपने शरीर को फिट बनाएं।

विकिलीक्स का नया पता - www.wikileaks.ch



विकीलीक्स का सफाया करने की तमाम अमेरिकी कोशिशों के बावजूद विकिलीक्स वेबसाइट 6 घंटे बाद नए अड्रेस से लोगों से सामने आ गई। वेबसाइट अब नए नाम से खुल सकेगी जो कि wikileaks.ch है। इसके अलावा इसे http://213.251.145.96/ से भी खोला जा सकता है। सोशल नेटवर्किंग वेबसाइट ट्विटर पर बताया गया है कि वेबसाइट स्विट्जरलैंड से चलेगी, हालांकि इसके नए नाम से अंदाजा लगाया जा रहा है कि वेबसाइट स्वीडन और फ्रांस से चलाई जा रही है।

अमेरिका द्वारा विकीलीक्स वेबसाईट को हैक करने में असफल होने के बाद   अमेरिका ने विकिलीक्स की डोमेन सेवा को बंद कर दिया। 

डोमेन नेम देने वाली अमेरिकी संस्था एवरी डीएनएस ने wikileaks.org को अपनी सेवा बंद कर दी है जिसके बाद अब इस नाम से इंटरनेट पर ढूंढने के दौरान कुछ भी परिणाम नहीं आएगा। एवरी डीएनएस के नाम से जारी बयान में बताया गया है कि इस वेबसाइट को दी जाने वाली सेवा बंद कर दी गई है, क्योंकि इससे बाकी नेटवर्क के संचालन में खतरा पैदा हो गया था।

Thursday, December 2, 2010

लो कैलोरी ब्रेड चाट

सामग्री :
ब्राउन ब्रेड - 2 स्लाइस
टमाटर सॉस - 2 चम्मच
दही - 2 चम्मच
आलू - आधा (उबला हुए)
मूंग - दो चम्मच (उबली हुई)
प्याज - थोड़ा सा (बारीक कटा हुआ)
टमाटर - थोड़ा सा (बारीक कटा हुआ)
इमली की चटनी - 2 चम्मच
हरी चटनी - 2 चम्मच
काला नमक - स्वादानुसार
बारीक सेव - थोड़ी सी सामग्री
हरा धनिया - थोड़ा सा
विधि :
सबसे पहले ब्रेड को कटोरी की सहायता से गोल काटकर किनारे अलग कर दें। दो ब्रेड की स्लाइस के बीच में टमाटर सॉस लगाकर पांच मिनट रखेंगे। अब एक बड़े बोल में बाकी की सामग्री को अच्छे से मिला लें। उसके बाद सॉस लगी बे्रड के ऊपर यह मिश्रण डालें। ऊपर से हरा धनिया डालकर सर्व करें।

प्रग्नेंसी और मार्निंग सिकने

गर्भवती महिलाओं में अक्सर सुबह के समय होने वाली समस्याएं सबसे ज्यादा तकलीफदेय होती हैं, जिसे चिकित्सकीय भाषा में मॉर्निंग सिकनेस कहा जाता है। लेकिन यह भी ध्यान रखें कि एक्सपेक्टिंग विमन में इसकी बढ़ती तीव्रता इस बात की परिचायक है कि उनके यहां अब जल्दी ही कोई नन्हा-मुन्ना आने वाला है। अत: विशेषज्ञ यह भी मानते हैं कि उबकाइयां आना और उलटी की शिकायत के साथ-साथ यदि महिलाओं में मार्निंग में गुड़गुड़ाहट होना आदि भी आम है। कई महिलाओं में शरीर में अत्यधिक कमजोरी आने के भी लक्षण इस दौरान देखे जाते हैं।


क्यों होता है- गर्भावस्था के दौरान महिलाओं के शरीर में हार्मोंस की उथल-पुथल मची होती है और इसके कारण उनमें हार्मोंस के स्तर में भी असंतुलन हो जाता है। इसके कारण सारी क्रियाएं गड़बड़ा जाती हैं और शरीर को इस स्थिति में संतुलन बैठाने में काफी मशक्कत करनी पड़ती है। इसके अलावा विटामिन बी की कमी और उनके शरीर में रासायनिक परिवर्तनों के कारण गेस्ट्रोइंटेस्टाइनल ट्रेक्ट का संवेदनशील होना भी इसका प्रमुख कारण है।

उपचार
मार्निंग सिकनेस शब्द से जाहिर है कि इस तरह की जटिलताएं महिलाओं के सामने सुबह के समय आती हैं, लेकिन सिकनेस के लक्षण भी उनके मां बनने की दिशा में शुभ संकेत हैं, लेकिन कष्टप्रद भी होते हैं, जिनसे 80 फीसदी महिलाओं का पाला पड़ता है। क्या होता है विशेषज्ञों का कहना है कि इस मॉर्निंग सिकनेस के तहत उलटी के साथ घबराहट और उबकाइयां आने का अनुभव महिलाओं को होता है। साथ ही सिरदर्द, शरीर में हर कहीं दर्द, पेट रात के समय भी उनमें ये पीड़ादायक लक्षण प्रकट हो सकते हैं। अत: इससे बचने के लिए इन चीजों पर ध्यान दें...

उपरोक्त जटिलताओं से बचने का बेहतर तरीका है कि गर्भवती महिलाएं एक अंतराल से कम-कम मात्रा में भोजन करें एक साथ ज्यादा भोजन लेने की अपेक्षा यह तरीका ठीक है। भोजन में कार्बोहाइड्रेट, विटामिन जो सहजता से पच सके उनकी प्रचुरता हो।

पर्याप्त मात्रा में पानी और तरल को अहमियत दें। इससे शरीर में पानी की कमी दूर होने में मदद मिलती है।

आवश्यक है पीड़ित महिलाएं कैफीन रहित चाय जैसे अदरक वाली चाय, पोदीने की चाय को अहमियत दें। इस तरह की चाय सिर दर्द में भी लाभकारी होती है।

  इसके अलावा नींबू का रस उबकाई आने और उलटी से भी बचाव करता है। पीपरमेंट को सूंघना भी लाभकारी होता है।

ख्याल रखें, सोते वक्त खाली पेट न रहें। खाली पेट में अम्ल बनता है और एसिडिटी की समस्या सता सकती है। सुबह के वक्त ड्राय फू्रट्स और हल्का-फुल्का नाश्ता भी लेना आवश्यक है।

समस्या ज्यादा बढ़ गई हो, तो चिकित्स से परामर्श लेकर गोलियों और दवाओं से उपचार करवाएं।

Wednesday, December 1, 2010

दौड़ो, पैटी, दौड़ो

कम उम्र में ही पैटी विल्सन को उसके डॉक्टर ने बता दिया था कि उसे मिर्गी की बीमारी है। उसके पिता जिम विल्सन सुबह-सुबह जॉगिंग करते जाते थे। एक दिन पैटी मुस्करा कर बोली, ‘डैडी, मैं भी आपके साथ हर दिन दौड़ना चाहती हूं, लेकिन डर लगता है कि कहीं मिर्गी का दौरा न पड़ जाए।’ उसके पिता ने कहा, ‘अगर तुम साथ दौड़ना चाहो, तो चलो। अगर दौरा पड़ा, तो मैं तुम्हें संभाल लूंगा।’ वे दोनों साथ दौड़ने लगे। यह उन दोनों के लिए एक अद्भुत अनुभव था। दौड़ते समय पैटी को कभी मिर्गी का दौरा भी पड़ा। एक दिन वह अपने पिता से बोली, ‘डैडी, मैं दरअसल यह चाहती हूं कि महिलाओं की लंबी दूरी की दौड़ का वर्ल्ड रिकार्ड तोडूं।’ उसके पिता ने गिनीज बुक आॅफ वर्ल्ड रिकार्ड्स में देखा कि सबसे दूर तक दौड़ने वाली महिला 80 मील दौड़ी थी। हाई स्कूल के फर्स्ट ईयर में पैटी ने घोषणा की, ‘मैं इस साल आॅरेंज काउंटी से सैन फ्रांसिस्को तक दौड़ूंगी’ (400 मील)। उसने कहा, ‘सेकंड ईयर में मैं पोर्टलैंड, ओरेगन तक दौड़ूंगी’ (1,500 मील)। ‘थर्ड ईयर में मैं सेंट लुइस तक दौड़ूंगी’ (लगभग 2,000 मील)।। ‘और फोर्थ ईयर में मैं व्हाइट हाउस तक दौड़ूंगी।’ (3,000 मील से भी ज्यादा) पैटी बीमारी को देखते हुए उसके इरादे बहुत महत्वकांक्षी और उत्साहपूर्ण थे, लेकिन जैसा उसने कहा, वह मिर्गी की बीमारी को सिर्फ ‘एक परेशानी’ मानती थी। उसने इस बात पर ध्यान केंद्रित नहीं किया कि उसने क्या खो दिया, बल्कि इस बात पर किया कि उसके पास क्या बचा था। उसने सैन फ्रांसिस्को तक की ओर दौड़ पूरी की। वह एक टी-शर्ट पर लिखा था, मैं मिर्गी से प्यार करती हूं। उसके डैडी भी उसके साथ दौड़े। उसकी मां नर्स थीं, वे पीछे एक मोटर होम में चलीं, ताकि कोई गड़बड़ होने पर संभाल संभाल लें। 

सेकंड ईयर में पैटी के सहपाठी उसका हौसला बढ़ाने लगे। उन्होंने एक विशाल पोस्टर बनाया, जिस पर लिखा था,‘दौड़ो, पैटी, दौड़ो!’ (तब से यह उसका सूत्रवाक्य बन गया है और यही उसकी लिखी पुस्तक का शीर्षक भी है)पोर्टलैंड तक की दौड़ में उसके पैर में फ्रेक्चर हो गया। डॉक्टर ने कहा, ‘मैं तुम्हारे टखने पर पट्टा बांध देता हूं, ताकि कोई स्थायी नुकसान न हो।’ उसने कहा, ‘डॉक्टर, आप समझते नहीं है। यह कोई शौक नहीं है, यह तो जुनून है। मैं तो यह काम अपने लिए नहीं कर रही हूं, मैं तो यह काम उन मानसिक बेड़ियों को तोड़ने के लिए कर रही हूं, जो बहुत से लोगों को जकड़े हुए हैं। क्या कोई ऐसा तरीका नहीं है, जिससे मैं अब भी भाग सकूं?’ डॉक्टर ने उसे एक विकल्प दिया। वह पट्टा बांधने के बजाय उस पर चिपकने वाली मजबूत पट्टी बांध सकता है। उसने पैटी को चेतावनी दी की इससे बहुत दर्द होगा। फिर भी पैटी ने बंधवा लिया। आखिरी मील में ओरेगॉन के गवर्नर भी उसके साथ दौड़े। वेस्ट कोस्ट से ईस्ट कोस्ट तक लगातार चार महीने तक दौड़ने के बाद पैटी वॉशिंगटन आई और उसने अमेरिका के राष्ट्रपति से हाथ मिलाया। उसने उनसे कहा, ‘मैं लोगों को यह बताना चाहती थी की मिर्गी के रोगी भी सामान्य इंसान होते हैं और सामान्य जिंदगी जी सकते हैं।’

संकल्प की महिमा

विश्व में जितनी भी शक्तियां है उनमें सबसे बड़ी व्यापक शक्ति है संकल्प की । संकल्प का अर्थ है मस्तिष्क और हृदय दोनों की सम्मिलित क्रिया। पशु विचार करते समय स्वयं को न अतीत से जोड़ता है और न भविष्य से इसलिए उसे न पश्चाताप होता है और न कामनाएं-कल्पनाएं। उसे न असंतोष होता है और न संतोष। मनुष्य स्वयं को बदलना चाहता है, इसलिए उसे कोई उपाय चाहिए। उस उपाय का नाम है संकल्प शक्ति। आज तक मनुष्य ने जितना विकास किया है यह इसी बल के सहारे किया है। मानव से महामानव, इन्द्रिय जगत से अतिन्द्रिय जगत की यात्रा का माध्यम यही है। इस शक्ति से केवल जड़ को चेतन नहीं बनाया जा सकता। शेष सभी कार्य संपादित किए जा सकते हैं। संकल्प विचार की सघनता का नाम है। विचार कर तरलता संकल्प से जम जाती है, संकल्प शक्ति एक प्रकार की शासक शक्ति है, जो जड़ और चेतन दोनों पर शासन करती है, निकट और दूर दोनों आकाश को बांधती है, शत्रु और मित्र दोनों को रूपातीत करती है। संकल्प इन्द्रिय और अतीन्द्रिय दोनों से संबंध रखने वाली शक्ति है एक संकल्प मन को चलाता है और एक संकल्प मन को थामता है। रूस के एक वैज्ञानिक ने लिखा है हमारे भीतर साइकोइलेक्ट्रोनिक्स अर्थात ऊर्जा का जगत है इस ऊर्जा शक्ति को घटाया बढ़ाया जा सकता है हम बहुत बार ऐसी कहानियां सुनते हैं कि कागज का एक टुकड़ा टिकट बन गया कांटे फूल बन गए बर्फ से छाले पड़ गए और आग से शरीर ठंडा यह सब जादू नहीं हमारी संकल्प शक्ति का प्रभाव है।
संकल्प और एकाग्रता
  संकल्प एक विचार है। जब तक चित्त एकाग्र नहीं होता तब तक कोई संकल्प साकार नहीं होता। जिधर संकल्प जाता है उधर प्राण चेतना स्वत: सक्रिय हो जाती है । संकल्प के घर्षण से प्राण में एक प्रकार का विद्युतीय प्रवाह उत्पन्न होता है, जो लक्ष्य बिंदु पर केन्द्रित होकर व्यक्ति की मनोकामना पूर्ण करता है। मंत्र विद्या पर अनुसंधान करने वाले वैज्ञानिकों का कहना है, कम आवृति वाली तरंगों से महान ऊर्जा वाली तरंगें शांत होती हैं। तरंग जो नया जीवन, नया उत्साह प्रदान करती हैं। इसके विपरीत अल्ट्रासोनिक एक तरंग है (तेज आव्रति वाली) जो विनाश करती है, किंतु जब हम शुभ संकल्प की स्थिति में होते हैं, तब निर्माणकारी तरंगें ही पैदा होती हैं, विनाशकारी नहीं।

हमारा संकल्प हमारा शत्रु है और हमारा मित्र भी। मैं अंधकार में हं, मेरा भविष्य खतरे में है, मैं असफल यात्री हू ऐसा सोचने और बिना किसी वर्तमान संभावना के ऐसा बन जाता है। फिर क्यों नहीं हम अच्छे संकल्प करें । चुंबक कभी चुंबक को प्रभावित नहीं कर सकता, किंतु विचार प्रभावीकरण की प्रक्रिया इसके विपरीत है। बुरे विचार बुरे विचार तरंगों को अपनी और खींचते हैं और अच्छे विचार अच्छी विचार तरंगों को। जो संकल्प चेतन मन को छूकर रुक जाता है वह अपनी क्रियान्विति नहीं कर सकता। वह भाषा जगत तक जाकर रुक जाता है, जबकि उसे भाव जगत तक जाना चाहिए था। संकल्प को भीतरी तल तक ले जाने के लिये चाहिए एकाग्रता, निर्विचारता। पवित्र मन वाले व्यक्ति का संकल्प

जड़ी-बूटी से उपचार

अगर पसीने से बहुत गंध आती है, तो यह आजमाएं-
बबूल के पत्ते और बाल हरड़ को बराबर-बराबर मिलाकर महीन पीस लें। इस चूर्ण की सारे शरीर पर मालिश करें और कुछ समय रुक-रुककर स्नान कर लें। नियमित रूप से यह प्रयोग कुछ दिनों तक करते रहने से पसीना आना बंद हो जाएगा।
पसीने की दुर्गन्ध दूर करने के लिए बेलपत्र के रस का लेप शरीर पर करना चाहिए।

Sunday, November 28, 2010

भरवां टिंडा

आवश्यक सामग्री
टिंडा आधा किलो
प्याज -1
खोया- 50 ग्राम
नमक -स्वादनुसार
लाल मिर्च पाउडर - स्वादनुसार
हल्दी पाउडर- आधा चम्मच
धनिया पाउडर- 1 चम्मच
सौंफ पाउडर आधा चम्मच
अमचूर आधा चम्मच
तलने के लिए तेल

विधि
सबसे पहले टिंडों को अच्छे से छीलकर धो लें। अब एक चाकू की मदद से टिंडों के ऊपर छेद करके उसके अन्दर का सारा गूदा निकाल दें। अब निकले हुए गूदे को एक तरफ रख दें, जो कि बाद में इस्तमाल के लिए काम में आएगा। अब एक प्लेट में छोटा-छोटा बारीक प्याज काट लें और खोए को घिस लें। इसके बाद अब एक कटोरा लें और सभी मसाले नमक, लाल मिर्च पाउडर, हल्दी पाउडर, धनिया पाउडर, सौंफ पाउडर और अमचूर का मिश्रण मिला लें। अब कटा हुआ प्याज और खोए का मिश्रण मसाले में अच्छी तरह से मिला लें।

टिंडे की सब्जी को बनाने से पहले एक करछी तेल एक क ढ़ाई में गरम कर लें। अब तैयार किया हुआ मिश्रण गरम किए हुए तेल में अच्छे से 2 मिनट के लिए मंदी आंच पर भून लें। कुछ देर तक मसाले को भूनने के बाद गैस बंद कर दें। अब तैयार किया गया मिश्रण एक थाली में निकाल लें। अब तैयार मसाले के मिश्रण को सबसे पहले खोखले किए गए टिंडों में भर दें। अब फिर से कढ़ाई में दो करछी तेल गरम करें और मसाला भरे हुए टिंडे उसमे पकने के लिए रख दें। अब एक थाली से कढ़ाई को ढंक कर लगभग 15 मिनट के लिए रख दें। इसके बाद धीरे धीरे समय समय पर टिंडों को पलटते रहें ताकि वे नीचे से जल न जाएं। मंदी आंच पर टिंडों को तब तक पकाए जब तक टिंडे हर तरफ से भूरे रंग के और नरम न हो जाएं। जब टिंडे अच्छे से पक जाएं तो गैस बंद कर दें। आपके भरवा टिंडे तैयार हैं जिन्हें चपाती, पराठे और चावल के साथ गरमा गरम परोसें।

अरबी की सब्जी

सामग्री :
घुर्इंया (अरबी) - 450 ग्राम
प्याज - 100 ग्राम
टमाटर - 75 ग्राम
जीरा - एक चुटकी
अदरक और लहसुन का पेस्ट - 20 ग्राम
लाल मिर्च पाउडर - 5 ग्राम
हल्दी - 10 ग्राम नमक - स्वादानुसार
धनिया - 10 ग्राम (कटी हुई)
सरसों का तेल - 30 ग्राम
गरम मसाला - एक चुटकी
इमली का पल्प - एक बड़ी
चम्मच तेल - तलने के लिए


विधि : सबसे पहले घुईयां को अच्छे से धो लें। उसके बाद थोड़ा नमक मिलाकर उबाल लें। उबलने के बाद पानी निकाल दें और ठंडा होने दें। ठंडा करने के बाद उसके छिलके को निकाल लें। अब प्याज, टमाटर को काटें और अलग रख लें। अब एक कढ़ाही में तेल गर्म करें और घुईयां को डीप फ्राय करके अलग रख दें। फिर एक कढ़ाही में सरसों का तेल गर्म करें, उसमें जीरा डालें। फिर कटा हुआ प्याज डालकर सुनहरा होने तक पकने दें। उसके बाद टमाटर, अदरक-लहसुन का पेस्ट, लाल मिर्च पाउडर, हल्दी पाउडर, नमक, थोड़ा पानी डालकर मिला लें और मध्यम आंच पर पकने दें। ग्रेवी तैयार होने के बाद उसमें घुईयां डालें और अच्छे से मिला दें। ऊपर से इमली का पल्प डालें और 5-10 मिनट तक पकने दें। ऊपर से कआ हुआ धनिया और गरम मसाला डालें। गर्मा-गर्म सर्व करें।

वधू का पहनावा

विवाह का मौसम आ चुका है और इसकी तैयारियां भी जोरों पर शुरू हो चुकी हैं। ऐसे में बाजार में इस वक्त ज्यादातर चीजें ब्राइड्स को ध्यान में रखकर डिजाइन की जा रही हैं। दुल्हन की खास जरूरतों में से एक होता है गहना। गहनों का पैटर्न, ट्रेंड, डिजाइन या मटेरियल भले ही वक्त के साथ बार-बार बदला हो, लेकिन गहने पहनने की रवायत में कोई बदलाव नहीं आया है।


एक बार फिर बदलाव- अगर फैशन गुरुओं की बात मानें तो इस बार फिर से गहनों के ट्रेंड में अच्छा खासा बदलाव देखा जा रहा है। ज्वेलरी चाहे गोल्ड की हो, डायमंड या पर्ल की, फिर से एंटीक स्टाइल की ज्वेलरी पहनने का ट्रेंड चल पड़ा है। इसमें बेंदे के साथ साइड की लड़, बड़े-बड़े झुमके, कंठहार, बड़ी माला आदि शामिल हैं। हाथ में भी सिर्फ अंगूठी नहीं, बल्कि उससे जुड़ती लड़ वाले ब्रेसलेट फिर से इन हो गए हैं। हैवी ज्वेलरी के इस ट्रेंड को पसंद भी किया जा रहा है।

ओल्ड इज गोल्ड- यह नया दौर आने से पुरानी पीढ़ी बहुत ज्यादा खुश है। बीच में एक वक्त ऐसा था कि दादी- नानी से विरासत में मिले गहनों को पिघलाकर नए डिजाइन के जेवर बनवा लिए जाते थे। इससे उनका दिल भी टूटता था और सोने का नुकसान भी होता था। अब फिर से वही ट्रेंड आ जाने की वजह से वे गहने ज्यों के त्यों पहने जा सकते हैं।

पर्ल इज़ द बेस्ट- कहते हैं पर्ल या मोती पहनने से केवल बाह्य सौंदर्य ही नहीं, बल्कि भीतरी सौंदर्य भी निखरता है। इसलिए दुल्हन के गहनों में मोती का विशेष महत्व नजर आने लगा है। व्हाइट गोल्ड की ज्वेलरी में सजे पर्ल ड्रॉप मोती बेहद ही नाजुक और खूबसूरत लगते हैं, लेकिन चलन के मुताबिक इस डिजाइन में भी हैवी सेट्स ही चल रहे हैं।

डायमंड है इन- सोने की लगातार बढ़ती कीमतों ने लोगों का ध्यान डायमंड की ओर भी आकर्षित करना शुरू कर दिया है। इस ज्वेलरी की खासियत यह है कि भारी सेट होने के बावजूद यह गॉडी नहीं, सोबर लुक देता है। इसका पूरा सेट आपको एलीगेंट ही नहीं, बल्कि एलीट लुक प्रदान करता है।

ड्रेस के अकॉर्डिंग मैचिंग- पहले के जमाने में शादी का जोड़ा अमूमन लाल ही रहता था और जेवर सोने के बनते थे, लेकिन अब शादी का जोड़ा भी कई रंगों से सज चुका है। कॉम्बीनेशन कलर्स के जमाने में यह जोड़ा रेड एंड व्हाइट, ग्रीन एंड मैरून, क्रीम एंड मैरून, येलो एंड रेड या पिंक एंड ब्लू भी हो सकता है। इसलिए अब ज्वेलरी बनवाते वक्त शादी के जोड़े के रंग का ध्यान रखा जाता है। इसके मुताबिक ज्वेलरी में मीनाकारी करवाई जाती है या फिर बड़े स्टोन्स जड़वाए जाते हैं। यह भी एकदम ट्रेडिशनल और एंटीक लुक देता है।

रिमेंबर दिस - शादी के जोड़े के साथ यदि सुनहरे रंग के जेवर मैच नहीं कर रहे हों, तो अपनी वेडिंग ड्रेस के साथ व्हाइट गोल्ड या डायमंड की ज्वेलरी पहनें। - वेडिंग ड्रेस को इस तरह से पहनें की गहनें कहीं छिप न जाएं। - यदि आपकी नाक नहीं छिदी है और आर्टिफिशियल नथ पहनना भी आपके लिए कठिन है, तो नथ की जगह पर एक डेकोरेटिव बिंदी लगा लें। नथ का लुक मिलेगा। - अगर आपने शादी के लिए लाइट ज्वेलरी ही बनवाई है, तो ड्रेस और ट्रेंड के अकॉर्डिंग ज्वेलरी किराए पर ला सकती है। इससे वेडिंग डे पर लुक भी मिल जाएगा और आपका बजट भी नहीं गड़बड़ाएगा।

Friday, November 26, 2010

चने की भाजी

सामग्री :
हरी चना भाजी - एक किलो
लहसुन - 30 ग्राम (कटा हुआ)
राई - 5 ग्राम
टमाटर - 250 ग्राम
हरी मिर्च - 30 ग्राम (कटी हुई)
तेल - 50 ग्राम
नमक - स्वादानुसार

विधि : चने की भाजी को धो लें। उसके बाद उसे थोड़े पानी में उबाल लें। इसी पानी के साथ चने की भाजी को पकाया भी जाएगा। उबलते समय भाजी में नमक भी डाल दें। एक कढ़ाही में तेल गर्म करें उसमें राई डाल दें, फिर ऊपर से टमाटर, लहसुन, हरी मिर्च डालकर थोड़ा पका लें। अब उसमें भाजी डालें और आवश्यकतानुसार नमक डालें। थोड़ी देर पकने दें। गर्मागर्म सर्व करें।

मलाई पनीर

सामग्री:
250 ग्राम पनीर,
3 प्याज,
2 टी स्पून कटी हुई अदरक,
नमक स्वादानुसार,
1 चुटकी हल्दी,
1 टीस्पून पिसी हुई काली मिर्च,
2 टी स्पून कसूरी मेथी,
टी कप मलाई,
थोड़ा सा हरा धनिया,
1 हरी शिमला मिर्च टी स्पून तेल।


विधि: सबसे पहले पनीर को टुकड़ों में काट लें। इसके बाद प्याज, अदरक और हरा धनिया भी काट लें। फिर शिमला मिर्च भी पनीर की तरह काट लें। एक कड़ाही में तेल गरम करके प्याज को तब तक फ्राई करें, जब तक कि वो हल्के सुनहरे रंग का न हो जाए। इसमें कटी हुई अदरक , कसूरी मेथी, काली मिर्च पाउडर और नमक मिलाइए। अब इसमें शिमला मिर्च डालकर पकाएं। इसके बाद हल्दी और पनीर डालकर मिलाएं। क्रीम और हरा धनिया डालकर सर्व करें।

दाल फ्राई

आवश्यक सामग्री  
# 1 कप अरहर दाल  
# 1 प्याज लंबे टुकड़ों में कटा हुआ
# 1 हरी मिर्च कटी हुई
# 1 टमाटर बारीक कटा हुआ  
# 1 चम्मच सरसों, जीरा, धनिया और मेथी का मिश्रण  
# 1 चम्मच हल्दी  
# 1 चम्मच पिसी लाल मिर्च
# 1 इंच अदरक किसा हुआ
# 2 चम्मच तेल
# 2 चम्मच हरी धनिया पत्ती कटी हुई  
# नमक स्वादानुसार
विधि
तूअर की दाल को अच्छी तरह से धो लें। उसके बाद उसमें 2 कप पानी डालें और प्रेशर कुकर में डालें और पकाने के लिए गैस पर रख दें। दाल में दो सीटी आने के बाद गैस की आंच मंदी कर दाल को 10 मिनट के लिए पका लें। दाल अच्छे से पकने के बाद गैस बंद कर दें। अब कुकर ठंडा होने के बाद दाल को ढक्कन खोलकर निकाल लें। इसके बाद दाल को मथनी से मथ लें ताकि दाल और पानी अच्छी तरह से मिल जाए। 
सबसे पहले कढ़ाई में तेल डाल कर अच्छे से गरम कर लें। अब तेल गरम हो जाने के बाद उसमें सरसों, जीरा, धनिया और मेथी के को मिलाकर बने मिश्रण को तेल में डाल दें। इसके बाद जब सरसों चटकने लगे तो उसमें कटी हुई प्याज को डालकर हल्का ब्राउन होने तक मंदी आंच पर भून लें। जब प्याज हल्की ब्राउन हो जाए तो उसमें कद्दूकस किए हुए टमाटर और अदरक को डाल दें। इसके बाद मसाले को कुछ देर तक चलाते हुए पकाए ताकि प्याज और टमाटर नरम पड़ जाए। मसाला भुनने के बाद उसमें हल्दी और नमक डाल कर अच्छी प्रकार से मिला दें और दाल को कढ़ाई में डाल

वेज कीमा मटर

सामग्री: 400 ग्राम सोया ग्रेन्युल्स,
250 ग्राम हरा मटर,
1/2 कप दही,
1 प्याज,
4 टी स्पून तेल ,
5 काली मिर्च,
4 लौंग,
1 मोटी इलायची,
1/4 टी स्पून जीरा,
1 टी स्पून धनिया पाउडर
,1/2 टी स्पून हल्दी पाउडर,
1/4 टी स्पून लाल मिर्च पाउडर,
1 टी स्पून लाल मिर्च पाउडर,
1 स्पून अदरक का पेस्ट, लहसून का पेस्ट,
1/2 टी स्पून गरम मसाला पाउडर,
नमक।

विधि: सोया ग्रेन्युल्स को गरम पानी में 15 मिनट के लिए भीगो दें। अब कुकर में तेल गरम कर उसमें जीरा, गरम मासाला डाल दें। इसमें अदरक, लहसुन का पेस्ट और प्याज, हल्दी डालकर भूने। धनिया, हल्दी, लाल मिर्च और नमक डालें। इसमें ग्रेन्युल्स और मटर डालकर 1 गिलास पानी डालकर सीटी आने तक पकाएं। जब सब्जी बन जाए तो उसमें गरम मसाला मिला दें। प्याज और तंदूरी रोटी के साथ सर्व रके।

Thursday, November 25, 2010

क्रोध का तोड़ आपके भोजन में

पूर्ण निरोग तथा स्वस्थ रहने की कामना हो, तो क्रोध को अपने पास भी नहीं फटकने दें। क्रोध न तो शरीर को स्वस्थ रहने देता है और ना ही समाज में सम्मान पाने देता है। जहां देखो, वहीं बिगाड़ करता है।

क्रोध के कारण- व्यक्ति तो जन्म से शांत होता है। क्रोधी तो कभी नहीं। हालात ही उसे क्रोधी बना देते हैं। साथी संगी गलत होने पर भी व्यक्ति क्र ोधी हो जाता है। परीक्षा या किसी काम में बार बार की असफलता से। किसी भी कारण से हीन भावना पालने वाला व्यक्ति क्रोधी हो जाता है। कमजोर व्यक्ति को भी बात-बात पर क्रोध में आ जाता है। लंबी बीमारी भी व्यक्ति को क्रोधी बना देती है। अभिभावकों, माता-पिता द्वारा हर समय टीका-टिप्पणी भी बच्चों को क्रोधी बना देती है।

उपचार- अधिक क्रोध आने के ऊपर बताए कारण हो सकते हैं। इनके अतिरिक्त और भी कारण संभव हैं। यह तो व्यक्ति के अपने वातावरण पर निर्भर करता है। निम्नलिखित उपचार कारगर सिद्ध हो सकते हैं।उपचार भी ऐसा, जिसमें दवाओं की नहीं, बल्कि सात्विक आहार में ही ऐसे गुण होते हैं, जो आपके क्रोध को शांत करने में अहम भूमिका निभाते हैं।

गुलकंद व दूध: बहुत गुस्सा आता हो तो रोजाना रात के समय गुलकंद का एक बड़ा चम्मच खाकर, गुनगुना दूध पिया करें।

सेब का सेवन: क्रोधी व्यक्ति प्रात: खाली पेट, अच्छी किस्म के दो पके हुए मीठे सेब खाना शुरू करें। स्वभाव बदल जाएगा। आंवेल का मुरब्बा व दूध: बात- बात पर क्रोध करने वाला व्यक्ति प्रात: आंवले का मुरब्बा खाना शुरू करे और गुनगुना दूध भी पिए।

चबाने की आदत: कोई भी तरल पदार्थ, पेय पदार्थ, यहां तक कि जूस, दूध, पानी सीधे नहीं चढ़ा जाए। इसे रुक-रुककर, धीरे- धीरे पिएं। भोजन में कुछ भी खाएं, भले ही खीर, कस्टर्ड, दही जैसे नर्म पदार्थ इन्हें भी चबा- चबाकर खाएं।

नशा व मांस: यदि बहुत जल्दी क्रोध आता है, तो मांस, मछली, अंडा, शराब या अन्य कोई नशा न करते हों तो छोड़ दें।

पानी का करें सेवन: प्रतिदिन दस गिलास पानी पिया करें। अपने आहार में शहतूत, पोदीना, सौंफ, संतरा, नींबू, छोटी इलायची, खस-खस का शर्बत, बादाम शर्बत शामिल करें। पेठा: मिठाई के तौर पर पेठा क्रोध शांत करने में मदद करता है।

प्रात: की सेर: क्रोधी व्यक्ति प्रात: खुली हवा में सैर तो किया ही करें, ध्यान, प्रायायाम आदि भी करें। अवश्य लाभ होगा। जो व्यक्ति इन बातों को अपने ध्यान में रखकर, इनमें से कुछ ही, अपना ले तो आप शांत रह सकेंगे।

कितना जरूरी है हमारे लिए कैल्शियम

शरीर के स्वस्थ व संतुलित विकास के लिए हर उम्र में कैल्शियम की आवश्यकता होती है। जहां तक महिलाओं का प्रश्न है, हमारे देश की अधिकांश महिलाओं में कैल्शियम की कमी पाई जाती है। उनमें इसकी कमी किशोरावस्था से ही रहने लगती है, जो ताउम्र बनी रहती है। चूंकि महिलाएं गर्भधारण करती हैं तथा स्तनपान कराती हैं, इसलिए उन्हें खासतौर पर कैल्शियम की आवश्यकता होती है। सामान्य महिलाओं के लिए रोजाना 1000 मिलीग्राम, गर्भवती व स्तनपान करवाने वाली महिलाओं के लिए रोजाना 2010 मिलीग्राम कैल्शियम आवश्यक है। कैल्शियम की कमी के कारण हड्डियों का पोला या खोखला होना, उनका कमजोर हो टूटना, बार-बार फ्रेक्चर होना, कमर का झुकना व दर्द, हाथ-पैरों में झुनझुनी कमजोरी प्रमुख लक्षण हैं।

कमी के लक्षण- रक्तचाप का बढ़ना, दांतों का समय पूर्व गिरना, शरीर का विकास रुकना, हड्डियों में टेढ़ापन , शरीर के विभिन्न अंगों में ऐंठन या कंपन, जोड़ों का दर्द, मांसपेशियों में निष्क्रियता, जरा से टकराने पर हड्डियों का टूटना, चोट लगने पर रक्त का बहना बंद होना, मस्तिष्क का सही ढंग से काम न करना, भू्रण के विकास पर बुरा प्रभाव।

कैल्शियम के स्रोत- अनाज: गेहूं, बाजरा, दालें: मूग, मोठ, चना, राजमा, सोयाबीन, सब्जियां- गाजर, भिंडी, टमाटर, ग्वारफली, ककड़ी, अरबी, मूली, पत्तागोभी, मैथी, पुदीना, हराधनिया, करेला, चुकंदर, चौलाई, टिंडा, तुरई, नींबू, पालक, बथुआ, बैगन, लहसुन, लौकी, हरी मिर्च।

सूखे मेवे: बादाम, पिस्ता, मुनक्का, तरबूज के बीज, अखरोट, अंजीर। फल: अमरूद, आम, संतरा, अनानास, सीताफल, अनार, अंगूर, केला, खरबूजा, जामुन, नासपाती, पपीता, लीची, शहतूत, सेब।

मसाले: जीरा, हींग, लौंग, काली मिर्च, धनिया, अजवाइन, तेल। 

दुग्ध पदार्थ: दूध, दही, पनीर, मक्खन।

कंद: अदरक, सूरन, रतालू। कैल्शियम के अवशोषण के लिए विटामिन डी का सेवन बहुत जरूरी है। इसके लिए रोजाना 15 मिनट धूप पर्याप्त है।

वजन के बारे में गलत धारणा सेहत को खतरा

हाल ही में हुए एक शोध में विशेषज्ञों ने आशंका जाहिर की है कि अपने वजन के बारे में महिलाओं की गलत धारणा उनके लिए सेहत संबंधी कई परेशानियों का सबब बन सकती है। यह धारणा महिलाएं स्वयं के विश्लेषण के आधार पर ही बना लेती हैं। महिलाओं का एक वर्ग वजन बढ़ने के बाद भी खुद को नॉर्मल मानने का है और कुछ ऐसी गलत धारणा उन महिलाओं को भी हो सकती है, जिनका वजन सामान्य होता है और फिर भी वे खुद को ओबेसिटी का शिकार मान लेती हैं। मतलब महिलाओं में इस तरह के दो समूह हैं, जिनकी गलत धारणा का संबंध सिर्फ वजन को लेकर है। विशेषज्ञों का यह भी कहना है कि प्रत्येक चार महिलाओं में से एक महिला को इस तरह का भ्रम होता है कि उनका वजन नार्मल है या बढ़ रहा है।

टेक्सास मेडिकल ब्रांच, गाल्वेस्टन के शोधकर्ता महबुबुर्रहमान का कहना है कि इस तरह की गलत अवधारण महिलाओं में वजन नियंत्रित करने वाले प्रोग्राम्स और एक्सरसाइज से भी उनका ध्यान हटा देती हैं और वे इनसे वंचित रह जाती हैं। दूसरी ओर वे नार्मल महिलाएं हैं जो खुद को ओवरवेट समझती हैं। वे डाइट पिल्स या अन्य वजन घटाने वाली दूसरी विधियों का उपयोग कर खुद को दूसरी तरह के नुकसानों से ग्रस्त कर लेती हैं।

इसके लिए रहमान महिलाओं को हिदायत देते हैं कि वे अपने वजन की सही जानकारी एकत्र करने के बाद ही यह निर्णय लें कि आखिर उन्हें ओबेसिटी की समस्या है भी या नहीं। उस आधार पर वे वजन घटाने के उपाय करें और गलत धारणा के आधार पर कोई निर्णय न लें नहीं तो सेहत संबंधी अन्य परेशानियां उन्हें सता सकती हैं।

केसर सेंवइयां

सामग्री
: सेंवई - 150 ग्राम भुनी 
पानी - 750 मि.ली. 
जैतून का तेल - 3 छोटे चम्मच 
केसर - 5-7 चीनी - 50 ग्राम 
किशमिश व काजू - 100 ग्राम 

विधि : सबसे पहले एक कड़ाही में तेल गर्म करें। इनमें काजू और किशमिश को भून लें। और निकालकर अलग रख दें। इसी तेल में सेंवर्इं को भून लें और एक तरफ रख दें। अब पानी में केसर डालकर गर्म करें। उबलने लगे तब सेंवई डाल दें। फिर इसमें चीनी या कोई आर्टिफिशियल स्वीटनर डालकर अच्छी तरह पकने तक चलाएं। चलाते समय ध्यान रखें कि सेंवइयां टूटे नहीं। बीच में एक छोटा चम्मच जैतून का तेल डालकर चला दें। जब सेंवइयां पक जाएं तो भुने काजू, किशमिश डालकर ठंडा करके परोसें।

Monday, November 22, 2010

अवसाद से बचाव

जॉब या पढ़ाई के लिए घर से दूर शहरों में रह रहे युवा अकेलेपन और डिप्रेशन के शिकार हो रहे हैं। मनोवैज्ञानिकों का कहना है कि परिवार से दूरी, उनकी बढ़ती अपेक्षाएं और जॉब या पढ़ाई का दबाव इसके बाद किसी अपने का करीब न होना, किसी से मन की बात न कह पाने की परेशानी के चलते अलग-अलग शहरों से शहर आकर पढ़ाई या जॉब करने वाले युवा अवसाद और अकेलेपन के शिकार हो रहे हैं।   समाजशास्त्रियों का मानना है पारिवारिक सपोर्ट परिजनों द्वारा युवाओं को समझने और सफलता-असफलता में बराबर उनके साथ कंधे से कंधा मिलाकर खड़े रहना युवाओं को इस तरह की परेशानी से दूर रख सकता है। यह सही है कि व्यावसायिक मजबूरी के चलते युवाओं का लगातार या बार-बार परिवार के पास पहुंचना संभव नहीं लेकिन अगर परिजन निश्चित समय अंतराल पर उनसे मिलने आते रहते हैं तो वे इस तरह की समस्या से बच सकते हैं।

घेरता डिप्रेशन- हॉस्टल में रहने वाले अंतरमुखी युवा इस तरह की परेशानी का सामना जल्द करने लगते हैं। छोटी सी असफलता भी उन्हें परेशान करती है। समाजशास्त्रियों का कहना है कि वे युवा जिनके माता-पिता दोनों जॉब में होते हैं और बच्चों को पर्याप्त समय नहीं दे पाते, जो बच्चे घर में अकेले होते हैं, जो बच्चे शुरू से ही संयुक्त परिवार के हिस्सा नहीं रहे हों वे कई बार मानसिक रूप से कमजोर होते हैं और माता-पिता से संवाद की कमी होने के कारण अपनी समस्या किसी के साथ शेयर नहीं कर पाते।

टिप्स-
# अपनी क्षमताओं को पहचानें और उसके अनुसार गोल सेट करें।
# माता-पिता परिवार से कोई भी बात न छिपाएं।
# उन्हें अपनी सफलता व असफलता से अवगत कराएं।
# असफलता को जीवन की असफलता न मानें बल्कि इसे कुछ सीखने के रूप में लें।
# दोस्तों से स्वस्थ संबंध रखें उनके साथ खुशी और गम शेयर करें।
# योग की मदद लें। मॉर्निंग वाक करें और अधिकतम फिजिकल एक्सरसाइज भी करें।
# हस्तियों की आटोबायोग्राफी पढ़ें। स्वस्थ साहित्य पढ़कर समय बिताएं।
सुझाव पेरेंट्स के लिए
# बच्चों के साथ स्वस्थ संवाद बनाए रखें।
# घर में आने वाली सभी परेशानियों और खुशियों की जानकारी उन्हें दें और उनके साथ सेलिब्रेट करें ताकि बच्चे परिवार से अधिक से अधिक जुड़ सकें।
# बच्चों के पढ़ाई और जॉब के अनुभव लगातार और लगभग प्रतिदिन जानते रहें।
# बच्चों के दोस्तों से भी संबंध बनाए रखें और उनसे भी जानते रहें कि उसके ग्रुप में क्या चल रहा है।
# अगर आपको लगता है कि बच्चा बेहतर नहीं कर पा रहा तो उसे अधिक मानसिक सपोर्ट मुहैया कराएं।
# बच्चे को समझाएं कि अपेक्षित सफलता ही सब कुछ नहीं हर व्यक्ति अपनी शारीरिक और मानसिक क्षमता के अनुसार सफलता अर्जित करता है।
# बच्चे को योग की खूबियों से परिचित कराएं और योग अपनाने की सलाह दें। प्रयास करें आपकी अधिकतम छुट्टियां बच्चों के साथ बीतें।
# बर्थडे जैसे सेलिब्रेशन तो उसके साथ आपका रिश्ता मजबूत करेंगे ही अपने मैरिज एनिवर्सरी जैसे सेलिबे्रशन में भी उन्हें शामिल करें। अगर वे आप तक न आ सकें तो आप उनके पास पहुंचे।
# बच्चे की क्षमताओं को आप बेहतर जानते हैं अत: गोल सेट करने में मदद करें।
# पढ़ाई कर रहे बच्चे के टीचर्स और जॉब कर रहे बच्चे के इमिडिएट बॉस से उसकी परफॉर्मेंस के बारे में जानते रहें और आवश्यकतानुसार मदद मुहैया कराएं।
# बच्चों की सफलता को भी खुलकर सेलिब्रेट करें, इसका पूरा श्रेय उनकी मेहनत को दें। सफलता के आगे का गोल सेट करने के बजाए उसे रμतार मेंटेन कर चलने की सलाह दें।

Sunday, November 21, 2010

मधुमेह का असली कारण नहीं है शुगर

शुगर के बारे में अक्सर कहा जाता है कि वह दिल की बीमारी, मोटापे, दांत खराब करने, बच्चों में हाइपरऐक्टिविटी और मधुमेह का कारण है, लेकिन हकीकत यह नहीं है। यह भी सच है कि शुगर ऐसी रिक्त कैलोरी, जिससे ऊर्जा तो मिलती है, लेकिन और कोई पोषण नहीं। लेकिन यह शरीर के लिए कोई बड़ा खतरा नहीं है। यह सफेद क्रिस्टलीय पदार्थ हमारी जैविक प्रणाली का एक जरूरी हिस्सा है। शुगर हमारे दिमाग को सचेत रखती है। और यह ईंधन शरीर को दिन भर एनर्जेटिक रखता है। अक्सर लोगों के भोजन में बहुत सी शुगर होती है, पर उन्हें इसका आभास तक नहीं होता। यह शुगर खासकर आधुनिक जमाने के प्रौसेस्ड खाद्य पदार्थों व विविध पेय पदार्थों में अधिकता में मौजूद है। निष्क्रिय जीवनशैली, एक जगह बैठ कर काम करने की संस्कृति का संबंध हमारी डायबिटीज से है। इसलिए शहरी लोगों की आरामतलबी डायबिटीज की एक अहम वजह है।
मिथक एवं तथ्य मिथक 1- बहुत मात्रा में शकर खाने से डायबिटीज होती है।
तथ्य-टाइप1- डायबिटीज इंसुलिन बनाने वाली 90 प्रतिशत से अधिक कोशिकाओं के हृस से होती है, जो पैंक्रियाज में मौजूद होती हैं। इसका संबंध शुगर के सेवन से नहीं है।
टाइप2- डायबिटीज में पैंक्रियाज इंसुलिन बनाता रहता है, कभी कभार सामान्य स्तर से भी अधिक मात्रा में, किंतु शरीर इंसुलिन के असर पर प्रतिरोध विकसित कर लेता है, जिससे शरीर की आवश्यकता पूरी करने के लिए पर्याप्त इंसुलिन नहीं होती।
मिथक 2- मधुमेह के मरीज मीठा नहीं खा सकते।
तथ्य- मधुमेह के रोगी कुछ हद तक अपने संतुलित भोजन के हिस्से के तौर पर मीठा खा सकते हैं। इसके लिए उन्हें अपनी खुराक में कार्बोहाइड्रेट की कुल मात्रा को नियंत्रित करना होगा। मिष्ठान से सिर्फ कैलोरी मिलती है कोई पोषण नहीं । इसलिए मीठे को सीमित करें, लेकिन उसे बिल्कुल दरकिनार नहीं।
मिथक: 3- कम कार्बोहाइड्रेट वाली खुराक मधुमेह ग्रस्त लोगों के लिए अच्छी होती है। तथ्य: कम कार्बोहाइड्रट वाला भोजन प्रोटीन वसा से भरपूर होता है। उच्च वसा तथा उच्च प्रोटीन वाली खुराक से दिल और गुर्दे की बीमारियों का जोखिम बढ़ जाता है। मधुमेह ग्रस्त रोगियों को ऐसी भोजन योजना बनानी चाहिए, जिससे उन्हें कार्बोहाइड्रेट सेवन को संतुलित करने में मदद मिले

नियंत्रण करें मधुमेह को

निष्क्रिय जीवनशैली का नतीजा है मधुमेह। यह इसलिए होता है की हमारा शरीर पर्याप्त मात्रा में इंसुलिन नहीं बना पाता या फिर इंसुलिन को ठीक से इस्तेमाल नहीं कर पाता और होती हैं कई परेशानियां। अत: योगासनों का मधुमेही के शरीर पर विशेष सकारात्मक प्रभाव पड़ता है। इससे शरीर में खून की मात्रा नियंत्रित होती है, साथ ही पैंक्रियाज की क्रियाशीलता बढ़ती है, जिससे इंसुलिन स्रावित होता है। साथ ही इनसे खून में कोलेस्ट्रॉल की मात्रा व रक्तचाप नियंत्रित होता है, जो कि मधुमेह रोगों में आम है तथा तनाव भी नियंत्रित होता है। इसके लिए 20 से 30 मिनट तक योगाभ्यास करें। सुबह उठकर नित्यकर्म के बाद स्वच्छ हवादार स्थान या बगीचे में कंबल या कार्पेट बिछाकर अभ्यास प्रारंभ करें।

वज्रासन
दोनों पैर मोड़कर बैठें, दोनों पैरों के अंगूठे एक के ऊपर एक रखें। दोनों हाथ घुटनों पर रखें व पीठ सीधी रहे। सभी आसनों में एकमात्र यही आसन है, जिसमें खाना खाने के फौरन बाद लगभग 20 मिनट तक बैठना चाहिए, धीरे-धीरे समय बढ़ाएं। इसके अभ्यास से पाचन क्रिया सुचारू होती है और पेट से संबंधित व्याधियां दूर होती हैं और कब्ज मिटती है।

पश्चिमोत्तासन
दोनों पैर सामने फैलाकर ऐड़ी मिलाकर बैठें। दोनों हाथ ऊपर सीधे और पीठ सीधी रहे। अब श्वांस छोड़ते हुए आगे की ओर झुकें दोनों हाथों से दोनों पैरों की अंगुलियों को पकडें  कोहनी घुटनों के साइड से जमीन से टच करें नाक दोनों घुटनों के बीच रहे। अब कुछ सैकंड रुकते हुए वापस उठते समय श्वांस लेते हुए उठें। इस प्रकार से 10 बार करें। बिल्कुल धीरे-धीरे करें झटका न दे। इसके अभ्यास से पेट की सभी तकलीफें दूरी होती है। पैंक्रियाज पर प्रेशर पड़ता है इंसुलिन का स्राव बढ़ जाता है, कमर लचीली होती है। चर्बी कम होती है व मानसिक तनाव कम होता है।

अर्द्ध मत्स्येंद्रासन
दोनों पैर सामने फैलाएं। दाएं पैर को बाएं घुटने के साइड में रखें। अब बाएं पैर को दायीं तरफ मोड़ते हुए ऐड़ी दाएं नितंब के पास रखें। बाएं हाथ को दाएं पैर के बाहर की ओर रखें और दाएं पैर के टखने को पकड़ें। दायां घुटना बाएं कंधे से टच होता हो। दायां हाथ मोड़कर पीछे पीठ पर रखें। अब शरीर को दायीं तरफ मोडें। गर्दन पीछे की तरफ मुड़ी रहेगी। कुछ देर तक इसी स्थिति में रुकने के पश्चात फिर इसका अभ्यास दूसरी दिशा में करेंगे, श्वास क्रिया सामान्य रहेगी। इस आसान का अभ्यास कम से कम चार बार करें। इससे पैंक्रियाज की क्रियाशीलता बढ़ाती है।

गोमुखासन
बाएं पैर को मोड़कर ऐड़ी को दाएं नितंब के पास रखे। दाएं पैर को बांई जांघ के ऊपर रखे। घुटने एक के ऊपर एक रहें। अब बाएं हाथ को पीठ के पीछे ले जाएं। दाएं हाथ को भी दाएं कंधे पर से पीछे ले जाएं। अब दोनों हाथों की अंगुलियों को आपस में बांधें। पीठ बिल्कुल सीधी रहे। मधुमेह दूर करने में यह आसन कारगर है।

Saturday, November 20, 2010

सांस की बदबू से परेशान हैं?

क्या आप अपनी ही सांस की बदबू से परेशान हैं?
हमारा मुंह तमाम जीवाणुओं का जाल है ये जीवाणु दांतों के कोनों में जीभ, मसूड़े आदि जगहों पर छिपे होते हैं जो भोजन के अंशों पर जीवित रहते हैं जिससे बहुत से जीवाणुओं के किया कलापों से ऐसी गैसें बनती हैं, जो बदबूदार होती है। इसकी वजह से हमारी सांस में बदबू हो जाती है। परंतु हर व्यक्ति के मुंह से बदबू क्यों नहीं आती इसका उत्तर सरल है हमारे मुंह जो लार बनती रहती है उसमें जीवाणु नाशी शक्ति होती है यह जीवाणु को पनपने से रोकती है और सांस बदबूदार होने से बचाती है। लेकिन जब किसी वजह से मुंह में लार कम बनती है या सूख जाती है तब ये जीवाणु बेकाबू हो जाते हैं और सांस दुर्गंध युक्त हो जाती है। भूख, प्याज, सिगरेट, बीडी, शराब पीना, अधिक बोलना, बंद नाक के दौरान मुंह सूख जाता है लार सूख जाता है और मुंह से बदबू, आने लगती है उम्र के साथ-साथ शरीर के अधिकांश अंगों की कार्यक्षमता भी घटने लगती है और ग्रंथी भी इससे बच नहीं पाती है यही कारण है कि युवाओं के अपेक्षा वृद्धों में ज्यादा बदबूदार सांस की बीमारी होती है। बच्चों में लार पैदा करने की क्षमता सर्वथा अधिक होती है जिसकी वजह से उनकी सांस में एक अलग तरह की भीनी-भीनी गंध आती है।
सांस की बदबू दूर करने के आसान तरीके
  • अपनी लार ग्रंथी को फिर से साकार करने की जरूरत है। इसके लिये पान खायें। मिश्री मुंह में रखकर चूसें फिर पानी पियं तुरंत सांस की बदबू गायब हो जायेगी।
  • भोजन को अधिक चबाकर खाना चाहिये कारण अधिक चबाने से मुंह में अधिक लार बनती है और मुंह के अधिक जीवाणुओं को नष्ट कर देती है और बचे कुचे जीवाणु भोजन के साथ पेट के अंदर चली जाती है।
  • दांतों को ब्रश से साफ करें क्योंकि कैसे-कैसे के जीवाणुओं के नष्ट कर।
  • हल्का भुना जीरा चबाये बदबू जाती रहेगी।
  • हरा धनिया पत्ता चबाऐ।
  • जब भी पानी के नजदीक जाये कुल्ला अवश्य करें।
  • .इलायची या मुलेठी चबाते रहें।
  • एक चम्मच अदरक का रस गुनगुने पानी में डालकर कुल्ला करें।
  • मुंह साफ करते समय दांत, जीभ तालू मसूड़े सबकी ठीक से सफाई करने चाहिये। कोई भी माउथ वॉश इस्तेमाल करते हैं। उससे थोड़ी देर के लिये इस समस्या से निजात जरूर मिल जाता है पर फिर वही बदबू कारण इनमें जो अलकोहल है वह मुंह को सुखा देता है हमारी लार ग्रंथी उससे प्रभावित होती है। और लार को सुखा देती है और सांस की बदबू फिर आने लगती है। इसके लिये हर थोड़ी देर पर पानी पियें। ऐसी चीजों का सेवन करें जो लार ग्रंथी को सक्रिय रखें तथा जीवाणुओं को पनपने दें।
टॉसिंल (जल्द से जल्द आराम दिलाने वाला नुस्खा)
  • मुंह के द्वारा शरीर में प्रवेश करने वाले बाहरी तत्वों को गले में ही रोककर हमारी कई रोगों से रक्षा करता है ये टॉसिल बढ़ना कहते हैं। कई बार इस छोटी सी सूजन की परेशानी पर अगर ध्यान न दिया गया तो ये कई जटिलताऐं पैदाकर सकती है। इसका अंतिम उपाय है ऑपरेशन। वैसे तो कोई भी रोग हो अगर तुरंत चिकित्सा न की गई तो ठीक करने की या ठीक होने की संभावनाऐं बहुत कम हो जाती हैं। समय रहते आप छोटे से छोटे रोगों का भी उपचार करें तो अच्छा है। अगर टॉसिल बढ़ भी गया हो तो कोई बात नहीं इस नुस्खे को प्रयोग में लाकर आप काफी हद तक फायदा पा सकते हैं।
  • सामग्री-
  • 1.अकरकरा 4 ग्राम
  • 2. सेंधा नमक डेढ़ ग्राम
  • शीतल चीनी 3 से 4 ग्राम
  • छोटी पीपर- 4 ग्राम
  • 5.अनार का छिलका – 25 ग्राम
  • 6.मुलहठी – 5 ग्राम
  • विधि- सबको मैदे जैसा महीन पीस शीशी में रख लें। रोगी इस पाउडर को अंगुली से टॉसिल पर दिन में तीन-चार बार मुंह नीचे करके लगाये ताकि लार टपके। पूर्ण रूप से लाभ मिलने तक इसे प्रयोग करें। पहले दिन से ही लाभ महसूस करने लगेंगे।