Saturday, November 6, 2010

आलोचना भी है काम की

आत्मनिर्भरता का अहसास हासिल करने के लिए यह अनिवार्य है कि हम आलोचना से निबटना सीख लें। आलोचना झेलना हममें से कुछ लोगों के लिए बहुत मुश्किल हो सकता है। कई बार तो सिर्फ एक नकारात्मक टिप्पणी से ही किसी व्यक्ति की आत्म-छवि तबाह हो सकती है। लेकिन अभ्यास से यह सीखा जा सकता है कि हम अपने आलोचकों के सामने सुरक्षित कैसे खड़े रहें। विंस्टन चर्चिल ने एक बार ब्रिटिश जनरल ट्यूडर के बारे में लिखा था, जिन्होंने मार्च 1918 के बड़े जर्मन आक्रमण का सामना करते समय एक डिवीजन का नेतृत्व किया था: ‘ट्यूडर की जो छवि मेरे दिमाग में थी, वह थी लोहे के एक खूंटे की, जो ठोस धरती में गड़ा था और अचल था।’ युद्ध में संभावनाएं उनके खिलाफ थीं, लेकिन ट्यूडर बड़ी शक्ति का सामना करने का तरीका जानते थे। वे दृढ़ता से सिर्फ खड़े रहे और सामने वाले की शक्ति हमला करने में बर्बाद होती रही।

अगर हमें आत्मविश्वासी और आत्मनिर्भर बनना है, तो हमें मुश्किलों और आलोचना के सामने इसी तरह की मजबूती की जरूरत है।’ यह कोई नई बात नहीं है। लोग हमेशा हमसे कहते हैं कि हमें आलोचना से ऊपर जीना चाहिए और अपने खुद के राग को सुनना चाहिए। लेकिन अच्छी सलाह से सच्ची आत्मनिर्भरता तक पहुंचने की यह छलांग लंबी है। तो आप अपने व्यक्तित्व को सबसे अच्छी तरह शक्तिशाली कैसे बना सकते हैं? यहां पर कुछ गुण बताए जा रहे हैं, जो मैंने लीक से हटकर जीवन जीने वाले लोगों पर अक्सर देखें हैं-
  • लोग अपने दिमाग में आने वाले विचारों को खुलकर व्यक्त करते हैं- अगर हम अपनी राय ज्यादा खुलकर व्यक्त करें, तो शायद हमारी बातचीत ज्यादा दिलचस्प हो सकती है।
  • लोग कभी-कभार खुद को हां कहने के लिए दूसरों को नहीं कह देते हैं- व्यवहार कुशलता के साथ नहीं कहने या इंकार करने के बहुत से तरीके होते हैं। और मान लीजिए, अगर कभी कभार हमारे इंकार से किसी को चोट पहुंच भी जाए, तो उससे क्या? यह उस चाशनी भरी जिंदगी जीने से तो बेहतर ही है, जहां हम हमेशा दूसरों की इच्छाओं के अनुसार काम करते रहें। ऐसे समय होते हैं, जहां सर्वश्रेष्ठ काम करने के लिए सिर्फ अच्छे काम को नहीं कहना होता है।
  • लोग अपना समय ऐसे लोगों के साथ गुजारते हैं, जो उनकी अपारंपरिकता को प्रोत्साहित करते हों- ऐसे लोगों को खोजना एक दुर्लभ प्रतिभा है, जो आपके प्रति वफादार हों और आपकी रक्षा करने के साथ-साथ आपको  निजता की जगह भी दें। आप उन्हें बहुत महत्व देना सीख लेते हैं और उन्हें भी निजता की उतनी ही जगह देते हैं, जितनी कि वे आपको देते हैं।
  • उनमें अक्सर सहज प्रवृत्ति होती है- अगर हम अपनी भावनाओं के प्रति सच्चे हैं, तो हममें से ज्यादातर लोग पाएंगे कि हम स्वाभाविक रूप से कुछ ट्रेडमार्क विकसित कर लेते हैं। परंपरा का प्रतिरोध करना और थोड़ा नवाचारी होना आत्मनिर्भरता व आत्मविश्वास की दिशा में एक महत्वपूर्ण कदम है।

2 comments:

अजित गुप्ता का कोना said...

किसी भी क्रिया की ही प्रतिक्रिया होती है, इसलिए आप कुछ कर रहे हैं तभी आलोचना भी प्रारम्‍भ होती है। आलोचना के डर से जो कार्य बन्‍द कर देते हैं वे हमेशा ही भगोड़ों की तरह जीवन जीते हैं। अच्‍छा आलेख।

Sunil Kumar said...

sarthak post, saty hi saty