Saturday, November 6, 2010

घाघ भड्डरी की मौसम सम्बन्धित कहावतें

नक्षत्र ज्योतिष विद्या के महारथी कहे जाने वाले घाघ-भड्डरी की कहावतें उत्तर प्रदेश, बिहार और राजस्थान के ग्रामीण अंचलों में आज भी प्रचलित हैं तथा बडे़ चाव से सुनी और सुनाई जाती हैं।

लोकगाथा के इस ज्योतिषी के जन्म के समय और स्थान को लेकर अनेक लोकोक्तियां हैं। कोई उन्हें महान ज्योतिषाचार्य वराहमिहिर का पुत्र बताता है तो कोई मुगल बादशाह अकबर के समकालीन होने का दावा करता है। यह भी कहा जाता है कि उनका जन्म सत्रहवीं शताब्दी के आसपास हुआ था।

बहरहाल इतना तो तय है कि घाघ-भड्डरी की नक्षत्र गणना पर आधारित कहावतें ग्रामीण अंचलों में आज भी बुजुर्गों के लिए मौसम को मापने का यंत्र हैं। इन दिनों जब सभी मानसून में देरी होने से व्यग्र हो रहे हैं, वर्षा और मानसून को लेकर उनकी कहावतों पर गौर किया जा सकता है। भड्डरी की एक कहावत है –

उलटे गिरगिट ऊंचे चढै।
बरखा होइ भूइं जल बुडै।।


यानी यदि गिरगिट पेड़ पर उल्टा होकर अर्थात पूंछ ऊपर की ओर करके चढे़ तो समझना चाहिए कि इतनी वर्षा होगी कि पृथ्वी पानी में डूब जाएगी। इसी तरह भड्डरी कहते हैं, कि

पछियांव के बाद।
लबार के आदर।।


जो बादल पश्चिम से या पश्चिम की हवा से उठता है ‘वह नहीं बरसता’ जैसे झूठ बोलने वाले का आदर निष्फल होता है।

सूखे की तरफ संकेत करने वाली घाघ-भड्डरी की एक कहावत है –

दिन को बादर रात को तारे।
चलो कंत जहं जीवैं बारे।।


इसका मतलब है कि अगर दिन में बादल हों और रात में तारे दिखाई पड़े तो सूखा पडे़गा। हे नाथ वहां चलो जहां बच्चे जीवित रह सकें।

सूखे से ही जुड़ी उनकी एक और कहावत है –

माघ क ऊखम जेठ क जाड।
पहिलै परखा भरिगा ताल।।
कहैं घाघ हम होब बियोगी।
कुआं खोदिके धोइहैं धोबी।।


अर्थात यदि माघ में गर्मी पडे़ और जेठ में जाड़ा हो, पहली वर्षा से तालाब भर जाए तो घाघ कहते हैं कि ऐसा सूखा पडे़गा कि हमें परदेश जाना पडे़गा और धोबी कुएं के पानी से कपडे़ धोएंगे।

अतिवृष्टि की तरफ संकेत करने वाली भड्डरी की एक और कहावत है –

ढेले ऊपर चील जो बोलै।
गली गली में पानी डोलै।।


इसका तात्पर्य है कि अगर चील ढेले पत्थर पर बैठकर बोले तो समझना चाहिए कि इतना पानी बरसेगा कि गली, कूचे पानी से भर जाएंगे।

वर्षा की विदाई का संकेत देने वाली उनकी एक कहावत है –

रात करे घापघूप दिन करे छाया।
कहैं घाघ अब वर्षा गया।।


अर्थात यदि रात में खूब घटा घिर आए, दिन में बादल तितर-बितर हो जाएं और उनकी छाया पृथ्वी पर दौड़ने लगे तो घाघ कहते हैं कि वर्षा को गई हुई समझना चाहिए।

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