Thursday, November 18, 2010

वायरल फीवर

हर मौसम में होने वाला वायरल फीवर,जो आसानी से अपनी चपेट में ले लेता है। क्यों ?
बुखार आपके शरीर की रोग प्रतिरोध क्षमता (लड़ने की क्षमता) और संक्रमण की तीव्रता का आनुपातिक संघर्ष है, जो ज्वर के रूप में सामने आता है। सही जाँच से ही  रोग के सही निदान में  सहायता मिलती है और चिकित्सक सही दवा दे सकते हैं।

ज्वर या बुखार से हम सभी भली-भाँति परिचित हैं और कभी न कभी इससे पीड़ित भी हुए हैं। बुखार शरीर में प्रवेश वाइरस से हुए संक्रमण का एक आम लक्षण है। साधारण संक्रमण कम से कम 2-3 दिनों में स्वतः या कुछ सामान्य औषधियों से ठीक कर देता है किसी रोगी को बार-बार बुखार आने पर चिकित्सक को बीमारी का सही इलाज करने के लिए कुछ जाँचें कराना ही पड़ती हैं। बुखार के सबसे अधिक होने वाले कारण हैं- मलेरिया, टायफाइड, गले थ्रोट इंफेक्शन, यूरिन इंफेक्शन, या वायरल फीवर आदि। असल में बुखार आपके शरीर की रोग प्रतिरोध क्षमता (लड़ने की क्षमता) और संक्रमण की तीव्रता का आनुपातिक संघर्ष  का नतीजा है, जो ज्वर के रूप में सामने आता है।

हमारे देश में कई मौसम आते-जाते हैं जैसे सर्दी, गर्मी और बरसात। जब एक मौसम से दूसरे मौसम में बदलाव होता है, तो इसके बीच का समय सबसे ज्यादा नुकसानदायक है। इसके पीछे कारण यह है कि हम इस बदलाव के लिए तैयार नहीं होते हैं या हम थोड़ी सी लापरवाही कर देते हैं, तो हमारे ऊपर बदलता मौसम असर कर जाता है और हम किसी न किसी तरह के बुखार के शिकार हो जाते हैं। जैसे सर्दी, जुकाम, वायरल फीवर) हो जाता है। मौसम के आते भी व जाते भी, ये वायरल  मेल कहलाता है, जो एक  दूसरे के साथ रहने से भी हो जाता है मतलब आपके सामने किसी ने छींका, खांसा या सांस भी ली, तो इसके कीटाणु हवा के जरिये दूसरे के नाक-मुंह से होकर शरीर के भीतर तक पहुंच जाते हैं।
और आप को भी वहीं जुकाम, खांसी, बुखार सरदर्द शुरू हो जाता है। इसका असर कई दिनों तक रहता है। वायरल फीवर का कोई खास डॉक्टरी  इलाज नहीं है,  इसके लिये हमें अपना ध्यान खुद ही रखना होगा। सबसे पहला काम, कभी खाली पेट घर से बाहर न निकलें। इसके पीछे कारण यह है कि खाली पेट, शरीर को कमजोर करता है। मौसम के हिसाब से कपड़े पहनें, मौसम के हिसाब से आहार लें, मौसमी फल सब्जियाँ जरूर खायें। अगर बाहर खायें तो सफाई का पूरा ध्यान रखें। बासी खाना, फल सब्जियां खाने की कोशिश न करें।
अगर आप को वायरल फीवर हो ही गया हो तो-
  • आप तुलसी के पत्ते तथा अदरक का इस्ताल करें। तुलसी की पत्तियों में कीटाणुओं को मारने की     जबरदस्त  क्षमता   होती है।
  • तुलसी की पत्तियाँ चबायें या फिर काढ़ा बनाकर पियें।
  • काढ़ा ऐसे बनायें- एक कप पानी में 8-10 तुलसी की पत्तियाँ, 8-10 दाने काली मिर्च के, थोड़ी अदरक कूचकर डाल दें। एक लौंग, थोड़ी दालचीनी, एक चुटकी सोंठ इन सबको एक ग्लास पानी में उबालें जब तक पानी आधा न रह जाय। फिर छान कर स्वादानुसार नमक चीनी मिलायें फिर पी जायें।(आजमाए  हुए नुस्खे)
  • जैसे ही आपको वायरल फीवर का असर महसूस हो इस काढ़े को बनाकर दिन में दो बार कम से कम पियें। इसका कोई साइड इफेक्ट नहीं होता है। इसको पीने से बदन दर्द, सिर दर्द, खांसी व जुकाम में राहत मिलेगी और शरीर फुर्तीला होगा।
  • आप रात को सोते समय एक कप दूध में चुटकी भर हल्दी उबालकर उसमें चीनी डालकर पियें। हल्दी एंटीबायटिक होती है। वायरल के कीटाणुओं का नाश करने में मदद करती है।
  • सावधानी- उपर दिये  काढ़ा नुस्खे को पीकर खुली हवा में न घूमें।
  • केले में एक प्राकृतिक गुण यह भी होता है कि यह हमें मौसमी बीमारियों से भी बचाता है। मौसम बदलने के साथ होने वाली बीमारियों से बचने के लिए केले का इस्तेमाल करें।
  • सिविल अस्पताल के वरिष्ठ फिजिशियन डा. संजीव ग्रोवर ने बताया कि बदलते मौसम में खांसी, जुकाम, बुखार, गला खराब होने के साथ-साथ पेट खराब होने की शिकायत आती है। पेट खराब होने का प्रमुख कारण बाहर का उल्टा-सीधा खाना है। इससे पाचन तंत्र पर असर पड़ता है। यही नहीं गर्मी व सर्दी का एक साथ अनुभव भी होता है वायरल में ।
  • इन बातों का रखें ध्यान : बाहर निकलते समय ध्यान रखें। गर्मी से एक दम ठंडी जगह पर न जाएं। एसी व कूलर का परहेज करें। पंखे का इस्तेमाल करें। बाहर के खाने का परहेज करें। मच्छरों से भी बचाव के प्रबंध करें।
  • शुद्ध पानी की शुद्धता का  विशेष ध्यान रखें।
  • मौसमी बीमारी नही होती  केले में एक प्राकृतिक गुण यह भी होता है कि यह हमें मौसमी बीमारियों से भी बचाता है। मौसम बदलने के साथ होने वाली बीमारियों से बचने के लिए केले का इस्तेमाल करें।
    नीम- मौसम के बदलने से पहले से ही आप नीम की कोमल पत्तियों चबाना शुरू कर दें।रोग निरोधक शक्ति तथा इम्यून पावर बढ़ेगी।
    मौसम में अचानक परिवर्तन होने के कारण बच्चे वायरल फीवर से ग्रसित हो रहे हैं। बच्चों में प्रतिरोधक क्षमता कम होने के कारण  इन बीमारियों के प्रति विशेष सावधानियां बरतनी चाहिए। मौसम में उतार चढ़ाव होने के कारण बच्चों को बुखार होने की अधिक संभावना रहती है। समय से उपचार व कुछ सावधानियां बरतनी चाहिए
    बुखार होते ही माथे पर ठंडी पट्टी रखना चाहिए। बुखार होने पर हल्का खाना दें। बुखार उतार-चढ़ाव होने पर तरल पदार्थ खाने को दें। बाहर के खाने का परहेज करें तथा बुखार होने पर बिना चिकित्सक परामर्श के दवाई का उपयोग न करने की सलाह दी जाती है
    जब तक बुखार कम न हो जाए खुले और शीतल कमरे में रहें
    शरीर में दर्द व ज्वर को कम करने के लिए क्रोसिन [पैरासीटामोल] का सेवन कर सकते हैं
    सादे पानी से स्पंज करें
    डिहाइड्रेशन की कमी पूरी करने के लिए अधिक तरल पदार्थ लें, जैसे पानी, सब्जियों व फलों का रस
    बिना तेल का हल्का भोजन करें
    कॉफी, चाय, भी कम  पिएं
    टीवी न देखें व ऎसा कोई काम न करें जिससे दिमाग पर जोर पड़े
  • मौसमी बीमारी नही होती – केले में एक प्राकृतिक गुण यह भी होता है कि यह हमें मौसमी बीमारियों से भी बचाता है। मौसम बदलने के साथ होने वाली बीमारियों से बचने के लिए केले का इस्तेमाल करें।
  • नीम- मौसम के बदलने से पहले से ही आप नीम की कोमल पत्तियों चबाना शुरू कर दें।रोग निरोधक शक्ति तथा इम्यून पावर बढ़ेगी।
  • मौसम में अचानक परिवर्तन होने के कारण बच्चे वायरल फीवर से ग्रसित हो रहे हैं। बच्चों में प्रतिरोधक क्षमता कम होने के कारण  इन बीमारियों के प्रति विशेष सावधानियां बरतनी चाहिए। मौसम में उतार चढ़ाव होने के कारण बच्चों को बुखार होने की अधिक संभावना रहती है। समय से उपचार व कुछ सावधानियां बरतनी चाहिए
  • बुखार होते ही माथे पर ठंडी पट्टी रखना चाहिए। बुखार होने पर हल्का खाना दें। बुखार उतार-चढ़ाव होने पर तरल पदार्थ खाने को दें। बाहर के खाने का परहेज करें तथा बुखार होने पर बिना चिकित्सक परामर्श के दवाई का उपयोग न करने की सलाह दी जाती है
  • जब तक बुखार कम न हो जाए खुले और शीतल कमरे में रहें
  • शरीर में दर्द व ज्वर को कम करने के लिए क्रोसिन [पैरासीटामोल] का सेवन कर सकते हैं
  • सादे पानी से स्पंज करें
  • डिहाइड्रेशन की कमी पूरी करने के लिए अधिक तरल पदार्थ लें, जैसे पानी, सब्जियों व फलों का रस
  • बिना Iघी  तेल का हल्का भोजन करें
  • कॉफी, चाय, भी कम  पिएं
  • टीवी न देखें व ऎसा कोई काम न करें जिससे दिमाग पर जोर पड़े

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