देवभूमि उत्तराखंड में स्थित अनेकों देवस्थलों में दैवीय-शक्ति व आस्था के अद्भुत केंद्र बने पूर्णागिरि धाम की विशेषता ही कुछ और है। जहां अपनी मनोकामना लेकर लाखों लोग बिना किसी नियोजित प्रचार व आमंत्रण के उमड पडते हैं जिसकी उपमा किसी भी लघु-कुंभ से दी जा सकती है। टनकपुर से टुण्यास तक का संपूर्ण क्षेत्र जयकारों व गगनभेदी नारों से गूंज उठता है। वैष्णो देवी की ही भांति पूर्णागिरि मंदिर भी सभी को अपनी ओर आकर्षित किए रहता है। हिंदू हो या मुस्लिम, सिख हो या ईसाई- सभी पूर्णागिरि की महिमा को मन से स्वीकार करते हैं। देश के चारों दिशाओं में स्थित कालिकागिरि, हेमलागिरि व मल्लिकागिरि में मां पूर्णागिरि का यह शक्तिपीठ सर्वोपरि महत्व रखता है। समुद्रतल से लगभग 3 हजार फीट ऊंची धारनुमा चट्टानी पहाड के पूर्वी छोर पर सिंहवासिनी माता पूर्णागिरि का मंदिर है जिसकी प्रधान पीठों में गणना की जाती है। संगमरमरी पत्थरों से मण्डित मंदिर हमेशा लाल वस्त्रों,
सुहाग-सामग्री, चढावा, प्रसाद व धूप-बत्ती की गंध से भरा रहता है। माता का नाभिस्थल पत्थर से ढका है जिसका निचला छोर शारदा नदी तक गया है। देवी की मूर्ति के निकट स्थित इस स्थल पर ही भक्तगण प्रसाद चढाते व पूजा करते हैं। मंदिर में प्रवेश करते ही कई मीटर दूर से पर्वत शिखर पर यात्रियों की सुरक्षा के लिए लगाई गई लोहे के लंबे पाइपों की रेलिंग पर रंग-बिरंगी पोलोथीन पन्नियों व लाल चीरों को बंधा देकर यात्रीगण विस्मित से रह जाते हैं। देवी व उनके भक्तों के बीच एक अलिखित अनुबंध की साक्षी ये रंग-बिरंगी लाल-पीली चीरें आस्था की महिमा का बखान करती हैं। मनोकामना पूरी होने पर फिर मंदिर के दर्शन व आभार प्रकट करने और चीर की गांठ खोलने आने की मान्यता भी है। टनकपुर से टुण्यास व मंदिर तक रास्ते भर सौर ऊर्जा से जगमगाती ट्यूबलाइटें, सजी-धजी दुकानें, स्टीरियो पर गूंजते भक्तिगीत, मार्ग में देवी-देवताओं की प्रतिमाएं, देवी के छंद गाती गुजरती स्त्रियों के समूह सभी कुछ जंगल में मंगल सा अनोखा दृश्य उपस्थित करते हैं। रात हो या दिन चौबीस घंटे मंदिर में लंबी कतारें लगी रहती हैं। मस्तक पर लाल चूनर बांध या कलाई में लपेटे भूख प्यास की चिंता किए बिना जोर-जोर से जयकारे लगाते लोगों की श्रद्धा व आध्यात्मिक अनुशासन की अद्भुत मिसाल यहां बस देखते ही बनती है।
चारों ओर बिखरा प्राकृतिक सौंदर्य
ऊंची चोटी पर अनादि काल से स्थित माता पूर्णागिरि का मंदिर व वहां के रमणीक दृश्य तो स्वर्ग की मधुर कल्पना को ही साकार कर देते हैं। नीले आकाश को छूती शिवालिक पर्वत मालाएं, धरती में धंसी गहरी घाटियां, शारदा घाटी में मां के चरणों का प्रक्षालन करती कल-कल निनाद करती पतित पावनी सरयू, मंद गति से बहता समीर, धवल आसमान, वृक्षों की लंबी कतारें, पक्षियों का कलरव- सभी कुछ अपनी ओर आकर्षित किए बिना नहीं रहते। चैत्र व शारदीय नवरात्र प्रारंभ होते ही लंबे-लंबे बांसों पर लगी लाल पताकाएं हाथों में लिए सजे-धजे देवी के डोले व चिमटा, खडताल मजीरा, ढोलक बजाते लोगों की भीड से भरी मिनी रथ-यात्राएं देखते ही बनती हैं। वैसे श्रद्धालुओं का तो वर्ष भर आवागमन लगा ही रहता है। यहां तक कि नए साल, नए संकल्पों का स्वागत करने भी युवाओं की भीड हजारों की संख्या में मंदिर में पहुंच साल की आखिरी रात गा-बजा कर नए वर्ष में इष्ट मित्रों व परिजनों के सुख, स्वास्थ व सफलता की कामना करती हैं। मंदिर में दर्शन के बाद निकट ही नेपाल में स्थित ब्रह्मदेव बाजार में उपलब्ध दैनिक उपयोग की विदेशी वस्तुएं खरीदने के लोभ से भी लोग बच नहीं पाते। जूता, जींस, छाता, कपडा व इलेक्ट्रॉनिक वस्तुएं वहां आसानी से मिल जाती है।
प्रचुरता पर्यटन-स्थलों की
पर्यटन में दृष्टिकोण से टनकपुर व पूर्णागिरि का संपूर्ण क्षेत्र अत्यंत महत्वपूर्ण है। प्राचीन ब्रह्मदेव मंडी, परशुराम घाट, ब्रह्मकुंड, सिद्धनाथ समाधि, बनखंडी महादेव, ब्यान, धुरा, श्यामलाताल, भारामल, भुमियागाड, खिलपत्ति, शारदा व्यू आदि अनेक प्राचीन ऐतिहासिक व धार्मिक स्थल पर्यटकों के आकर्षण का केंद्र हैं। मंदिर आने वालों की संख्या में वृद्धि को देखते हुए इस तीर्थ के कायाकल्प का प्रयास किया जा रहा है। ककराली-भैरोमंदिर हाट मिक्स रोड, स्नान-घाट, सुलभ शौचालय, रैन-बसेरा आदि पर कार्य जारी है। ठूलीगाड से देवी दरबार तक रोप वे ट्राली लगाने की भी स्वीकृति प्राप्त हो चुकी है।
कैसे पहुंचें:
उत्तराखंड के चम्पावत जिले में टनकपुर से 20 किलोमीटर दूर है पूर्णागिरि मंदिर। टनकपुर राज्य के उन गिर-चुने स्थानों में से एक है जहां के लिए बरेली से सीधी ट्रेन सेवा है। कुमाऊं के बाकी शहरों से टनकपुर सडक मार्ग से जुडा है। दिल्ली, नैनीताल, हल्द्वानी व बरेली से सीधी बसें हैं। हवाई मार्ग से जाने वालों के लिए 131 किमी दूर पंत नगर सबसे निकट का हवाई अड्डा है
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