Saturday, November 20, 2010

हकलाना कोई रोग नहीं है, सिर्फ दोष है

सामान्य व धाराप्रवाह ढंग से बोलने में अयोग्यता को हकलाना कहते हैं। कभी-कभी सामान्य व्यक्ति भी तनाव,घबराहट,डिप्रेशन,आवेग में क्षणिक हकला जाता है इसका यह मतलब नहीं कि वह व्यक्ति हकलाता है।

हकलाना मतलब- बोलने वाला बालक या व्यक्ति पहले शब्द के उच्चारण में कठिनाई महसूस करता है।उसकी जीभ मुंह में खिंच जाती है और मुंह की मांसपेशियों में स्वत: संकोच आ जाता है फलस्वरूप बोलने के लिये झटका सा लगाना पड़ता है।यह एक ऐसी मानसिक कुंठा है जिसे सिर्फ हकलाने वाला ही समझ सकता है या फिर चिकित्सक। हकलाहट के कारण व्यक्ति,या बालक के गुणों का स्वाभाविक विकास नहीं हो पाताहै।हालांकि कि वे मानसिक रूप से मंद नहीं होते लेकिन वाणी दोष उनकी प्रतिभा को उजागर नहीं होने देती।

हकलाने के कुछ कारण-
-वंशानुगत भी होता है
-हकलाकर बोलने की नकल करते करते आदत बन जाती है
-आक्समिक सदमा लगने से भी
-बहुत जल्दी-जल्दी बोलने की आदत
-तनाव,घबराहट,आवेग की स्थिति में
यह सब वाणी दोष को जन्म देती है लेकिन इससे पीड़ित व्यक्ति समझ नहीं पाता ऐसी स्थिति में व्यक्ति को विशेषज्ञ(डॉ) के पास जाना चाहिये।
सामान्य हकलाहट को सुनियोजित अभ्यास तथा समुचित प्रशितक्षण द्वारा घर पर ही ठीक किया जा सकता है।
समस्या तब होती है जब यह गंभीर रूप धारण करले।ऐसे में व्यक्ति पूर्ण रूप से कुंठित हो जाता है।परंतु इससे संबंधित तमात संस्थाएं भी हैं।जैसे-ऑल इंडिया इंस्टीट्यूट,ऑफ स्पीच एंड हियरिंग, मनिपाल इंस्टीट्यूट ऑफ बैंगलोर जहां इस रोग की चिकित्सा की जाती है।इन केंद्रों में वाणी सुधार के लिये कोई भी व्यक्ति भर्ती हो सकता है।उन्हें ठीक होने में तकरीबन तीन माह का समय लग जाता है या फिर कई बार इससे भी ज्यादा। यह स्वयं रोगी पर निर्भर करता है कि रोगी कितनी कुशलता से पूरा कर पायेगा।
इसको सुधारने में सबसे अधिक भूमिका माँ-बाप को ही निभीनी होती है।
माँ बाप को चाहिये कि ऐसे बालकों के लिये

निम्न उपाय करें
-धीरे धीरे बोलने का अभ्यास कराऐं
-स्वर उच्चारण पर ध्यान दें कारण स्वर ही शब्द तथा वाणी का आधार है
-हकलाने के बावजूद भी खूब बोलने तथा पढने का अभ्यास करायें।
-बच्चे या व्यक्ति को अनावश्यक सोच विचार में न फंसने दें
-जब कोई हकलाकर कर बोलता है तो लोग अक्सर हंस देते हैं जो हकलाने वाले के लिये अपमान जनक होता है।उसे प्रेम तथा स्नेह से समझाना चाहिये।हकलाकर बोलने वाले बालक को अपने इस दोष से निजात पाने के लिये बराबर अभ्यास कराना चाहिये न कि कुंठित होकर बैठ जानें दें।
बच्चों में तुतलाना और हकलाना प्राय देखा जाता है। यह वास्तव में कोई रोग नहीं होता वरन कुछ पौष्टिक तत्वों की शरीर में कमी के कारण ही होता है। तुतलाने और हकलाने की दशा में निम्न जड़ी-बूटियों का प्रयोग दिये गये तरीके से करने में लाभ अवश्य होता है।
1. बच्चे को एक ताजा हरा आँवला रोज चबाने के लिये दें। बच्चे से कहें कि पूरा आँवला वह चबा कर खा ले। इससे बच्चे की जीभ पतली हो जायेगी और उसके मुख की गर्मी भी समाप्त हो जायेगी। बच्चे का तुतलाना और हकलाना बन्द हो जायेगा।
2. बादाम गिरी 7 और काली मिर्च 7 लेकर कुछ बूंद पानी में घिस कर चटनी बना लें और उसमें थोड़ी-सी मिश्री मिला लें तथा बच्चे को चटा दें। नियमित रूप से लगभग एक या दो माह तक ऐसा करें। हकलाना और तुतलाना समाप्त हो जायेगा।
3. प्रातकाल मक्खन में काली मिर्च का चूर्ण मिलाकर चाटने से कुछ ही दिनों में हकलाहट दूर हो जाती है।
4. तेजपात को जीभ के नीचे रखने से हकलाना और तुतलाना ठीक हो जाता है।
5. हरा धनिया व अमलतास के गूदे को एक साथ पीस कर रख लें। पानी मिलाकर 21 दिनों तक कुल्ली करने से हकलाहट समाप्त हो जाती

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