Friday, November 5, 2010
सफलता के राज्यमार्ग
सफलता के सूत्र असफलताओं के झंझावातों में से निकलते हैं। सफलता की खोज असफल हुए कारणों में निहित होती है। यदि असफल हुए कारणों को ढूंढ़- खोजकर उनका निराकरण कर दिया जाए, तो सफलता शत-प्रतिशत सुनिश्चित है। फिर इससफलता को कोई रोक नहीं सकता। सफलता के परिदृश्य में केवल उन बातों पर गौर किया जाता है, जिनका क्रियान्वयन करना है, परंतु असफलता से हाथ लगे कारणों में उन स्थितियों का भेद खुलता है, जिन्हें अपनाया गया होता तो सफलता अवश्य मिलती। अत: असफलता के निदान-निराकरण से सफलता का सौंदर्य निखरता है। इस सफलता का सेहरा उसी के सिर पर सजता है, जो कर्त्तव्य और भावना के द्वंद्व में जीत जाता है, उनसे उबर जाता है। सफल वही होता है, जो अपने अस्तित्व को धारदार वज्र बनाकर अपने लक्ष्य पर टूट पड़ता है। इससे कम में सफलता नहीं मिल सकती है। अस्तित्व का तात्पर्य है क्रिया, विचार और भावना-तीनों का समन्वय एवं एकीकरण। जिनके इन पक्षों में संपूर्ण सामंजस्य नहीं होगा, वह टूटेगा, बिखरेगा एवं बंटेगा। बंटे हुए, विभाजित अस्तित्व से सफलता नहीं पाई जा सकती है। सफल तो वही होता है, जो अपने लक्ष्य के प्रति अपने संपूर्ण अस्तित्व को खो देने का साहस कर सके। सफलता के लिए इतनी कीमत अदा करनी ही पड़ेगी। इससे फतह करना भी चाहते हैं और ठंड से घबराते हैं, तो कभी भी इन शिखरों पर जीत का परचम लहराया नहीं जा सकता है। द्वंद्व असफलता का कारण है। द्वंद्व से समस्तमानसिक एवं भावनात्मक ऊर्जा फंसकर नष्ट हो जाती है। जब ऊर्जा ही नष्ट हो जाएगी, तो सफलता के लिए आवश्यक साहस, शौर्य एवं जज्बा कहां से मिलेगा! इस जज्बे के लिए ऊर्जा की आवश्यकता पड़ती है और यह ऊर्जा तभी मिलती है, जब कोई द्वंद्व के दलदल से ऊपर उठता है। इसको पीछे छोड़ आगे बढ़ने का साहस करता है। द्वंद्व से ऊपर उठते ही हमें शक्ति मिलेगी। मन एवं भाव नवीन ऊर्जा से भर उठेंगे। ऊर्जान्वित मन एवं हृदय विचारों एवं भावनाओं को नई ऊंचाई प्रदान करते हैं। जैसे-जैसे विचारों एवं भावनाओं मेंसामंजस्य बढ़ेगा, रचनात्मकता एवं सृजनात्मकता के नवीनतम आयाम खुलते चले जाएंगे। फिर किसी भी क्षेत्र में कुछ नया करने के लिए साहस एवं शौर्य भी निरंतर मिलता रहेगा, क्योंकि इसमें भावना की ऊर्जा भी तो समाविष्ट होती है। भावना परिष्कृत होती है, तो उसमें बलिदानी जज्बा पैदा होता है। किसी भी कार्य को मनोयोग एवं साहसपूर्वक किया जा सकता है। यह सफलता का प्रथम सोपान है। सफलता के मूल में मनोयोग एवं साहस का होना आवश्यक है और यह केवल द्वंद्व से पार चले जाने से मिल जाता है। द्वंद्व से पार चले जाने से सकारात्मक विचारों एवं पावन भावनाओं का बंद स्रोत स्वत: फूट पड़ता है। इस स्रोत के खुलते ही सफलता की अनेक ऊंचाइयां खुलती चली जाती हैं। दरअसल असफलता हमारी कमजोरी एवं दुर्बल मानसिकता में है, जो अनगिनत चिपचिपे, धुंधले एवं अस्पष्ट नकारात्मक विचार ये बताते, जताते हैं कि हम कैसे असफल होंगे। इनसे घिरा व्यक्ति उन बातों पर अधिक ध्यान केंद्रित करता है, जिन पर किसी कीमत पर तवज्जो नहीं देनी चाहिए। वह उस मुद्दे पर बहस करना अधिक पसंद करता है, जिसका कोई मूल्य नहीं होता है और जो सफलता के लिए सदा बाधक होता है।
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