Friday, November 5, 2010

दीवाली के रूप अनेक

यूं तो दीवाली मनाने के पीछे एक ही मान्यता है कि इस दिन भगवान राम 14 साल का वनवास खत्म करके अयोध्या वापस लौटे थे वैसे, इस दिन दीये तो सभी जलाते हैं, लेकिन हर समुदाय और संस्कृति का प्रभाव इस त्योहार को मनाने के तरीके में दिखाई जरूर देता है:
महाराष्ट्र में है नरक चतुर्दशी का महत्व
मराठी संस्कृति में दीवाली से ज्यादा महत्वपूर्ण चतुर्दशी का दिन होता है। बैंकर प्रवीण मुले बताते हैं, 'धनतेरस पर दिन में हम लक्ष्मी पूजन करते हैं। इस दिन सुबह नहाकर हम घर में नए आभूषणों और चांदी के सिक्कों का पूजन करते हैं। इसके बाद ही खाना खाते हैं। हमारे लिए नरक चतुदशीर् का दिन बहुत महत्वपूर्ण होता है। पौराणिक मान्यताओं के अनुसार, भगवान कृष्ण ने नरकासुर को खत्म किया था। यह भी अधर्म पर धर्म की विजय थी। इसे याद रखने और बच्चों को समझाने के लिए नरक चतुर्दशी के दिन 'कारिट' फल को अपने पैर से तोड़ते हैं।'

दरअसल इस दिन घर के पुरुष सुबह उठकर इस कड़वे फल को 'गोविंदा गोविंदा' कहते हुए अपने पैर से तोड़ते हैं और इसके बाद स्नान करते हैं। यह फल नरकासुर का प्रतीक माना जाता है। इसके बाद इस दिन पोहे में गुड़ मिलाकर एक खास तरह का व्यंजन बनाया जाता है, जिसे पड़ोसियों और रिश्तेदारों में बांटा जाता है। इस समुदाय में प्रतिपदा के दिन भी एक विशेष रीति निभाई जाती है। इस दिन घर के पुरुषों की महिलाओं द्वारा आरती उतारी जाती है। गृहणी प्रणाली कदम के अनुसार, 'इस प्रथा के जरिए घर के पुरुषों को उनका महत्व समझाया जाता है। दरअसल, वे ही पूरे घर के पालक होते हैं, इसलिए यह रिवाज निभाया जाता है।'

पंजाबी करते हैं हट्ड़ी की पूजा
पंजाबी दीपावली के दिन एक खास पूजा करते हैं। एडवोकेट मल्लिका पंजाबी कहती हैं, 'दीपावली के दिन ही हमारे यहां चांदी का सिक्का खरीदा जाता है और शाम को इसकी पूजा की जाती है। इससे पहले हम 'हटड़ी' खरीदकर लाते हैं। जिसमें भगवान गणेश की फोटो लगाने के बाद इसके बीचोंबीच एक मिठाई रखी जाती है। गृहणी इस मिठाई को घर के सदस्यों में बांटती हैं। माना जाता है कि इस प्रसाद को खाने के बाद कमाई में बरकत होती है।'


गुजरात में है लाभ पंचमी का महत्व
गुजराती समुदाय यूं तो धनतेरस से लाभ पंचमी तक दीपावली मनाता है, लेकिन उनके लिए लाभ पंचमी का विशेष महत्व है। गुजराती समुदाय को खासतौर पर व्यवसायी माना जाता है, इसलिए व्यवसाय से जुड़ी हर रीति यहां महत्वपूर्ण होती है। व्यवसायी जिग्नेश ठक्कर बताते हैं, 'दीपावली के दिन हम चोपड़ा पूजन करते हैं। दरअसल, यह बहीखातों की पूजा होती है। हालांकि इनकी पूजा तो दीवाली के दिन ही हो जाती है, लेकिन लाभ पंचमी के दिन इसमें लिखना शुरू करते हैं। इसलिए यह दिन हमारे लिए विशेष महत्वपूर्ण होता है।' वैसे, दीपावली के अगले दिन ही गुजराती नया साल मनाते हैं।


मारवाड़ की दीवाली
मारवाड़ में दीवाली मनाने का अलग रिवाज है। इस समुदाय के लोग धनतेरस के दिन सोने या चांदी की कोई वस्तु जरूर खरीदते हैं, जिसे बेहद शुभ माना जाता है। इसी दिन शाम को 'जम की पत्तल' बांटी जाती है। ऐसे में हलवा, लापसी (मीठा दलिया) या चूरमा बनाकर एक पत्तल में सजाकर 13 घरों में बांटा जाता है। इसके बाद चतुर्दशी को 'रूप चौदस' या 'अणक चतुर्दशी' कहकर मनाया जाता है। इस दिन घर की महिलाएं सूर्योदय से पहले उठकर हल्दी का उबटन लगाने के बाद स्नान करती हैं। पुरानी मान्यता के अनुसार, ऐसा करने से उन्हें सौंदर्य और स्वास्थ्य की प्राप्ति होती है। फिर वे मंदिर जाकर राई, चावल, गेहूं या मिठाई का घेरा बनाकर उसमें दीपक जलाती हैं। मान्यता है कि ऐसा करने पर यमलोक में मिलने वाली यातना कम हो जाएगी। अमावस्या के दिन शाम को सोने-चांदी के आभूषणों और चांदी के सिक्कों के साथ लक्ष्मी और गणेश का पूजन होता है।


जैन धर्म में दीवाली का अलग अंदाज
दीप और रोशनी के त्योहार दीवाली को हिंदू धर्म के साथ-साथ जैन धर्म में भी धूमधाम से मनाया जाता है। दरअसल, 527 बीसी में इसी दिन जैन धर्म के 24वें तीर्थंकर भगवान महावीर को निर्वाण प्राप्त हुआ था। यही नहीं, इसी दिन भगवान महावीर के प्रमुख गणधर गौतम स्वामी को भी कैवल्य ज्ञान की प्राप्ति हुई थी। जैन ग्रंथों के मुताबिक, महावीर भगवान ने दीवाली वाले दिन मोक्ष जाने से पहले आधी रात को आखिरी बार उपदेश दिया था, जिसे 'उत्तराध्यान सूत्र' के नाम से जाना जाता है।

भगवान के मोक्ष में जाने के बाद वहां मौजूद जैन धर्मावलंबियों ने दीपक जलाकर रोशनी की और खुशियां मनाईं। साथ ही, उन्होंने यह निर्णय लिया कि आज यहां जल रहे दीपकों के प्रकाश की तरह भगवान महावीर के ज्ञान को भी सारी दुनिया में फैलाया जाएगा। हालांकि जैन धर्म में दीवाली को विशेष रूप से त्याग और तपस्या के त्योहार के तौर पर मनाया जाता है, इसलिए इस दिन जैन धर्मावलम्बी भगवान महावीर की विशेष पूजा करके उनके त्याग तपस्या को याद करते हैं और उनके जैसा ही बनने की कामना करते हैं। दीवाली यानी वीर निर्वाणोत्सव वाले दिन सभी जैन मंदिरों में विशेष पूजा का आयोजन किया जाता है।

1 comment:

आशीष मिश्रा said...

बहोत ही अच्छी जानकारी
आप को भी सपरिवार दिपोत्सव की हार्दिक शुभकामनाएँ