फैलाव- एचआईवी की ही तरह ही इस बीमारी के विषाणु भी रक्ताधान, सुइयों, शारीरिक द्रव्यों और असुरक्षित यौन संबंधों के जरिए, एक से दूसरे में फैल सकते हैं। इससे पीलिया, लिवरसिरोसिस और कैंसर जैसी गंभीर बीमारियां हो सकती हैं। हेपेटाइटिस बी दो प्रकार का होता है। पहला एक्यूट व दूसरा क्रॉनिक हेपेटाइटिस। एक्यूट हेपेटाइटिस के मरीज के लिवर में सूजन आ जाती है। इसकी कोशिकाएं काफी तादाद में नष्ट होने लगती हैं। रक्त में बिलरुबिन की मात्रा बढ़ जाती है, जिससे शरीर व आंखें गहरी पीली पड़ जाती हैं। मरीज कभी- कभी बेहोश तक हो जाता है। कोशिकाएं नष्ट होती रहती हैं। रोगी को मिचली व थकान का अनुभव होता है। रक्त में बिलुरूबिन व एन्जाइम की मात्रा बढ़ती है। धीरे-धीरे कुछ वर्षो में मरीज लिवर सिरोसिस का शिकार हो जाता है, जिससे मौत भी हो सकती है।
सफाई जरूरी- इस बीमारी से बचाने वाले लगभग सभी टीकों में विषैला पदार्थ ‘सीजियम क्लोराइड’ होता है, लेकिन ‘हिवैक बी’ में इसका इस्तेमाल नहीं किया गया है। कभी-कभी इस बीमारी का प्रसार संक्रमित रक्त के चढ़ाए जाने के कारण भी होता है। वहीं जिन स्थानों पर सीवर की समस्या मौजूद है या फिर मल- मूत्र की निकासी की समुचित व्यवस्था नहीं है, वहां रहने वाले लोगों में इस रोग का प्रसार ज्यादा देखा गया है।
कुछ और भी- हेपेटाइटिस-बी का संक्रमण कई प्रकार से हो सकता है। वायरस के कुप्रभाव से कुछ लोगों में लिवर सिरोसिस हो जाता है। यदि एड्स से पीड़ित व्यक्ति के लिए प्रयोग की गई सुई किसी को चुभ जाती है, तो ऐसे प्रति दो सौ में से किसी एक व्यक्ति को एड्स का खतरा रहता है। जबकि हेपेटाइटिस बी की संभावना प्रत्येक तीन में से एक व्यक्ति को होती है। मां से बच्चे में एड्स के संक्रमण की आशंका जहां 25 प्रतिशत है, वहीं हेपेटाइटिस बी के मामले में यह नब्बे फीसदी है। असुरक्षित यौन संबंध से हेपेटाइटिस होने का खतरा भी एड्स से सौ गुना अधिक है।
निदान -हेपेटाइटिस-बी के निदान के लिए एचबीएसएजी का परीक्षण कराया जाता है। इसके अलावा लिवर फंक्शन टेस्ट भी होता है। कुछ रोगियों में लिवर बॉयोप्सी की भी जरूरत महसूस होने पर चिकित्सक इसकी सलाह भी उन्हें देते हैं। इसके लिए एंटीवॉयरल ट्रीटमेंट दिया जाता है।
निदान -हेपेटाइटिस-बी के निदान के लिए एचबीएसएजी का परीक्षण कराया जाता है। इसके अलावा लिवर फंक्शन टेस्ट भी होता है। कुछ रोगियों में लिवर बॉयोप्सी की भी जरूरत महसूस होने पर चिकित्सक इसकी सलाह भी उन्हें देते हैं। इसके लिए एंटीवॉयरल ट्रीटमेंट दिया जाता है।
लक्षण
- मरीज को भूख नहीं लगती और मुंह का स्वाद खराब हो जाता है किसी चीज में उसे स्वाद नहीं आता।
- आंखों में पीलापन छा जाता है। पीड़ित की स्किन का रंग भी पीला दिखाई देता है और अधिकतर मामलों में रोगियों में पीलिया जैसे लक्षण भी नजर आते हैं। इसके अलावा...
- मूत्र का रंग पीला हो जाता है।
- कभी-कभी पेट में पानी भर जाता है।
- बहुत ज्यादा कमजोरी होना और किसी काम में मन नहीं लगना व अरूचि होना।
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