Thursday, December 9, 2010

ईयर इंफेक्शन् एक बड़ी समस्या

नाक, आंख और शरीर के अन्य अंगों की तरह हमारे कानों की सेहत का मामला भी बहुत गंभीर होता है। इस अंग की कोई भी समस्या हमारे पूरी लाइफ सर्कल को डिस्टर्ब करने का माद्दा रखती है और हमें कई तरह की समस्याएं ग्रसित कर सकती हैं। विशेषज्ञों का कहना है कि प्राय: कान में होने वाला कोई संक्रमण बच्चों को ज्यादा सताता है, लेकिन वयस्कों को भी यह समस्या बहुतायत में देखी जा सकती है।


क्या है यह संक्रमण- कान के अंदर यूस्टेशियन ट्यूब के आंतरिक भाग में विशेष तौर पर यह संक्रमण होता है। यह नली मूल रूप से कान के आंतरिक भागों को एक संकरे रास्ते से जोड़ती है, जिसके माध्यम से कान के मैल और अन्य प्रकार की गंदगी को कान से बाहर निकालने में मदद मिलती है। यहां कान के आंतरिक और बाहरी भाग में एक विशिष्ट प्रकार का दबाव क्षेत्र बनता है और कान के अंदर की स्वत: संचालित होने वाली क्रियाएं होती हैं। कान के अंदर यदि म्यूकस युक्त तरल का जमाव होने लगे, तो यह संक्रमण कहलाता है और तरह-तरह की तकलीफों का कारण होते हैं। नाक, कान रोगों के विशेषज्ञों यानि ईएनटी स्पेशलिस्ट के अनुसार प्राय: व्यस्क कॉटन को सींख आदि में लगाकर कानों को साफ करते हैं। इस तरह की क्रिया भी कान की सेहत के लिहाज से घातक होती है। कान में धोखे से छूट जाने वाली रूई एक दम से तो कोई दुष्परिणाम नहीं दिखाती, लेकिन भविष्य में यह अवस्था घातक होती है। इसके अलावा कई लोगों को बाहर पड़ी खराब तीलियों या फिर किसी धातु आदि नुकीली चीजों से भी कान के अंदर सफाई करने का शौक होता है, जो खतरनाक परिणाम दे सकता है।

क्या कहता है सर्वे- कान की तमाम तकलीफों से ग्रसित पीड़ितों पर किए गए एक सर्वे का कहना है कि प्रति चार में से एक बच्चा और वयस्क कान में संक्रमण से परेशान होता है। सर्वे में यह भी सामने आया है कि वे किसी बैक्टीरिया के संक्रमण की अपेक्षा वायरल संक्रमण से ज्यादा ग्रसित होते हैं। बुखार के समय यह वायरल इंफेक्शन शरीर में अन्य अंगों को संक्रमित करने के साथ-साथ कानों तक भी प्रसारित हो जाए, तो आश्चर्य की बात नहीं है। इस इंफेक्शन से तुरंत निजात पाना भी संभव नहीं होता।

लक्षण- कान में असहनीय दर्द होना और दबाव का ऐसा क्षेत्र कान में निर्मित होना जिससे अजीब तरह की आवाज सुनाई देना या फिर कान में किसी आवाज का ठीक से न पहुंच पाना, ये समस्याएं भी होती हैं। कारण कान के अंदर संक्रमित तरल की उपस्थित होना। कान में होने वाला यह संक्रमण तो घातक है ही, साथ ही कान के नाजुक ऊतकों में सूजन होना और भी घातक है और इसकी बढ़ी हुई अवस्था में यह कान में ब्लॉकेज की स्थिति भी निर्मित कर देती है, जिसके कारण यह अनैच्छिक संक्रमित द्रव सहजता से कान के बाहर भी नहीं निकलता और संक्रमण और ज्यादा बढ़ जाता है। इसके अलावा कान के संक्रमण में बुखार आना, कमजोरी महसूस होना, सिर में हल्का या तेज दर्द भी होता है। बच्चों की बात करें तो ये खेल-खेल में कागज के टुकड़े, बीज, चाक के टुकड़े, छर्रे और माचिस की तीलियों के टुकड़े कान में डाल लेते हैं। ऐसी स्थिति में भी तुरंत ईएनटी स्पेशलिस्ट से मिलें, क्योंकि इनके निकल जाने के बाद भी उनके कान में संक्र मण की संभावना बढ़ जाती है। यदि समय पर इस समस्या का उपचार नहीं किया जाए तो इससे जुड़ी तकलीफें आगे चलकर आपकी सुनने की क्षमता को अस्थाई रूप से या फिर स्थाई रूप से भी खत्म कर सकती है। कई समस्याओं में वातावारण से प्राकृतिक ध्वनि न सुनाई देकर अप्राकृतिक ध्वनि सुनाई देती है। साथ ही लगता है कि जैसे कान में कोई सीटी बज रही हो।

चुइंगम भी- एक हालिया अध्ययन के अनुसार एक विशेष प्रकार की जिलाईटोल युक्त चुइंगम चबाने से भी संक्रमणकारी बैक्टीरियाज को नासा द्वार में जाने से रोका जा सकता है।

उपचार- ईएनटी विशेषज्ञ पीड़ित के कान का परीक्षण करते हैं और और संक्रमित तरल को कान से बाहर निकालने का प्रयास करते हैं। साथ ही एंटीबॉयोटिक औषधियों के माध्यम से संक्रमण को सुखाने का प्रयास किया जाता है। यही नहीं इस संक्रमित तरल के कारण कान में मीठी सी खुजली का अहसास होने पर पीड़ित कान में बड्स या रूई को तीली में लगाकर कान साफ करने का प्रयास करते हैं। पिन या किसी धातु का इसके लिए इस्तेमाल करने पर यह संक्रमण जख्म में तब्दील हो सकता है और कान में रक्त मिश्रित पस भी दिखाई दे सकता है। चिकित्सक उपचार के लिए एंटीबॉयोटिक औषधियां और एक्सटर्नल ड्राप्स भी पीड़ित के पस या इस कारण हुए घाव को सुखाने के लिए देते हैं।

और भी कुछ...कान में कोई फोड़ा-फुंसी और पुराना दर्द हो तो यह जबड़ों और दांतों तक पहुंच सकता है। # कुछ लोगों के कान में जमने वाले मैल की कठोरता भी कान के संक्रमण का मूल कारण होती है। जिसका उपचार डॉक्टर वेक्स सॉल्वेंट्स के माध्यम से किया जाता है। # ओटोमाइकोसिस यानि फंगल इंफेक्शन के कारण कान में खुजली या जलन होना और पानी जैसा पस आना भी देखा जाता है। इसके उपचार के लिए पीड़ित को एंटीफंगल ड्राप्स भी दी जाती हैं।

आधुनिक पद्धतिवर्तमान में मिरिंगोटॉमी नामक माइनर सर्जरी के तहत एक पतली ट्यूब को ईयर ड्रम तक पहुंचाया जाता है और यह ट्यूब परमानेंट नहीं होती और स्वत: ही कुछ समय बाद कान के अंदर ही अंदर घुल जाती है, जब स्थिति ठीक हो जाए। इसके अलावा संक्रमित भाग की ओर नासल स्प्रे डाला जाता है, जिससे प्रदूषक पार्टिकल्स और अन्य एनवायर्नमेंटल तत्वों को कान से बाहर निकालने में मदद मिलती है व एलर्जीकारक तत्व भी हटते हैं।

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