Wednesday, December 1, 2010

दौड़ो, पैटी, दौड़ो

कम उम्र में ही पैटी विल्सन को उसके डॉक्टर ने बता दिया था कि उसे मिर्गी की बीमारी है। उसके पिता जिम विल्सन सुबह-सुबह जॉगिंग करते जाते थे। एक दिन पैटी मुस्करा कर बोली, ‘डैडी, मैं भी आपके साथ हर दिन दौड़ना चाहती हूं, लेकिन डर लगता है कि कहीं मिर्गी का दौरा न पड़ जाए।’ उसके पिता ने कहा, ‘अगर तुम साथ दौड़ना चाहो, तो चलो। अगर दौरा पड़ा, तो मैं तुम्हें संभाल लूंगा।’ वे दोनों साथ दौड़ने लगे। यह उन दोनों के लिए एक अद्भुत अनुभव था। दौड़ते समय पैटी को कभी मिर्गी का दौरा भी पड़ा। एक दिन वह अपने पिता से बोली, ‘डैडी, मैं दरअसल यह चाहती हूं कि महिलाओं की लंबी दूरी की दौड़ का वर्ल्ड रिकार्ड तोडूं।’ उसके पिता ने गिनीज बुक आॅफ वर्ल्ड रिकार्ड्स में देखा कि सबसे दूर तक दौड़ने वाली महिला 80 मील दौड़ी थी। हाई स्कूल के फर्स्ट ईयर में पैटी ने घोषणा की, ‘मैं इस साल आॅरेंज काउंटी से सैन फ्रांसिस्को तक दौड़ूंगी’ (400 मील)। उसने कहा, ‘सेकंड ईयर में मैं पोर्टलैंड, ओरेगन तक दौड़ूंगी’ (1,500 मील)। ‘थर्ड ईयर में मैं सेंट लुइस तक दौड़ूंगी’ (लगभग 2,000 मील)।। ‘और फोर्थ ईयर में मैं व्हाइट हाउस तक दौड़ूंगी।’ (3,000 मील से भी ज्यादा) पैटी बीमारी को देखते हुए उसके इरादे बहुत महत्वकांक्षी और उत्साहपूर्ण थे, लेकिन जैसा उसने कहा, वह मिर्गी की बीमारी को सिर्फ ‘एक परेशानी’ मानती थी। उसने इस बात पर ध्यान केंद्रित नहीं किया कि उसने क्या खो दिया, बल्कि इस बात पर किया कि उसके पास क्या बचा था। उसने सैन फ्रांसिस्को तक की ओर दौड़ पूरी की। वह एक टी-शर्ट पर लिखा था, मैं मिर्गी से प्यार करती हूं। उसके डैडी भी उसके साथ दौड़े। उसकी मां नर्स थीं, वे पीछे एक मोटर होम में चलीं, ताकि कोई गड़बड़ होने पर संभाल संभाल लें। 

सेकंड ईयर में पैटी के सहपाठी उसका हौसला बढ़ाने लगे। उन्होंने एक विशाल पोस्टर बनाया, जिस पर लिखा था,‘दौड़ो, पैटी, दौड़ो!’ (तब से यह उसका सूत्रवाक्य बन गया है और यही उसकी लिखी पुस्तक का शीर्षक भी है)पोर्टलैंड तक की दौड़ में उसके पैर में फ्रेक्चर हो गया। डॉक्टर ने कहा, ‘मैं तुम्हारे टखने पर पट्टा बांध देता हूं, ताकि कोई स्थायी नुकसान न हो।’ उसने कहा, ‘डॉक्टर, आप समझते नहीं है। यह कोई शौक नहीं है, यह तो जुनून है। मैं तो यह काम अपने लिए नहीं कर रही हूं, मैं तो यह काम उन मानसिक बेड़ियों को तोड़ने के लिए कर रही हूं, जो बहुत से लोगों को जकड़े हुए हैं। क्या कोई ऐसा तरीका नहीं है, जिससे मैं अब भी भाग सकूं?’ डॉक्टर ने उसे एक विकल्प दिया। वह पट्टा बांधने के बजाय उस पर चिपकने वाली मजबूत पट्टी बांध सकता है। उसने पैटी को चेतावनी दी की इससे बहुत दर्द होगा। फिर भी पैटी ने बंधवा लिया। आखिरी मील में ओरेगॉन के गवर्नर भी उसके साथ दौड़े। वेस्ट कोस्ट से ईस्ट कोस्ट तक लगातार चार महीने तक दौड़ने के बाद पैटी वॉशिंगटन आई और उसने अमेरिका के राष्ट्रपति से हाथ मिलाया। उसने उनसे कहा, ‘मैं लोगों को यह बताना चाहती थी की मिर्गी के रोगी भी सामान्य इंसान होते हैं और सामान्य जिंदगी जी सकते हैं।’

2 comments:

ASHOK BAJAJ said...

सुन्दर और बेहतरीन प्रस्तुति ,बधाई !

निर्मला कपिला said...

बहुत ही प्रेरक प्रसंग है। धन्यवाद।